राष्ट्रीय खेल दिवस : चीन प्लस वन माइंडसेट ओलंपिक में क्यों नहीं है

खेलो में पदक लेने हम पीछे क्यों

राष्ट्रीय खेल दिवस : चीन प्लस वन माइंडसेट ओलंपिक में क्यों नहीं है

कुछ समय से खेलों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है किंतु अभी भी बहुत पीछे है।

कोटा। भारत और चीन पड़ोसी देश हैं, जब हम हर मामले में अपनी तुलना चीन से करते हैं , चीन को अपना प्रतियोगी मानते हैं तो खेल का स्तर चीन की तरह क्यों नहीं रखते। चीन प्लस वन माइंडसेट ओलंपिक में क्यों नहीं है! ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में चीन हमेशा टॉप देशों में शुमार रहा है. जनसंख्या के मामले में भारत और चीन दुनिया के  सबसे बड़े देश है, लेकिन ओलंपिक खेलों में चीन का दबदबा रहता है।  हाल में संपन्न पेरिस ओलंपिक में भी चीन दूसरा सबसे अधिक मेडल जीतने वाला देश रहा। वहीं मेडल के मामले में भारत का स्थान 71वां रहा। विख्यात एथलीट पीटी उषा के विचार में इसके जिÞम्मेदार सभी हैं क्योंकि खेल किसी की प्राथमिकता नहीं है।  "हम आईटी और दूसरे क्षेत्रों में विश्व ख्याति के लोग कर रहे हैं।  कई फील्ड में दुनिया के कई देशों से आगे हैं, खेल में क्यों नहीं हैं? यहां टैलेंट की कमी नहीं है। यहां खेल किसी की प्राथमिकता नहीं है। 
 
70 के दशक तक चीन खेल में फिसड्डी था 
अगर हम खेलों के इतिहास पर नजर डालें तो चीन ने साल 1980 में पहली बार ओलंपिक में भाग लिया था। इसके बाद से ही चीन के एथलीट ओलंपिक में मेडल की बरसात कर रहे हैं।भारत ने साल 1951 में पहले एशियाई खेलों का आयोजन किया तो उसने जापान के बाद सबसे ज्यादा पदक जीते थे।  नई दिल्ली से लेकर 1970 बैंकाक तक छह एशियाई खेल ऐसे रहे जब भारत को अपने महाद्वीप में खेलों की एक बड़ी ताकत माना जाता था।  उस समय तक चीन खेलों की दुनिया से नदारद था। आखिर चीन ने ऐसा क्या किया कि उसका शुमार खेलों में सुपरपॉवर के तौर पर होने लगा।  आखिर क्या कमी है हमारे यहां कि खेलो में सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाते। हालांकि पिछले कुछ समय से खेलों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है किंतु अभी भी बहुत पीछे है। 70 के दशक तक जो चीन खेल में फिसड्डी था आज वो दुनिया में अपना डंका बजवा रहा है। राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर दैनिक नवज्योति ने उन कारणों को जाना कि कैसे चीन दुनिया में छाया और हम क्यों खेलो में पदक लेने पीछे रह जाते हैं?

खेलों में चीन और भारत की तुलना
- तीन दशक पहले चीन की ओलंपिक समिति ने 119 प्रोजेक्ट नाम की परियोजना तैयार की जिसके तहत एक्वेटिक्स (तैराकी, डाइविंग सहित पानी में खेले जाने वाले सभी खेल) और एथलेटिक्स में पदक जीतने वाले खिलाड़ी तैयार करने थे।  इसके तहत दिग्गज खिलाड़ियों को चीनी खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस करने बुलाया गया।  साथ ही दुनिया के मशहूर कोच नियमित तौर पर चीनी खिलाड़ियों को सिखाने के लिए बुलाए गए। 
-  चीन पांच साल की उम्र में ही बच्चों की पहचान कर लेता है और उन्हें पब्लिक हॉस्टल में रखकर ट्रेनिंग दी जाती है। चीन ने उन खेलों पर फोकस किया है, जहां वे मेडल जीत सकते हैं। भले ही उस खेल के चाहने वाले बहुत कम हों। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 2,183 सरकारी स्कूल हैं, जहां बच्चों को बहुत छोटी उम्र से ही ओलंपिक के लिए तैयार किया जाता है।  चीन में करीब एक लाख 70 हजार मल्टी स्पोर्ट्स स्टेडियम हैं। जबकि भारत में लगभग एक हजार स्टेडियम हैं , उनमें से अधिकतर क्रिकेट के लिए ही समर्पित है। इसके अलावा भारत में खेलों में सबसे अधिक बढ़ावा क्रिकेट को ही मिलता रहा है। भारत में खेलों में स्कूल-कॉलेज के स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर जीरो है।  
- चीन में रजिस्टर्ड प्रोफेशनल एथलीटों की संख्या 20 हजार के करीब है।  जिनमें से करीब 1200, 1300 को देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना जाता है।  
-  खेलों में एक मजबूत राष्ट्र बनना चीनी सपने का हिस्सा है। भारत में खेल प्राथमिकता नहीं है। यही कारण है कि न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों का बजट आवश्यकता के अनुसार है, हमारे यहां सारा फोकस क्रिकेट पर  है उसके लिए प्रायोजक होते हैं लेकिन अन्य  खेलों को प्रमोट करने के लिए प्रायोजकों की कमी  है। 
-  चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर आॅपशन लगता है। भारत में बच्चों को पढ़ाई के प्रति उत्साहित किया जाता है। 
- चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल साइंस के आधार पर करवाई जाती है।चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नई टेक्नोलॉजी और साइंस पर लाखों डॉलर खर्च करता है। भारत सरकार ने खेलो इंडिया प्रोग्राम के जरिए निवेश को बढ़ाया है। लेकिन एक बड़ी आबादी के लिए यह बहुत कम है। भारत में एक खिलाड़ी को तीन-चार महीने के लिए तब मदद मिलती है, जब वह ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर जाता है।
-  चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियन सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है,जो सभी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के अनुरूप हैं। चीन में 3,000 से अधिक स्पोर्ट्स स्कूल हैं जो प्रतिभा की पहचान करने और उसका पोषण करने के लिए जिम्मेदार हैं। ये स्कूल खेलों में क्षमता दिखाने वाले छात्रों को विशेष ट्रेनिंग देते हैं।
-  हमारे यहां ग्रामीण क्षेत्रों में ओलंपिक खेलों के बारे में लोगों को जानकारी न होना भी खेलों की तरक्की में एक बड़ी बाधा है।  
- भारत में खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, खराब स्वास्थ्य, गरीबी और लड़कियों को खेलों में भाग नहीं लेने देने जैसे कारण शामिल हैं। अमीरों और गरीबों के बीच आय का अंतर बढ़ रहा है। गरीबों के पास दो वक्त की रोटी नहीं है ऐसे में आबादी का एक बड़ा भाग खेलों की ओर झुकाव नहीं रख पाता  है

सरकार की तरफ से सुविधाएं नहीं हैं। खिलाड़ियों को जो भी करना है अपने बलबूते पर करना होता है। नेशनल लेवल पर खेलने के लिए खिलाडी को स्वयं खर्चा वहन करना होता है ।  जब उसका इंटरनेशनल लेवल पर चयन हो जाता है तब सरकार सुविधा देती है। भाई भतीजावाद ज्यादा है, असली प्रतिभाएं उभर नहीं पाती। सलेक्शन में भेदभाव रहता है। स्कॉलरशिप 5-6 साल बाद मिलती है। ऐसे में खिलाड़ी को डाइट, प्रशिक्षण व अन्य खर्चों का भार उठाने में परेशानी आती है।
- अरुंधती चौधरी, इंटरनेशनल प्लेयर बॉक्सिंग
 
इंटरनेशनल लेवल पर सफलता पाने के लिए टाइम टू टाइम खिलाड़ियों की प्रैक्टिस होनी चाहिए उसमें कमी है।  चीन में छोटी उम्र से ही खेलों की ट्रेनिंग शुरू कर देते हैं। हमारे यहां छोटे बच्चों को घर से बाहर ही नहीं निकालते। खासकर लड़कियों को बाहर भेजते नहीं हैं। वहां लड़कियों को भी बचपन से खेल की खुली छूट है। खिलाड़ियों को कोचिंग में ट्रेनिंग के दौरान फुल डाइट, रहने की पूरी व्यवस्था नहीं है। इंटरनेशल स्तर के इन्फ्रास्ट्रक्चर ट्रेनिंग और अन्य सुुविधाओं की आवश्यकता है।
- मुन्नी भांभू, इंटरनेशनल खिलाड़ी फुटबॉल

ग्रास रूट लेवल पर सुविधाएं नहीं है। खिलाड़ी जब एक लेवल पर पहुंच जाता है तब सरकार सुविधाएं देती है। विदेशों में कैम्प में जाते हैं, वहां बच्चे 8-9 साल की उम्र में ही स्पोर्ट्स को प्रोफेशन चुन लेते है। हमारे यहां 15-16 साल की उम्र में10वीं-12वीं कर रहे होते हैं। टेलेंट को कम उम्र में पहचानने की कमी है। अगर ग्रास रूट लेवल से ही सरकार बच्चों के टैलेंट को पहचान कर चयन कर लें कि हम खिलाड़ी तैयार करेगें तो ओलंपिक खेलना कोई बड़ी बात नहीं है। चाइना, अमेरिका में 18 से 21 साल की उम्र में खेल कर खिलाड़ी ओलंपिक में मेडल ले लेते हैं। यहां 13-14 साल के बच्चे को पता हो नहीं होता है। भारत का ओलंपिक में खिलाड़ी 25 साल के बाद वह खेल पाता है। ओलंपिक में उम्र की कोई कैटेगरी नहीं है। 14 साल का भी ओलंपिक में खेल सकता है। 
- यादविन्द्र सिंह बरार, इंटरनेशनल प्लेयर ग्रीको-रोमन रेस्लर

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हम जिस तरह पढ़ाई लिखाई को प्राथमिकता देते हैं ऐसे ही स्पोर्ट्स को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। मैं चाइना और फिलीपीन्स भी गया वहां छोटे बच्चे को स्पोर्ट्स की तैयारी वैसे ही कराते हैं जैसे हम स्टडी के लिए करवाते हैं फिटनेस टेस्ट कराते हैं और बच्चे को सभी गेम्स खिलाते हैं। जिस बच्चे का जिस खेल में बेहतर प्रदर्शन होता है उसे उसी गेम्स में डालते हैं, जिससे आगे चलकर अच्छा प्लेयर बन पाए।  प्लेयर को मेडल के समय जो स्कॉलरशिप देते हैं वह बहुत देर से मिलती है। सरकार का यह प्रोसेस बहुत धीमा है। स्कॉलरशिप तब मिलती है जब खिलाड़ी का करियर डाउन या खत्म होने वाला होता है। जो भी इंटरनेशनल प्लेयर हैं चाहे वह किसी भी खेले के हों उन्हें कोचिंग के ज्यादा मौके देने चाहिए। वह बच्चों को अच्छा प्रशिक्षण ज्यादा दे पाएंगें।  इंटरनेशनल प्लेयर जब प्रशिक्षण देंगे तो उन्हें ज्यादा जानकारी होती है कैसी डाइट मिलनी चाहिए कैसे कॉम्पटीशन हो सकता है, किस तरह बच्चों को तैयार करना है।  स्कूलों में स्पोर्ट्स एकेडमी में उन्हें सुविधाएं दें वह अच्छे खिलाड़ी निकाल सकें इससे अपने आप मेडल टैली बढ़ेगी। जब बचपन से एक चीज पर काम करेंगे तो आगे जाकर अच्छा परिणाम मिलेगा। 
- महिपाल, इंटरनेशनलप्लेयर वुशु

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चीन ग्राउण्ड लेवल से ही तैयारी कराता है। चीन की तरह खेल नीति बनानी चाहिए। वहां बच्चे 5 साल के होते हैै पेरेन्टस बच्चों को स्पोर्ट्स में डाल देते हैं। हमारे यहां प्रधानमंत्री ने जबसे खेलो इंडिया की  शुरूआत की तब से स्थिति बेहतर हो रही है।  यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है ग्राउण्ड लेवल पर सुविधाएं नहीं है। हर जिले, राज्य के अंदर जहां खेल प्रतिभाएं हैं वहां उसके अनुसार खेल एकेडमी खोली जानी चाहिए। तैयारी ग्राऊड लेवल पर नहीं है। जिन्हें ओलेपिक में खिलाना है उन्हें प्रारंभिक स्तर पर ट्रेनिंग है। शिक्षा को खेल के साथ जोड़ें स्कूलों में स्पोर्ट्स का कम्पलसरी पीरियड होना चाहिए। स्कूलों में स्पोर्ट्स कोटा अलग से रखा जाना चाहिए जो बच्चे पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स खेलते है उसमें अच्चे परिणाम दे रहे उन बच्चों को अलग से सुविधाएं मिले।
-श्याम बिहारी नाहर, कोच एवं पूर्व राष्ट्रीय स्तरीय गोला फेंक खिलाड़ीं 

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जब तक सिखाने वाले अच्छे कोच और मैदान नहीं होंगे बच्चे कैसे आगे बढ़ेंगे। तैयारी के लिए खिलाड़ियों को अच्छी सुविधाएं मिलें। अच्छी डाइट, रहने की अच्छी व्यवस्थाएं होनी चाहिए। इंडिया की टीम ओलंपिक के लिए तैयारी करते हैं 4 साल उन्हें वहीं अकेडमी में अलग-अलग रख कर कैंप आयोजित किए जाए, अच्छे प्रशिक्षक बाहर से बुलाएं। स्वदेशी प्रशिक्षक ज्यादा हों जो ट्रेनिंग दें तो क्यों नहीं मेडल आएंगे। नर्सरी से ही स्पोर्ट्स का स्कूल होना चाहिए। उसके बाद उसमें कॉलेज, यूनिवर्सिटी हो, जहां अच्छे खिलाड़ी एक साथ एडमिशन लेकर उनको एक साथ प्रैक्टिस दी जाए। जो अच्छा खिलाड़ी हो उन्हें स्कूल में प्रमोट किया जाए कि वह खेल में ही रहे उनके ऊपर और किसी तरह का दबाब नहीं होगा सिर्फ खेल पर ही फोकस रहेगा। जॉब सिक्यूरिटी भी खिलाड़ियों के लिए होना चाहिए।  बच्चों के चयन में भी किसी भी तरह का पक्षपात या भेदभाव नहीं होना चाहिए।  खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप भी समय समय पर मिलती रहे। विदेशों की तरह यहां कम अनुदान राशि मिलती है वह भी बढ़ानी चाहिए तो क्यों नहीं खिलाड़ी आगे बढ़ेंगे।
- मधु चौहान, जिला खेल अधिकारी, कोटा

 

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