उदपुरिया को आबाद कर रहा तीन रंगों वाला पक्षी
अक्टूबर में नन्हें मेहमानों से चहकेगी जन्मस्थली
गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष तीन गुना बड़ी आबादी ।
कोटा। कोटा से 30 किमी दूर उदपुरिया तालाब इन दिनों तीन रंगों के परिंदों से चहकने लगा है। हल्के सफेद पंखों पर गुलाबी व नारंगी रंग उसे और भी आकर्षक बना देता है, जिसे देख ऐसा लगता है कि मानो किसी पेंटर ने ब्रश से बड़े करीने से रंग भर दिए हों। यहां बात हो रही है, पेंटेर्ड स्टॉर्क बर्ड्स की। जन्म स्थली कहलाने वाली उदपुरिया में पेंटेर्ड स्टॉर्क बर्ड्स की संख्या में पिछले साल की तुलना में इस बार तीन गुना इजाफा हुआ है। यहां पेड़ों पर इस बार करीब 60 घोंसलें बने हैं। प्रत्येक घोंसले में यह पक्षी जोड़े में रहता है।
बर्ड वॉचर्स के लिए बना व्यू प्वाइंट
उदपुरिया तालाब इन दिनों बर्ड वॉचर के लिए व्यू प्वाइंट बना हुआ है। यहां इनकी पंसदीदा विलायती बबूल पर पेंटर्न स्टॉर्क ने 5 दर्जन से अधिक घोंसले बना लिए हैं। ये पक्षी जोड़े में होने से इनकी संख्या 120 हैं। जांघिलों की चेहचहाट पक्षी प्रेमियों को आकर्षित कर रहे हैं।
तीन गुना बड़ी संख्या
जूलॉजी के सहायक आचार्य डॉ. राजेन्द्र सिंह ने बताया कि पेंटर्न स्टॉर्क बर्ड्स को हाड़ौती में जांघिल के नाम से जाना जाता है। इस बार यहां 5 दर्जन घोंसले बने हैं। जबकि, गत वर्ष 2 दर्जन के लगभग थे। गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है। प्रत्येक घोंसले में नर-मादा दोनों पक्षी एक साथ रहते हैं। ऐसे में इनकी संख्या 120 हो गई है। जांघिलों ने कई घोंसलों में अंडे दिए हुए है, जो कौओं से उनकी सुरक्षा करते नजर आ रहे हैं।
दुर्लभ प्रजाति में आते हैं पेंटेड स्टॉर्क
विशेषज्ञों ने बताया कि पेंटेड स्टॉर्क स्टॉर्क दुर्लभ प्रजाति है। इसे नियर थ्रेटेंड संरक्षण की स्थिति में लिया गया। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि प्रजातियों को खतरा है, लेकिन थ्रेटेंड टैक्सा में आमतौर पर कमजोर प्रजातियां शामिल होती हैं, यह प्रजाति कमजोर स्थिति में मानी जाती है।
भोजन-पानी की दिक्कत
पक्षी प्रेमी जुनैद शेख कहते हैं, वर्ष 1995 में कैलवा देव पक्षी विहार से जांघिल पक्षियों ने कोटा के उदपुरिया को अपना घर बनाया था। उस समय यहां का भौगोलिक वातावरण पक्षियों के अनुकूल था। तालाब का स्वच्छ पानी, बड़ी संख्या में घने पेड़ होने से यहां इन पक्षियों की बस्ती आबाद हुई। वर्ष 2015 तक उदपुरिया पक्षी विहार के रूप में आकार लेने लगा और पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी। लेकिन, वन व पर्यटन विभाग की अनदेखी से यहां मानवीय दखल बढ़ने लगा। अतिक्रमण, खुले में शौच, पेड़ों की अवैध कटाई के साथ संदिग्ध गतिविधियां बढ़ने लगी। जिससे पक्षियों की आजादी में खलल होने लगा और भोजन-पानी की कमी समेत अन्य कारणों से ये पक्षी अपना घर बदलने पर मजबूर हो गए।
अपने खर्चें पर कर रहे पक्षियों की निगरानी
हाड़ौती नेचुरल सोसाइटी के सदस्य श्याम जांगिड़ स्वयं के खर्चें पर उदपुरिया में जांघिल पक्षियों व घोंसलों की देखभाल कर रहे हैं। साथ ही यहां आने वाले पर्यटकों को पाक्षियों की विशेषताएं, इतिहास से रूबरू करवाते हैं। उन्होंने कहा, 30 वर्ष पूर्व जांघिल पहली बार यहां जुलाई में ही आये थे। कई सालों तक इसी माह में आते रहे फिर अगस्त के दूसरे सप्ताह में आना शुरू किया। इनके आने से गांव में पर्यटन बढ़ता है और 5 माह तक चहल पहल बनी रहती है।
पहले 200 पेड़ आज एक भी नहीं
नेचर प्रमोटर एएच जैदी बताते हैं, उदपुरिया तालाब पेंटर्ड स्टॉर्क बर्ड्स की जन्मस्थली है। लेकिन, उनका प्राकृतिक आवास नष्ट होता जा रहा है। तालाब की पाल अतिक्रमण की भेंट चढ़ा हुआ है। जगह-जगह से पाल क्षतिग्रस्त हो रही है। पहले तालाब के चारो ओर करीब 200 पेड़ थे, जो धीरे-धीरे सुखते व गिरते चले गए। वर्तमान में तालाब के बीच एक भी पेड़ नही है। ऐसे में उन्हें सड़क किनारे पेड़ों पर घौंसला बनाना पड़ रहा है। यहां प्रतिवर्ष 20 पौधे लगाए जाना चाहिए,ताकि उन्हें घोंसला बनाने के लिए आशियाना मिल सके।
जामुनिया आइलैंड भी
जैदी कहते हैं, वन व पर्यटन विभाग ध्यान दें तो उदपुरिया तालाब कैवलादेव पक्षी विहार बन सकता है। तालाब से 6 किमी दूर चंबल के बीचोंबीच बने जामूनिया आईलैंड है वहीं, तीन किमी की दूरी पर निमोदा चंबल के धोरे हैं, जिसका प्राकृतिक सौंदर्य से उदपुरिया बर्ड सेंचुरी के रूप में विकसित हो सकता है। लेकिन, विभागीय लापरवाही के कारण बरसों से इसका विकास नहीं हो पा रहा।
अगले माह नन्हें मेहमानों से चहकेगा उदपुरिया
उन्होंने बताया कि एक मादा जांघिल पक्षी 2 से 3 अंडे देती है। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से बच्चों का अंडों से बाहर निकलना शुरू हो जाता है। ऐसे में करीब 200 नन्हें मेहमानों के जन्म लेने की संभावना है। इस तरह इनकी संख्या 300 से अधिक हो जाएगी।
घंटों एक ही मुद्रा में रहते हैं खड़े
वन्यजीव प्रेमी कन्हैया मीणा बताते हैं, पेंटेड स्टॉर्क का वैज्ञानिक नाम माइकटेरिया ल्यूकोसिफाला है, जो भारत के अलावा श्रीलंका, चीन तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में भी पाए जाते हैं। पेंटेड स्टॉर्क शांत स्वभाव और एक ही मुद्रा में घंटों तक खड़े रहने के लिए जाने जाते हैं।
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