तब राजस्थान टीम का अलग ही क्रेज था, मैच कहीं भी और किसी भी टीम के खिलाफ हो

दर्शकों की फेवरेट हमारी टीम ही होती थी

तब राजस्थान टीम का अलग ही क्रेज था, मैच कहीं भी और किसी भी टीम के खिलाफ हो

राजस्थान की अस्सी और नब्बे के दशक की महिला फुटबॉलरों ने अपने अनुभव साझा किए

जयपुर। अस्सी और नब्बे के दशक में राजस्थान की फुटबाल का ऐसा दौर था, जहां राजस्थान टीम का अलग ही क्रेज हुआ करता था। पिंक जर्सी में जब राजस्थान की टीम मैदान पर उतरती तब मैच कहीं भी हो और कोई भी विपक्षी टीम हो, राजस्थान की टीम हमेशा दर्शकों की फेवरेट हुआ करती थी। ये कहना है राजस्थान की पूर्व महिला फुटबॉलर श्वेता जैन का।

अस्सी और नब्बे के दशक में राजस्थान की फुटबाल को बुलंदियों पर पहुंचाने में कोटा की सोलंकी बहनों के साथ ही जोधपुर की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी गीता चौधरी, रावतभाटा (चित्तौड़गढ़) की खटक और जैन बहनों तथा त्यागी सिस्टर्स का भी बड़ा योगदान रहा। रेखा यादव, मधु साजिव, अबिरा चौधरी और इन्दु, ये सभी खिलाड़ी उस दौर में राजस्थान के लिए खेलीं, जब राजस्थान ने तीन बार सीनियर, तीन बार जूनियर और पांच बार सब जूनियर नेशनल चैंपियनशिप का खिताब जीता था।

श्वेता, जो अब डूंगरपुर में हिन्दी की लेक्चरर हैं, ने बताया कि हम तीनों बहनें (मोनिका, श्वेता और शिल्पा) एक साथ राजस्थान के लिए खेलीं। दीदी मोनिका ने सिर्फ एक नेशनल सासाराम में खेला और उसके बाद उन्होंने पढ़ाई को तरजीह दी। श्वेता और शिल्पा ने राजस्थान के लिए कई नेशनल टूनार्मेंट एक साथ खेले। 

कुरुक्षेत्र में एक साथ खेलीं तीनों खटक बहनें
खुद फुटबॉलर रहे रावतभाटा के रफीक अहमद खटक की तीनों बेटियां रुबिना, जुबिना और जेबिना खटक 1986 के कुरुक्षेत्र नेशनल में एक साथ राजस्थान टीम में शामिल थीं। जेबिना जो अब स्कूल एजुकेशन में पीटीआई हैं, ने बताया कि हम मुस्लिम परिवार से थीं और उस दौर में शॉर्ट्स पहनकर मैदान में खेलना लोगों के लिए बड़ा ऑबजेक्शन था, लेकिन पिता ने इसकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने बताया कि 1982 में जब राजस्थान टीम पहली बार नेशनल खेलने गई, तब बड़ी दीदी रुबिना टीम में शामिल थीं। उन्होंने बताया कि दीदी रुबिना ने तो अपनी 11वीं की परीक्षा के कारण मलेशिया टूर ही छोड़ दिया था। बाद में जुबिना भी इंडिया कैंप में रहीं। जेबिना 2000 तक राजस्थान के लिए खेली। 

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ये खिलाड़ी भी खेलीं राजस्थान के लिए
रावतभाटा से दीपाली अग्रवाल, मधु रानी, बीकानेर से अनिता शर्मा, मधु भाटी, इन्दु भाटी, जयश्री सोलंकी, अजमेर से हरप्रीत कौर, जमुना सिंह, हेनरी मेंजिएस, जयपुर से कल्पना सिंह, मीना शर्मा और सुनिता, कोटा से उपासना त्यागी, संध्या त्यागी और शिखा त्यागी, अरिबा चौधरी, अर्पिता चौधरी, विशना सिंह, शबाना खान, मीना, विमलेश शर्मा, मेलविना डेनियल और उग्लेश चौहान, जोधपुर से गीता चौधरी, हनुमानगढ़ से मधु बिश्नोई और शिखा बिश्नोई तथा सवाईमाधोपुर से मधु साजिव, बिन्दु पानिकर और आशा गुजराल।

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आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं पर परिवार जैसा माहौल था
अस्सी के दशक में 6-7 साल लगातार राजस्थान के लिए खेली रेखा यादव का कहना है कि उस दौर में न तो खेलों के प्रति इतनी जागरूकता थी और न ही सुविधाएं थीं लेकिन परिवार जैसा माहौल था। सोलंकी सर सबको अपने बच्चों की तरह रखते और इसीलिए हम पूरी मेहनत करते और परिणाम लाते। रेखा यादव अब एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज हैं और धौलपुर में कार्यरत हैं। रेखा ने कहा कि वो महिला फुटबाल का गोल्डन पीरियड था। हालांकि तब पेरेंट्स खेल के बजाय पढ़ाई को प्राथमिकता देते थे। आज तो पेरेंट्स बच्चों को खुद खेलों में प्रमोट कर रहे हैं। 

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