कैवलादेव बना कोटा का राजपुरा व गोदल्याहेड़ी
पक्षियों की चहचहाहट कर रही आनंदित
1200 से ज्यादा खूबसूरत पक्षियों का बसा संसार।
कोटा। शहर से करीब 25 किमी दूर खूबसूरत पक्षियों का संसार चहक रहा है। रुई जैसे सफेद पंख पर गुलाबी और नारंगी रंग प्रकृति की अनोखी कला प्रदर्शित कर रहा है। आसमान में परवाज भरते इन परिंदों को देख, ऐसा लगता है, मानो बिन बारिश इंद्रधनुष के रंग बिखर रहे हों। यहां बात हो रही है,पैंटेड स्टार्क बडर््स की। शहरी सीमा से सटे राजपुरा और गोदल्याहेड़ी गांव में प्रवासी पक्षियों की दुनिया बसी है। दोनों जगहों के तालाब किनारे पेड़ों पर करीब साढ़े छह सौ से ज्यादा नन्हें पक्षियों ने जन्म लिया है। इनकी चहचहाट लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। पक्षियों को देखने के लिए दूर-दराज से बर्ड्स वॉचर व रिसर्चर पहुंच रहे हैं। रिसचर्स का कहना है, कोटा के यह इलाके कैलवादेव पक्षी विहार जैसा नजारा देखने को मिल रहा है।
650 से ज्यादा नन्हें मेहमानों ने लिया जन्म
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि राजपुरा व गोदल्याहेड़ी में तालाब किनारे इलाके पक्षियों से चहक रहे है। वर्ष 2017 से ही पैंटेड स्टार्क यहां रहकर नेस्टिंग कर रहे हैं। राजपुरा में 200 घौंसले गिने हैं, जिनमें कहीं 2 तो कहीं 3 बच्चे दिखाई दिए। वहीं, गोदल्याहेड़ी में 100 घौंसले नजर आए, उनमें दो दो व तीन की संख्या में नन्हें परिंदे दिखाई दिए। ऐसे में प्रत्येक घौसले में 2-2 बच्चों के हिसाब से राजपुरा व गोदल्याहेड़ी में 6.50 से ज्यादा नन्हें पैंटेड स्टार्क ने जन्म लिया है। इन दिनों पेड़ों पर बड़ी संख्या में पक्षी इतनी पास से तो भरतपुर कैलवादेव पक्षी अभयारणय में भी दिखाई नहीं देते।
बडर््स रिसर्च का डेस्टिनेशन बना राजपुरा-गोदल्याहेड़ी
जैदी कहते हैं, राजपुरा व गोदल्याहेड़ी तलाब किनारे का यह इलाका इन दिनों पक्षियों पर शौध करने वाले बर्ड्स रिसचर्स का डेस्टिंनेशन बना हुआ है। पैंटेर्ड स्टार्क बडर््स जोड़े में रहते हैं, प्रत्येक घौंसले में कहीं दो व कहीं तीन बच्चे हैं। ऐसे में माता-पिता व बच्चों को मिलाकर कुल 1200 से ज्यादा जांघिलों की आबादी बसी हुई है। पिछले साल भी अच्छी संख्या में बच्चों ने जन्म लिया था। यहां स्थानीय निवासियों द्वारा बडर््स का ध्यान रखा जाता है। अतिक्रमण व पेड़ों की अवैध कटाई नहीं होने देते। इसकी वजह से यहां इन पक्षियों का हैबीटॉट विकसित हो गया।
दूर-दराज से पहुंच रहे बडर््स वॉचर
पक्षी प्रेमी सुरेश नागर लंबे समय से पैंंटेर्ड स्टार्क का ख्याल रख रहे हैं। यहां आने वाले शौधार्थियों व बर्ड्स वॉचर को इनकी विशेषताएं व हैबीटॉट की जानकारी देते हैं। उन्होंने बताया कि जांघिलों को देखने के लिए दूर दराज से लोग आ रहे हैं। खुले आसमान में परिंदों को परवाज भरते व तालाब में अठखेलियां करते देख बर्ड्स वॉचर आनंदित हो रहे हैं। अल सुबह पक्षियों की चहचहाट से स्थानीय लोगों का मन मोह लेते हैं। राजपुरा व गोदल्याहेड़ी गांव इन दिनों कैलवादेव पक्षी विहार बना हुआ है।
दुर्लभ प्रजाति में आते हैं पेंटेड स्टॉर्क
वन्यजीव प्रेमी शेख जुनैद ने बताया कि पेंटेड स्टार्क दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आते हंै। इसे नियर थ्रेटेंड संरक्षण की स्थिति में लिया गया। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि प्रजातियों को खतरा है, लेकिन थ्रेटैंड टैक्सा में आमतौर पर कमजोर प्रजातियां शामिल होती हैं, वहीं यह प्रजाति कमजोर स्थिति में मानी जाती है।
वर्ष 2021 में 250 थी संख्या
जुनैद बताते हैं, ये पक्षी 7 सालों से यहां आ रहे हैं। वर्ष 2021 में इनकी संख्या 250 थी, जो अगले ही साल बढ़कर वर्ष 2022 में 500 पर पहुंच गई। वर्तमान में इनकी संख्या यहां 1200 से ज्यादा हैं, यह वंश वृद्धि का संकेत है, जो पक्षी पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। जांघिल 5 से 10 के समूह में कॉलोनी बना कर रहते हैं और आपस में एक-दूसरे की मदद करते हैं।
साढ़े तीन फीट है ऊंचाई
शोधार्थी रवि नागर ने बताया कि जांघिल लगभग साढ़े तीन फीट ऊंचाई के होते हैं। इनके पंख सफेद होते हैं, जिन पर ऊपर की तरफ काले रंग के निशान व पट्टियां पड़ी होती हैं और पूछ के हल्के गुलाबी रंग के पंख होते है। चोंच पीली होती है। इनका मुख्य भोजन मछलियां, केकड़े, मेंडक, छोटे सांप, छिपकली व कीड़े होते हैं। साथ ही यह किसान मित्र भी होेते हैं। इनकी मौजूदगी से धरतीपुत्रों को कीट पतंगों से फसलों की सुरक्षा में मदद मिलती है।
अध्ययन के लिए भरतपुर जाने की जरूरत नहीं
कोटा विश्विद्यालय की वन्यजीव विभाग की छात्रा गार्गी का कहना है, इन दोनों स्थानों पर 300 से ज्यादा पैंटेर्ड स्टार्क के घौंसले बने हैं और सभी में बच्चे हैं। पक्षियों पर अध्ययन के लिए हमें भरतपुर के कैवलादेव व घना नेशनल पार्क जाने की जरूरत नहीं है। 25 किमी दूर ही राजपुरा व गोदल्याहेड़ी रिसर्च का डेस्टिनेशन बना हुआ है।
Comment List