कन्नड लेखिका बानू मुश्ताक ने रचा इतिहास : हार्ट लैंप के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित
इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 की घोषणा 20 मई को लंदन में की गई
बानू मुश्ताक़ को मिला पुरस्कार सिर्फ़ उनके काम को ही रेखांकित नहीं करता बल्कि भारत की संपन्न क्षेत्रीय साहित्यिक परंपरा को भी दर्शाता है।
बेंगलुरु। प्रसिद्ध कन्नड लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी पहली किताब हार्ट लैंप के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हार्ट लैंप बानू की किताब हसीना एंड अदर स्टोरीज का अंग्रेजी वर्जन है। कन्नड़ भाषा में लिखी गई यह पहली किताब है जिसे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल हुआ है। इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 की घोषणा 20 मई को लंदन में की गई। बुकर पुरस्कार राशि 50 हजार पाउंड है। किताब हार्ट लैंप में दक्षिण भारत में मुस्लिम महिलाओं की मुश्किलों का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है। बानू मुश्ताक़ को मिला पुरस्कार सिर्फ़ उनके काम को ही रेखांकित नहीं करता बल्कि भारत की संपन्न क्षेत्रीय साहित्यिक परंपरा को भी दर्शाता है।
76 वर्षीय बानू मुश्ताक कर्नाटक के हासन जिले की रहने वाली हैं। उन्होंने छह दशकों तक लेखन, पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों में अपना योगदान दिया। उनकी कहानियां दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों के रोजमर्रा के जीवन, उनकी चुनौतियों और संघर्षों को बयां करती हैं। मुश्ताक की पहली कहानी 1974 में प्रजामाता पत्रिका में छपी थी, इसके बाद उन्होंने छह कहानी संग्रह, एक उपन्यास, निबंध और कविताएं भी लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में एडेया हनाते (2004), सफीरा (2006), हेज्जे मूडिदा हादी (1990), बेंकी माले (1999), और अन्य कई कहानियां शामिल हैं।

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