स्थायी कमिशन पर कोर्ट के फैसले से बढ़ेगा महिला अधिकारियों का मनोबल, कांग्रेस ने कहा- हम देश की सेनाओं के साथ खड़े हैं 

शौर्य और साहस को सलाम करते 

स्थायी कमिशन पर कोर्ट के फैसले से बढ़ेगा महिला अधिकारियों का मनोबल, कांग्रेस ने कहा- हम देश की सेनाओं के साथ खड़े हैं 

देश के वर्तमान माहौल को देखते हुए यह फैसला महिला अधिकारियों का मनोबल बढ़ाएगा।

नई दिल्ली। कांग्रेस ने सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि देश के वर्तमान माहौल को देखते हुए यह फैसला महिला अधिकारियों का मनोबल बढ़ाएगा। विंग कमांडर सेवानिवृत्त अनुमा आचार्य ने पार्टी मुख्यालय में कहा कि सेना की महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन को लेकर न्यायालय का एक निर्णय आया है, जो बहुत राहत देने वाला है और आज जो देश का माहौल है, उसमें इस फैसले से महिला अधिकारियों का मनोबल बढ़ाता है। वर्तमान में देश की जो स्थिति है, उसमें सेनाओं के प्रति हम अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं और उनके शौर्य और साहस को सलाम करते हैं।

अब उच्चतम न्यायालय का निर्णय आया है कि महिला अधिकारियों को तब तक बहाल रखा जाए, जब तक अगली सुनवाई अगस्त में नहीं होती। हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हैं और हम देश की सेनाओं के साथ खड़ें हैं। हम हर सैन्यकर्मी के शौर्य को हमारा सलाम है। पूर्व सेना अधिकारी ने कहा कि 9 मई को उच्चतम न्यायालय ने शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों की याचिका पर अगली सुनवाई तक उनकी सेवाएं बहाल करने के निर्देश दिये हैं। न्यायालय ने कहा कि ऐसे समय में महिला अधिकारियों का मनोबल बढ़ा रहना चाहिए। हमारी महिला अधिकारी प्रतिभाशाली हैं। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि हर वर्ष केवल 250 शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को ही परमानेंट कमीशन दिया जा सकता है। सेना में अधिकारियों का युवा काडर होना बहुत जरूरी है। इस पर उच्चतम न्यायायल ने कहा कि जो अनुभवी महिला अधिकारी हैं, वे भी युवा सैनिकों के मार्गदर्शन और मानसिक संबल के लिए बहुत आवश्यक हैं। न्यायालय का यह फैसला महिला अधिकारियों के लिए उम्मीद की किरण है।

मैं खुद इस केस की एक लाभार्थी रही हूं। साल 1992 में पहली बार महिला अधिकारियों की एंट्री शुरू हुई और वायु सेना ने रक्षा मंत्रालय की तरफ से एक सर्कुलर 25 नवंबर 1991 को जारी कर कहा था कि एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में महिला अधिकारियों को लिया जाएगा। अगर प्रयोग सफल होता है, तो आने वाले छह साल के लिए उन्हें सेवा विस्तार दिया जाएगा। फिर 11 वर्ष बाद महिला अधिकारियों से पूछा जाएगा कि क्या वे पेंशन वाली सेवा में शामिल होना चाहती हैं। साल 1999 से 2004 के बीच में जब बाकी सरकारी नौकरियों में ओपीएस खत्म हुआ तो उसी समय महिला अधिकारियों की पेंशन के लिए विकल्प देने की बात थी, वो भी खत्म हुआ। आगे चल कर 2007 में अनुपमा जोशी और स्कॉर्डन लीडर रुखसान हक ने पहले यह केस कोर्ट में दायर किया।

बाद में थल सेना की भी महिला अधिकारियों ने इस मामले को आगे बढ़ाया और 2009 आते-आते सारे केस क्लब करते हुए 14 दिसंबर 2009 को दिल्ली की हाई कोर्ट ने यह केस फैसले के लिए सुरक्षित कर लिया गया। बारह मार्च 2010 को कोर्ट का महिला अधिकारियों के पक्ष में फैसला आया और वायु सेना की महिला अधिकारियों के मामले में रक्षा मंत्रालय का एक नीतिगत पत्र जारी हुआ तो मेरे जैसी 23 महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिल गया। इस मामले में सेना ने कोई नीतिगत पत्र नहीं निकला था, तो बबिता पुनिया वर्सेस भारत सरकार को केस की बाकी महिला अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई आगे के 10 साल तक लडऩी पड़ी। इसमें नौ सेना की महिला अधिकारियों ने बाद में अपने स्थायी कमीशन की लड़ाई लड़ी। सेना की महिला अधिकारियों में, जिनमें हमारी कर्नल सोफिया कुरैशी भी शामिल है, इनको 2020 के निर्णय से पेंशनेबल सर्विस मिली। नौ सेना की अधिकारियों को उसके अगले साल मिली, लेकिन ये सब उन्हीं को मिला, जो अपना केस कोर्ट में लड़ने गए।

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वर्ष 2006 के बाद लगातार पॉलिसी बदलीं। ढाई साल पहले एनडीए के तौर पर भी महिलाओं को सेना में एंट्री मिली है और अब अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले 30 साल बाद एक या एक से अधिक महिलाओं को सेना अध्यक्ष के रूप में देखेंगे। सीडीएस का रास्ता पुरुष अधिकारियों के लिए खुला है। उसी तरह की जो स्पेशल एंट्री की स्कीम थी, उससे महिला अधिकारी सेना में आती थीं, उसे अब धीरे-धीरे पुनर्विचार किया जा रहा है।

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