सतरंगी सियासत

शरद पवार की राजनीतिक गुगली और पैंतरेबाजी का कोई जवाब नहीं

सतरंगी सियासत

कांग्रेस ने सीनियर आब्जर्वर, स्क्रिनिंग कमेटी और प्रदेश चुनाव समिति का ऐलान कर डाला। जबकि भाजपा ने अभी केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया।

आगे रहने की होड़...
राजस्थान विधानसभा चुनाव की तैयारियों के मामले में फिलहाल कांग्रेस, भाजपा से आगे दिखाई पड़ रही। कांग्रेस ने सीनियर आब्जर्वर, स्क्रिनिंग कमेटी और प्रदेश चुनाव समिति का ऐलान कर डाला। जबकि भाजपा ने अभी केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया। फिर कांग्रेस का दावा। सिंतबर के पहले सप्ताह तक अधिकांश प्रत्याशियों की घोषणा हो जाएगी। जबकि भाजपा में अभी ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ अभियान चल रहा। अभी दोनों ही दलों की कैंपेन कमेटी के ऐलान का इंतजार। क्योंकि भाजपा में वसुंधरा राजे एवं कांग्रेस में सचिन पायलट को लेकर जिज्ञासा। आखिर पार्टी का आला नेतृत्व इनके बारे में क्या निर्णय लेगा? फिलहाल तो राजे भाजपा उपाध्यक्ष और पायलट स्क्रिनिंग कमेटी के सदस्य नामित। लेकिन क्या इतने से बात बनेगी? इसीलिए नेतृत्व कब और क्या निर्णय लेगा? यह देखने वाली बात। फिलहाल तो कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले 21 नजर आ रही।

चकरघन्नी!
शरद पवार की राजनीतिक गुगली और पैंतरेबाजी का कोई जवाब नहीं। विपक्षी घटक दलों ने उन्हें आखिर समय तक मनाने की कोशिश की। लेकिन परिणाम शून्य। उन्होंने पीएम मोदी के साथ मंच ही साझा नहीं किया। बल्कि उनकी तारीफ भी की। अब सहयोगी निरुत्तरित। सो, अब आगे के घटनाक्रम पर नजर। इसीलिए महाराष्ट्र की राजनीति सभी के लिए पहेली बन रही। कब क्या हो जाए? पता नहीं। लेकिन कांग्रेस एवं शिवसेना को असहजता मिलने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा। असल में, चर्चा यह कि पवार को अपनी बेटी सुप्रिया सुले के राजनीतिक भविष्य की सबसे ज्यादा चिंता। अगली बार उनका बारामती से जीतने पर भी संदेह। क्योंकि सुप्रिया के भाई अजित दादा अब एनडीए का हिस्सा। यदि उनके बेटे पार्थ पवार यहीं से एनडीए के प्रत्याशी हुए तो? फिर शरद पवार के खास सहयोगी रहे प्रफुल्ल पटेल भी दूसरे पाले में चले गए।

उम्मीदों को झटका
जेपी नड्डा की टीम की घोषणा हो चुकी। इसमें कई नेताओं की आस टूटी। तो कुछ ने चैन की सांस ली। मानो बच गए। पिछले माह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में कई दिनों तक मंथन चला। इस कवायद को आम चुनाव- 2024 की तैयारियों के रुप में देखा गया। लेकिन जब भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची आई। तो उसमें बहुत ज्यादा फेरबदल नहीं था। हां, कुछ नए चेहरे भी सामने आए। लेकिन जो अनुमान थे कि सरकार से संगठन और संगठन से सरकार में नेताओं को फेंटा जाएगा। वैसा कुछ हुआ नहीं। जिससे कई मंत्रियों ने राहत की सांस ली। लेकिन इन सबके बीच एनडीए के नेताओं की आस मानो टूटी। जिसमें चिराग पासवान, शिवसेना शिंदे गुट एवं ‘हम’ जैसे दलों के नेताओं को मोदी मंत्रिपरिषद में स्थान मिलने का अनुमान लगाया गया। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें निराश किया!

कब क्या हो जाए?
अपने राजस्थान में चुनावी माहौल बन रहा। कांग्रेस एवं भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर। भाजपा सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जबरदस्त हमलावर। इसी बीच लाल डायरी आ गई। जिसके कथित रुप से तीन पन्ने भी अब सार्वजनिक। लेकिन सवाल तो यह कि क्या कांग्रेस पलटवार नहीं करेगी? सो, वह मुद्दा क्या होगा? आखिर कांग्रेस के तरकश में भी तीर होंगे ही। हां, भाजपा महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर दिल्ली में भी लगातार बोल रही। वह हर नेता को आगे कर रही। अब सरकार कितना सुन रही होगी। यह तो वही जाने। लेकिन माहौल तो गरमा ही रहा। यह चलेगा कब तक? और आम जनता पर यह मुहिम कितना असर डालेगी? मासूम बच्चियों के खिलाफ हो रहे जघन्य अपराधों का जवाब देना क्या सरकार की ही जिम्मेदार? क्या समाज की कोई भूमिका नहीं? यह कौन समझेगा?

कितने दिन?
राजधानी दिल्ली में बड़े बाबुओं के ट्रांसफर एवं पोस्टिंग से जुड़ा विधेयक संसद में पारित हो गया। लेकिन विपक्षी एकता के चक्कर में कांग्रेस ने अपने ही घर में झगड़ा जरुर करवा लिया। बात चाहे दिल्ली इकाई की हो या पंजाब की। ‘आप’ का साथ देने पर कांग्रेस नेताओं ने आलाकमान से विरोध जताया। उसी दबाव का परिणाम रहा। कांग्रेस ने लोकसभा में व्हीप तक जारी नहीं किया। यह ‘आप’ को कांग्रेस का झटका। सो, राजनीतिक जानकारों का अनुमान। पटना और बेंगलुरु बैठक का एजेंडा खराब नहीं हो। इसके लिए कांग्रेस ने ‘आप’ का साथ देने की हामी तो भर दी। लेकिन मौका आने पर अपनों की भी चिंता की। फिर कांगेस-आप का साथ कितने दिनों का? इस पर संशय के बादल! फिर बची खुची आस बीजद, बीआरएस, वायएसआर कांग्रेस एवं टीडीपी ने भी तोड़ दी। ऐसे में विपक्षी एकता कितने समय की?

आखिर माजरा क्या?
तो बीते सप्ताह भी संसद में मणिपुर छाया रहा। राज्यसभा में तो चर्चा का दिन और समय भी तय कर दिया गया। लेकिन विपक्षी सांसद पीएम मोदी को सदन में बुलाने पर अड़े रहे। हां, लोकसभा में शोर शराबे के बावजूद सरकार ने महत्वपूर्ण विधायी कामकाज निपटा लिया। तो फिर मणिपुर के बहाने संकेत क्या? आखिर विपक्ष की मंशा क्या और सरकार का इरादा क्या? फिर केरल से एक विवादित विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। तो हरियाणा के नुहूं में हिंसा का तांडव। सो, सर्वोच्च न्यायालय के स्वत: संज्ञान लेने की भी बात उठी। फिर बंगाल की चुनावी हिंसा को कौन भूलेगा? लेकिन सारा फोकस आखिर मणिपुर पर ही क्यों? इधर, एससी में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद- 370 हटाने के मामले की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो चुकी। जबकि ज्ञानवापी परिसर के सर्वे को भी अदालत की हरी झंडी। आखिर माजरा क्या?

-दिल्ली डेस्क 
(यह लेखक के अपने विचार है)

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