खेल परिषद की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक की कृष्णा वाटिका बनी अनदेखी का शिकार, सूख गए हरियाली के सपने

जब प्रदेश में सरकार बदली तो कर्मचारियों का रुख भी बदल गया

खेल परिषद की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक की कृष्णा वाटिका बनी अनदेखी का शिकार, सूख गए हरियाली के सपने

कर्मचारियों की ऐसी बेरुखी दिखी कि कोई इन पौधों को पानी देने भी नहीं पहुंचा।

जयपुर। सवाई मानसिंह स्टेडियम में हरियाली को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के उद्देश्य से राजस्थान खेल परिषद की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया ने जो कृष्णा वाटिका बनाई वह सरकार बदलने के साथ ही अनदेखी का शिकार बन गई। दो साल पहले परिषद के कर्मचारियों ने अपनी अध्यक्ष के वृक्ष लगाओ- जीवन बचाओ अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए खूब पौधे लगाए लेकिन जब प्रदेश में सरकार बदली तो कर्मचारियों का रुख भी बदल गया। कर्मचारियों की ऐसी बेरुखी दिखी कि कोई इन पौधों को पानी देने भी नहीं पहुंचा। इंसानी जीवन को बचाने की उम्मीद से लगाए ये पौधे खुद ही दम तोड़ गए। सारे पौधे सूख गए हैं या उखाड़ दिए गए हैं।

दो जगह बनाई थी कृष्णा वाटिका, अब सिर्फ बोड टंगा है :

स्टेडियम में अमर जवान ज्योति गेट पर वालीबाल ग्राउण्ड के पास और रामबाग गेट पर बैडमिंटन हॉल के समीप दो जगह पर कृष्णा वाटिका बनाई गई। लेकिन अब दोनों ही स्थानों पर पौधों की जगह सिर्फ कृष्णा वाटिका का बोर्ड टंगा है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि कृष्णा वाटिका का बोर्ड लगे करीब दो साल का समय हो रहा है लेकिन परिषद के जिम्मेदार अधिकारी बोर्ड पर लिखा अपनी पूर्व अध्यक्ष का नाम भी दुरुस्त नहीं कर सके। 

सबसे ज्यादा पौधे लगाए गजेन्द्र सिंह खींवसर ने :

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पूर्व खेलमंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के कार्यकाल के दौरान स्टेडियम में सबसे ज्यादा पौधे लगाए गए, जो आज बड़े वृक्ष बन गए हैं और लोगों को छांव दे रहे हैं। खींवसर ने पौधों के रखरखाव के लिए कर्मचारियों की ड्यूटी भी लगाई थी। लेकिन उन्होंने स्टेडियम में कहीं अपना बोर्ड नहीं लगाया। 

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लोगों और खिलाड़ियों ने जताई निराशा :

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स्टेडियम में वॉक के लिए आने वाले लोगों और खिलाड़ियों ने इस स्थिति से निराश जताई है। उनका कहना है कि अगर इन पौधों की देखरेख ठीक से की जाती तो स्टेडियम परिसर में हरियाली बढ़ती। यह न केवल खिलाड़ियों के लिए एक सुकूनदायक वातावरण प्रदान करता, बल्कि पर्यावरण के प्रति सकारात्मक संदेश भी देता। लोगों का कहना है कि ऐसी पहल को राजनीतिक बदलाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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