दलित छात्र ने गोबर उठाने से किया इनकार, बेरहमी से पीटकर पहुंचा दिया ICU
माता-पिता की आर्थिक स्थिति इतनी खराब
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने कहा कि झारखंड में लातेहार जिले के होटवाग स्थित अनुसूचित जाति आवासीय विद्यालय में 18 जून को दलित छात्र विवेक कुमार के साथ हुई बर्बर पिटाई की घटना
रांची। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने कहा कि झारखंड में लातेहार जिले के होटवाग स्थित अनुसूचित जाति आवासीय विद्यालय में 18 जून को दलित छात्र विवेक कुमार के साथ हुई बर्बर पिटाई की घटना झारखंड में जारी जातीय भेदभाव और संस्थागत हिंसा का गंभीर प्रमाण है।
आइसा ने आज कहा कि छात्र को केवल इसलिए पीटा गया क्योंकि उसने गोबर उठाने से इनकार किया। यह घटना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि संविधान प्रदत्त अधिकारों का सीधा उल्लंघन भी है। घटना के बाद विवेक की हालत लगातार बिगड़ती गई। पहले लातेहार और फिर पलामू के अस्पतालों में भर्ती रहने के बाद जब सुधार नहीं हुआ, तो उसे रांची स्थित रिम्स के आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा। 8 दिनों तक निजी अस्पताल में रहने के बाद भी उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वे इलाज, दवाओं और देखभाल की बुनियादी आवश्यकताएं तक नहीं जुटा पा रहे हैं। प्रशासन की तरफ से कोई ठोस आर्थिक सहायता अब तक नहीं दी गई है। दूसरी तरफ, मामले को दबाने के लिए झूठे तर्क और बयानबाजी की जा रही है।
आइसा के झारखंड के राज्य सचिव कॉमरेड त्रिलोकीनाथ, संजना मेहता और विजय कुमार ने आज रिम्स जाकर विवेक से मुलाकात की और पूरे मामले की वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ कि विद्यालय में दलित छात्रों के साथ जबरन सफाई करवाने और भेदभावपूर्ण व्यवहार की नियमित प्रवृत्ति रही है। यह न सिर्फ एक संस्थान की विफलता है, बल्कि राज्य सरकार की निगरानी तंत्र की भी विफलता है।
आइसा स्पष्ट तौर पर मांग करता है कि पीड़ित छात्र को त्वरित, मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण इलाज की गारंटी दी जाए। उसके माता-पिता को समुचित आर्थिक सहायता दी जाए। विद्यालय के भीतर जातीय भेदभाव और जबरन श्रम के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच हो और दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही राज्य के सभी आवासीय विद्यालयों में जातीय समानता और छात्रों की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।यदि इन मांगों पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो आइसा राज्यभर में छात्र-युवा आंदोलन छेड़ेगा। यह केवल विवेक का मामला नहीं है। यह सामाजिक न्याय, समानता और छात्र अधिकारों की निर्णायक लड़ाई है। इस अन्याय के खिलाफ चुप रहना अपराध है।

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