सरकार की आर्थिक नीतियों से बढ़ रही असमानता : समाज का एक हिस्सा बहुत अमीर और दूसरा हो रहा गरीब, जयराम रमेश ने कहा- रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्षरत भारतीय

सरकार द्वारा भारत को भी उसी रास्ते पर धकेला जा रहा है

सरकार की आर्थिक नीतियों से बढ़ रही असमानता : समाज का एक हिस्सा बहुत अमीर और दूसरा हो रहा गरीब, जयराम रमेश ने कहा- रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्षरत भारतीय

एक तरफ करोड़ों भारतीय रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ केवल 1687 लोगों के पास देश की आधी दौलत है।

नई दिल्ली। कांग्रेस ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उसकी नीतियां केंद्रीयकरण पर आधारित हैं। इसलिए देश में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है। कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश एक बयान में कहा कि देश की अर्थव्यवस्था का तेजी से केंद्रीयकरण हो रहा है, जिसके चलते समाज का एक हिस्सा बहुत अमीर तो दूसरा हिस्सा उतना ही गरीब होता जा रहा है। यह बात  भारत की अर्थव्यवस्था की हर रिपोर्ट कह रही है। ये हमें भारत में धन के व्यापक केंद्रीकरण के बारे में आगाह कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि एक तरफ करोड़ों भारतीय रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ केवल 1687 लोगों के पास देश की आधी दौलत है। मोदी सरकार-प्रेरित आर्थिक नीतियों के कारण धन का इतना बड़ा केंद्रीयकरण देश में विकट आर्थिक असमानता उत्पन्न कर रहा है। ये असमानता व्यापक सामाजिक असुरक्षा और असंतोष बढ़ा रही है। अन्य देशों में हाल की तारीखें गवाह हैं कि यही घनघोर आर्थिक असमानता और पंगु लोकतांत्रिक संस्थाएं राजनीतिक अराजकता करने में कैटलिस्ट बनी हैं। सरकार द्वारा भारत को भी उसी रास्ते पर धकेला जा रहा है।

रमेश ने कहा कि सत्ता के गठजोड़ से चंद उद्योगपति और अमीर होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियां उनके चंद उद्योगपति मित्रों के फायदे के लिए ही केंद्रित हैं। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़, एमएसएमई हमेशा रहा है लेकिन यह क्षेत्र अभूतपूर्व दबाव में है। यह दबाव केवल घरेलू नीतियों का ही नहीं, बल्कि विदेश नीति की असफलताओं का भी नतीजा है। आम लोगों के लिए कमाई के अवसर घटते जा रहे हैं और महंगाई लगातार इस कदर बढ़ रही है कि नौकरीपेशा लोगों की जेब में भी बचत की जगह कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश लगातार घट रहा है और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं कमजोर हो रही हैं।

 

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