नदियों को विवाद नहीं, विकास का माध्यम बनाएं 

गंगा विश्व में भारत की पहचान है

नदियों को विवाद नहीं, विकास का माध्यम बनाएं 

घरेलू और औद्योगिक गंदा पानी बहकर जाता है, जलवायु नियंत्रण में मदद करती हैं।

जैव विविधता को बढ़ावा देने से लेकर जलवायु को नियंत्रित करने और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने तक स्वस्थ, निर्मल एवं पवित्र मुक्त बहने वाली नदियां इंसानी जीवन के साथ प्रकृति, कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। नदियां मानव अस्तित्व का मूलभूत आधार हैं और देश एवं दुनिया की धमनियां हैं, इन धमनियों में यदि प्रदूषित जल पहुंचेगा तो शरीर बीमार होगा, लिहाजा हमें नदी रूपी इन धमनियों में शुद्ध जल के बहाव को सुनिश्चित करना होगा। नदियों के समक्ष आने वाले खतरों, जैसे प्रदूषण, आवास की क्षति और जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन के बारे में जागरूकता बढ़ाएं। नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किए जाने की जरूरत है। बढ़ते नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए उनमें अपशिष्ट या सीवेज, कारखानों से निकलने वाले तेल, कैमिकल, धुंआ, गैस, एसिड, कीचड़, कचरा, रंग को डालने से रोकना होना, हमने जीवनदायिनी नदियों को अपने लोभ, स्वार्थ, लापरवाही के कारण जहरीला बना दिया है। दुनियाभर में नदी जल एवं नदियों के लिए कानून बने हुए है, आवश्यक हो गया है कि उस पर पुनर्विचार कर देश एवं दुनिया के व्यापक हित में विवेक से निर्णय लिया जाना चाहिए। हमारे राजनीतिज्ञ, जिन्हें सिर्फ वोट की प्यास है और वे अपनी इस स्वार्थ की प्यास को इस पानी से बुझाना चाहते हैं। नदियों को विवाद बना दिया है, आवश्यकता है तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर व्यापक मानवीय हित के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। जीवन में श्रेष्ठ वस्तुएं प्रभु ने मुफ्त दे रखी हैं- पानी, हवा और प्यार। और आज वे ही विवादग्रस्त, दूषित और झूठी हो गईं। जैव विविधता को बढ़ावा देने से लेकर जलवायु को नियंत्रित करने और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने तक स्वस्थ, निर्मल एवं पवित्र मुक्त बहने वाली नदियां इंसानी जीवन के साथ प्रकृति, कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में भारत सहित दुनिया की तमाम नदियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। नदियों के सामने जहां प्रदूषण व अतिक्रमण जैसी भयावह चुनौतियां खड़ी हैं, वहीं उनमें निरंतर घट रही पानी की मात्रा भी गंभीर चिंता में डालने वाला है। कस्बों व शहरों के घरेलू, औद्योगिक कचरे एवं गन्दगी के बहिस्राव के कारण नदियों ने गंदे नाले का रूप लेना प्रारंभ कर दिया है। सैकड़ों बरसाती नदियां बहुत पहले ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। आज जब नदियां प्रदूषित हो रही हैं तो किनारे बसा समाज भी उस प्रदूषण के असर से बच नहीं पा रहा है। हमारी कृषि व्यवस्था का कुछ हिस्सा भी उससे प्रभावित हो रहा है। आज गंदे पानी को नदी जल से अलग रखने के विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस गंदे पानी को उपचारित करके उसे कृषि कार्यों व उद्योगों में उपयोग में लाया जा सकता है। समूची दुनिया में पीने का शुद्ध पानी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। पानी अत्यधिक जहरीला हो चुका है। इस कारण पीने के पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। भारत नदियों का एक अनोखा देश है, जहां नदियों को पूजनीय माना जाता है लेकिन दुर्भाग्य से प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु (सिंधु), और कावेरी जैसी नदियों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में बनाया गया जल शक्ति मंत्रालय, नदी घाटियों में आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार और संरक्षण और नदी प्रदूषण के खतरनाक स्तर से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है। देश के समक्ष वाटर विजन 2047 प्रस्तुत किया गया है यानी आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक देश को प्रत्येक वह कार्य करना है, जो देश को पानी के मामलों में सबल बना सके। इसमें हमारी नदियां भी शामिल हैं। हमें अपनी नदियों को 2047 तक निर्मल व अविरल बनाने के संकल्पित लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना होगा। भारत की नदियों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत एवं बढ़ते प्रदूषण पर पिछले चार दशकों से लगभग हर सरकार कोरी राजनीति कर रही है, प्रदूषणमुक्त नदियों का कोई ईमानदार प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दिया है। नदियां हमारे जीवन की जीवन रेखा है, गति है, ताकत है। ये पानी, बिजली, परिवहन, मछली और मनोरंजन के लिए स्रोत हैं। नदियां पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद हैं। नदियों के किनारे बसे शहरों की वजह से ये आर्थिक रूप से भी अहम हैं, इनसे ताजा पीने का पानी मिलता है, बिजली बनती है, खेती के लिए जरूरी उपजाऊ मिट्टी मिलती है। नदियों से जल परिवहन होता है। घरेलू और औद्योगिक गंदा पानी बहकर जाता है, जलवायु नियंत्रण में मदद करती हैं। नदियां प्राकृतिक संपदा हैं। 

नदियां आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रमुख स्रोत हैं, जिनके किनारे कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। नदियों के किनारे ही कई प्रमुख शहर, शैक्षिक और पर्यटन से जुड़े शहर बसे हैं। नदियों की  सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैं, लेकिन लगता है सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। आधुनिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, किन्तुु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है। गंगा ने अपनी विभिन्न धाराओं से, विभिन्न स्रोतों से भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया, गंगा विश्व में भारत की पहचान है। 
- ललित गर्ग 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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