भाजपा-आरएसएस की सोच संविधान विरोधी : बार-बार करते है नए संविधान की मांग, कांग्रेस ने कहा- अब संविधान से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की कर रहे मांग
संविधान की प्रस्तावना में बदलाव करने की मांग की
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव करने की मांग की है। होसबोले का कहना है कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाया जाए।
नई दिल्ली। कांग्रेस ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी-भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-आरएसएस की विचारधारा संविधान विरोधी है। इसलिए बार-बार नये संविधान की मांग की जाती रही है, लेकिन अब इसी विचारधारा के लोगों ने सीधा हमला करते हुए संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग शुरु कर दी है। कांग्रेस ने कहा कि भाजपा आरएसएस की संविधान विरोधी सोच अब खुलकर सामने आ गयी है। इसलिए आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव करने की मांग की है। होसबोले का कहना है कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाया जाए।
पार्टी ने कहा कि यह बाबा साहेब के संविधान को खत्म करने की साजिश है और आरएसएस भाजपा हमेशा यही साजिश करती रही है, जब संविधान लागू हुआ था, तो आरएसएस ने इसका विरोध करते हुए संविधान को जलाया था। पिछले लोकसभा चुनाव में तो भाजपा नेताओं ने खुलकर कहा कि उन्हें संविधान बदलने के लिए संसद में 400 के पार सीट चाहिए, लेकिन जनता उनकी साजिश समझ गई थी। इसलिए जनता ने ही उनको सबक सिखाया। अब एक बार फिर वे साजिश करने में जुट गये हैं, लेकिन कांग्रेस किसी कीमत इनके मनसूबों को कामयाब नहीं होने देगी।
इस बीच कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। 1949 से ही डॉ. अंबेडकर, नेहरू और संविधान निर्माण से जुड़े अन्य लोगों पर हमले किए। स्वयं आरएसएस के शब्दों में, यह संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था। उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा ने बार-बार नये संविधान की मांग उठाई है और 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यही चुनावी नारा था। लेकिन भारत की जनता ने इस नारे को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया। फिर भी, संविधान के मूल ढांचे को बदलने की मांग लगातार आरएसएस इकोसिस्टम द्वारा की जाती रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं 25 नवंबर 2024 को उसी मुद्दे पर एक फैसला सुनाया था, जिसे आरएसएस के एक प्रमुख पदाधिकारी ने अब फिर उठाया है। आरएसएस भाजपा के लोगों को उस फैसले को पढऩा चाहिए।

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