पाकिस्तान में है दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी

नालंदा का भाग्य अब संवर रहा है

पाकिस्तान में है दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी

इस विश्वविद्यालय का कई उल्लेख मिलता है। फाहियान (फैक्सैन) और ह्वेन त्सांग (जुआनजैंग) जैसे चीनी यात्री भी अपने लेखन में तक्षशिला का उल्लेख करते हैं।

इस्लामाबाद। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया है। नालंदा सैकड़ों साल पहले अब के समय के पूरे उत्तर भारत के लिए ज्ञान का केंद्र था। तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी की सेना ने इस विश्वविद्यालय पर हमला कर इसकी इमारत को लूटा और जला दिया। इसके बाद भी नालंदा यूनिवर्सिटी के विशाल परिसर के खंडहर अपनी महानता की गवाही देते रहे हैं। नालंदा का भाग्य अब संवर रहा है लेकिन दक्षिण एशिया में ही एक और यूनिवर्सिटी है, जो आज भी बेहद बदहाल स्थिति में है। ये तक्षशिला यूनिवर्सिटी है, जो पाकिस्तान के रालवपिंडी शहर में है। इसे दुनिया की सबसे पुराना विश्वविद्यालय कहा जाता है। इस यूनिवर्सिटी के खंडहर आज भी भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च शिक्षा के इतिहास की गवाही दे रहे हैं। दुनिया का पहला विश्वविद्यालय 700 ईसा पूर्व में तक्षशिला में स्थापित किया गया था। शिक्षा का यह केंद्र पाकिस्तान में रावलपिंडी शहर से 50 किमी पश्चिम में स्थित था। यह शिक्षा का एक महत्वपूर्ण वैदिक/हिंदू और बौद्ध केंद्र था। हालांकि यह नालंदा विश्वविद्यालय जितना व्यवस्थित नहीं था। माना जाता है कि तक्षशिला की शुरूआत भरत के पुत्र तक्ष के समय हुई। इसका उल्लेख महाभारत में भी किया गया है और बौद्ध जातक कथाओं में इस विश्वविद्यालय का कई उल्लेख मिलता है। फाहियान (फैक्सैन) और ह्वेन त्सांग (जुआनजैंग) जैसे चीनी यात्री भी अपने लेखन में तक्षशिला का उल्लेख करते हैं।

10 हजार से ज्यादा छात्रों ने की पढ़ाई
ऐसा माना जाता है कि तक्षशिला में दुनियाभर से आए करीब 10,500 छात्रों ने अध्ययन किया था। परिसर में बेबीलोनिया, ग्रीस, अरब और चीन से आए छात्रों को भी जगह दी गई। विज्ञान, गणित, चिकित्सा, राजनीति, युद्ध, ज्योतिष, खगोल विज्ञान, संगीत, धर्म और दर्शन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में साठ से अधिक पाठ्यक्रम यूनिवर्सिटी में थे। तीरंदाजी, शिकार और हाथी विद्या भी यहां सिखाई जाती थी। छात्र तक्षशिला आते थे और अपने चुने हुए विषय में शिक्षा ग्रहण करते थे। तक्षशिला में किसी भी छात्र के लिए दाखिला लेना काफी कठिन था। दाखिला लेने 10 में से केवल 3 छात्र ही प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हुए।

7वीं शताब्दी के दौरान यहां छात्र आना बंद हो गए
प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणविद् पाणिनि, प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक कौटिल्य (चाणक्य) और चरक और चंद्रगुप्त मौर्य इसी विश्वविद्यालय से पढ़े थे। कहा जाता है कि चाणक्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना तक्षशिला में ही हुई थी। 5वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हेफथलाइट आक्रमणों का शिकार होने के बाद ये यूनिवर्सिटी अपना आकर्षण खोती चली गई। 7वीं शताब्दी के दौरान यहां छात्र आना बंद हो गए। इसके सैकड़ों साल बाद 1913 में हुई खुदाई में इससे जुड़ी अहम जानकारी हासिल हुई। तक्षशिला को 1980 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया। पाकिस्तान के लोग भी तक्षशिला विश्वविद्यालय से अपना इतिहास जोड़ते रहे हैं। पाकिस्तानी अपने देश के बनने के 75 साल के इतिहास को भूलते हुए कहते हैं कि तक्षशिला प्राचीन पाकिस्तान का हिस्सा था। कुछ समय पहले पाक नेताओं ने ये भी कहा था कि कौटिल्य तथा पाणिनी दोनों ही प्राचीन पाकिस्तान के बेटे थे।

 

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