जल संकट मिटाने के लिए बदलाव जरूरी
पानी को लेकर अनेक राज्यों में मारा-मारी के हालात बने रह सकते
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के अध्ययन के मुताबिक भारत में विकास की रफ्तार बढ़ने के साथ पानी का संकट लगातार बढ़ता जाएगा।
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के अध्ययन के मुताबिक भारत में विकास की रफ्तार बढ़ने के साथ पानी का संकट लगातार बढ़ता जाएगा, जिससे पानी को लेकर अनेक राज्यों में मारा-मारी के हालात बने रह सकते हैं। जाहिर तौर पर पानी की खपत पिछले 40-50 वर्षों में तेजी के साथ बढ़ी है। एक दशक से पानी की मांग प्रति व्यक्ति 100 से 120 लीटर के बीच रही है जो 2025 तक बढ़कर 125 लीटर हो गई है। अब पानी की मांग 7900 करोड़ लीटर से ज्यादा हो गई है। राष्ट्रीय जल आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 1997 में जल की उपलब्धता 575 क्यूबिक किमी थी, लेकिन अब यह लगभग 500 क्यूबिक किमी है जबकि मांग 800 क्यूबिक किमी के लगभग है। यानी उपलब्धता के एवज में मांग बहुत ज्यादा है। केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2025 तक भूजल जलस्तर और घटकर 1,434 घन मीटर तथा वर्ष 2050 तक 1,219 घन मीटर हो जाएगा। वर्ल्ड बैंक के इस आकलन पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि अगले 20 सालों में भूजल के 60 फीसदी स्रोत खतरनाक हालात में पहुंच जाएंगे। क्योंकि जल की हमारी 70 फीसदी मांग भूजल के स्रोतों से पूरी होती है।
जाहिर है, तब न तो फसल उगाने के लिए पानी होगा और न तो उद्योग-धन्धों के लिए ही। खेती-किसानी तो बर्बाद होगी ही, देशा की बहुत बड़ी आबादी जल की एक-एक बूंद के लिए तरस सकती है। ऐसे में पानी की बर्बादी को रोकना जरूरी है। दुनिया में आज सबसे बड़ा संकट आतंकवाद और पर्यावरण प्रदूषण है, लेकिन 2050 में पानी संकट सबसे बड़ा संकट होगा। भूवैज्ञानिक मानते हैं कि 2025 तक दुनिया की आबादी 8 अरब और 2050 तक 9 अरब को पार कर जाएगी। एशिया, अफ्रीका, यूरोप आदि में बसने वाले देशों की बड़ी आबादी पानी की किल्लत से जूझ रही होगी। इन देशों में सब-सहारा, कांगो, मोजांगिक, भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल, मयम्मार, चीन, कोरिया, घाना, केन्या, नामीबिया, अफगानिस्तान, अरब अमीरात, ईरान, ईराक, सीरिया सहित तमाम मुल्क शामिल होंगे। 2050 में साढ़े पांच अरब लोग पानी के संकट से जूझ रहे होंगे। जिस तरह से विकासशील देशों में गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है, उससे यह अनुमान लगाया गया है कि 2025 के अंत तक दुनिया की आधी आबादी शहरों में रह रही होगी, जिससे जल संकट और भी गहरा हो सकता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के नए शोध के मुताबिक भारत के 700 जिलों में से 256 जिले पानी की अतिगंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। अतिदोहन की वजह से भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है जिससे कुएं, पोखर, तालाब जैसे परंपरागत जल स्रोत सूख रहे हैं। समस्या महज परंपरागत जल स्रातों का सूखने तक नहीं है, बल्कि जो भूजल बचा है वह प्रदूषित भी होता जा रहा है।
यह समस्या इतनी विकट है कि इसका समाधान सरकार भी नहीं कर पा रही है। साफ पानी जानवरों को पीने के लिए न मिल पाने की वजह से जानवर बीमारियों के चपेट में आकर मर रहे हैं, इससे देश के पशुधन पर असर हो रहा है। घरेलू इस्तेमाल का पानी उन इलाकों में भी साफ नहीं मिल पा रहा है, जहां तीस-चालिस साल पहले जल सदानीरा की तरह बहता और मिलता था। इंटरनेशनल हाइड्रोलॉजिकल प्रोग्राम के अनुमान के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के कारण अगले 10 सालों में वाष्पीकरण की रफ्तार आज की तुलना में दुगनी हो जाएगी। इसकी वजह से नदियों और अन्य जल स्रोतों का पानी कम हो जाएगा। गर्मी बढ़ने से ध्रूवों की बर्फ तेजी के साथ पिघलेगी। इससे मीठा पानी खारे समुद्र में मिल जाएगा, जिससे मीठे पानी के जलस्रोत सूखते चले जाएंगे। पानी की उपलब्धता इतनी कम हो जाएगी कि दो-चार गिलास पानी से नहाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दूसरी समस्या जो सबसे विकराल रूप में सामने आ सकती है वह है, जल के लिए पलायन की। ऐसे स्थानों पर आबादी का विकट दबाव हो सकता है। इससे आर्थिक, सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी। निवासियों और विस्थापितों के बीच एक संघर्ष की स्थिति बनेगी जो कई नई समस्याओं को जन्म देगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार वर्ष 2030 तक 70 करोड़ लोगों को अपने क्षेत्रों से विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। केन्द्रीय मौसम विज्ञान के मुताबिक देशभर में कुल वार्षिक बारिश 1,170 मिमी होती है, और वह भी महज तीन महीने में। यदि बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की किल्लत से ही निजात नहीं मिलेगी, बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
मतलब जल संरक्षण और जल के बेहतर इस्तेमाल से पानी के संकट से देश को उबारा जा सकता है। जिन इलाकों में बरसात बहुत कम होती है, वहां तो पाताल का पानी ही एक मात्र स्रोत होता है, वहां कैसे पानी की किल्लत से उबरा जाए, इस पर गौर करने की जरूरत है। ऐसे में बरसात के पानी को संरक्षित करके ही इस संकट से उबरा तो जा सकता है, लेकिन बहुराष्टÑीय कम्पनियों के जरिए किए जा रहे पानी के मनमाना दोहन को रोकना भी बहुत जरूरी है। पानी की बढ़ती किल्लत पर आम आदमी और सरकारों का लापरवाही वाला रवैया चिंता जनक है। भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
-अखिलेश आर्येन्दु
यह लेखक के अपने विचार हैं।
Comment List