अहमदिया मुस्लिम समुदाय के मुस्लिम होने पर विवाद
पिछले महीने आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुसलमानों को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया
मोटे तौर अहमदिया समुदाय की संख्या एक करोड़ मानी जाती है, जिसमें से आधे पाकिस्तान में ही रहते हैं, भारत में इनकी संख्या लगभग 10 लाख होने का अनुमान है।
अहमदिया मुसलमान मुस्लिम है या नहीं यह एक पुराना विवाद है। इसको लेकर कई तरह की हिंसा पड़ोसी देश में होती रहती है। वहां की सरकार ने इन्हें काफिर (गैर मुस्लिम) घोषित कर रखा है। भारत में इन्हें अधिकारिक रूप से मुसलमानों से अलग नहीं माना जाता। भारत में जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द जैसा प्रमुख मुस्लिम संगठन न केवल इन्हें गैर मुस्लिम मानता है बल्कि भारत सरकार से भी यह मांग करता रहा है कि देश में इन्हें अधिकारिक रूप से गैर मुस्लिम करार कर दिया जाए।
ताजा विवाद तब शुरू हुआ जब पिछले महीने आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुसलमानों को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया। इस पर तुरंत केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि भारत में अहमदिया समुदाय मुसलमान ही है, इससे अलग नहीं। अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के वक्तव्य जारी कर इस मुद्दे पर भारत सरकार का रुख साफ कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि देश में किसी भी मुस्लिम संस्था को अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित करने का अधिकार नहीं।
आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक दशक पूर्व भी ऐसी ही घोषणा की थी। जमियत-उलेमा-ए-हिन्द ने तब भी वक्फ बोर्ड के निर्णय का समर्थन किया था। लेकिन जब मामला आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा तो बोर्ड के इस निर्णय को परले सिरे से ख़ारिज कर दिया गया। इस बार भी जमीयत ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के फैसले का स्वागत किया है। अहमदिया समुदाय का अस्तित्व भारत में लगभग 130 वर्ष पूर्व हुआ था तब से लेकर अब तक इसको लेकर विवाद ही रहा है। पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक छोटा सा शहर कादिया है। 19वीं सदी के मध्य में यहां के एक बड़े मुस्लिम जमींदार के घर एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम गुलाम अहमद कादियानी रखा गया था। उसे पढ़ने लिखने का शौक था। बहुत जल्दी ही उसने कुरान को न केवल पढ़ लिया बल्कि उसे कंटस्थ भी कर लिया। कुछ बड़ा होकर वह एक मुस्लिम विद्वान् बन गया। 19वीं सदी के अंत में वह अपने धार्मिक भाषणों में कहने लगा कि केवल मोहम्मद ही खुदा का आखरी पैंगम्बर नहीं था। इस्लाम में मोहम्मद को आखरी पैगंबर माना जाता है। 1889 में उसने अपने आपको पैगम्बर या नबी घोषित कर दिया। अविभाजित पंजाब में उनके मानने वालों की तादाद तेजी से बढ़ने लगी। उनकी अलग धार्मिक सभाएं होने लगी, जिसका अन्य मुसलमानों ने विरोध किया। देश के विभाजन तक इस समुदाय का मुख्यालय कादिया ही था। इसलिए गुलाम अहमद के मानने वालों को कादियानी भी कहा जाता है। हालांकि मुल्ले मौलवियों ने अहमदियों को कभी भी मुसलमान नहीं माना, लेकिन मोटे तौर पर यह समुदाय मुसलमान ही माना जाता रहा। ये अन्य मुसलमानों की तरह इस्लाम के सभी सिद्धातों को मानते हैं। नमाजÞ पढ़ते है तथा मुस्लिम त्योहारों को मनाते है। पाकिस्तान बनने के बाद अधिकतर अहमदिया वहां चले गए, लेकिन काफी समय तक इस समुदाय का मुख्यालय कादिया ही बना रहा। साल में एक बार पाकिस्तान में बसे अहमदिया यहां जत्थे के रूप में आते थे। बाद में इस समुदाय ने अपना मुख्यालय लाहौर के पास बना लिया तथा बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग यहां आकर बस गए। इस शहर का नाम रब्वाह है। 1974 में पाकिस्तान के फौजी शासक याह्या खान ने मुल्क में शरियत को कड़ाई से लागू कर दिया तो अहमदिया को भी काफिर घोषित कर दिया गया। इस समुदाय के लोगों पर मुस्लिम मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके चलते इस समुदाय, जिसमें शिक्षा बहुत अधिक है, अपनी अलग से मस्जिदें बना ली। पकिस्तान के आणविक बम वाले और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद अब्दुस सलाम इसी समुदाय से आते हैं। पाकिस्तान के बाद कई मुस्लिम देशों ने भी इन्हें गैर मुस्लिम घोषित कर दिया।
जब पाकिस्तान में समुदाय और समुदाय की मस्जिदों पर हमले की घटनाएं बढ़ने लगी तो इनके धार्मिक नेताओं ने अपना मुख्यालय लन्दन में बना लिया। मोटे तौर अहमदिया समुदाय की संख्या एक करोड़ मानी जाती है, जिसमें से आधे पाकिस्तान में ही रहते हैं, भारत में इनकी संख्या लगभग 10 लाख होने का अनुमान है। देश की पिछली सभी सरकारों की यह घोषित नीति रही है कि अहमदिया लोग अन्य मुसलमानों के तरह मुस्लिम श्रेणी में ही आते हैं। इसलिए अन्य मुस्लिम संगठनों का यह दवाब नहीं माना गया कि इन्हें गैर मुस्लिम घोषित कर दिया जाए।
लोकपाल सेठी-
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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