जानें राज काज में क्या है खास
नाराज अफसर-असंतुष्ट वर्कर
अटारी वाले भजनजी भाई साहब की बदलती बॉडी लैंग्वेज को लेकर भगवा वाले कई वर्कर माथा लगा रहे हैं, मगर उनकी समझ में नहीं आ रहा कि इसके पीछे का राज क्या है।
बदलती बॉडी लैंग्वेज :
अटारी वाले भजनजी भाई साहब की बदलती बॉडी लैंग्वेज को लेकर भगवा वाले कई वर्कर माथा लगा रहे हैं, मगर उनकी समझ में नहीं आ रहा कि इसके पीछे का राज क्या है। वे सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वाले के ठिकाने से लेकर सचिवालय तक सूंघासांघी कर रहे हैं, मगर उनकी पार नहीं पड़ रही। अब उनको कौन समझाए कि भाई साहब जो काम दाएं हाथ से करते हैं, तो बाएं हाथ तक को पता नहीं चलने देते। साहब की बदली बॉडी लैंग्वेज से लगता है कि साहब की हर मंशा पूरी हो रही है, और तो और उनको जिनको मैसेज देना है, वो साल बदलने से पहले ही दे देंगे। राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं है। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
नाराज अफसर-असंतुष्ट वर्कर :
राज के रत्नों ने अपने-अपने हिसाब से काम करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। कुछेक ने तो अपनी दूसरी पीढ़ी को भी दिन-रात लगाया, ताकि काम में कोई कसर नहीं रहे। कसर किस बात की, यह तो अपने-अपने हिसाब से मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन रत्नों ने न दिन देखा और नहीं रात। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि राज के रत्नों की ओर से इतना करने के बाद भी न तो अफसर राजी है और नहीं वर्कर्स संतुष्ट है। अब कहने वालों का मुंह तो पकड़ा नहीं जा सकता और वो भी न आगा देखते और नहीं पीछा। वो कहते है कि भविष्य की सोच कर ही तो राज के रत्न दिन-रात काम कर रहे हैं, पता नहीं अगली बार दूसरी पीढ़ी के लिए ऐसा काम करने का मौका मिले या नहीं।
डिफरेंस ऑफ ओपिनियन :
राज में आजकल डिफरेंस ऑफ ओपिनियन का असर साफ दिखने लगा है। इससे कुर्सी के इंतजार में लाइन में खड़े लोग चिन्ता में ऐसे डूबे हुए हैं कि न तो उनको दिन में चैन है और नहीं रातों को नींद आती है। सत्ता चलाने वाले भाई साहब अनुभवी और पुराने लोगों के पक्ष में हैं, तो दिल्ली वाले कुछ भाई लोग अलग ही रास्ते पर चल रहे हैं। संगठन वाले साहब के समझ में नहीं आ रहा कि वह कौनसा रास्ता चुने। उनकी ओपिनियन नए युवा लोगों के पक्ष में है। डिफरेंस ऑफ ओपिनियन के चलते राजनैतिक नियुक्तियां एक बार फिर लेट होती नजर आ रही हैं।
एक जुमला यह भी :
राज के दो साल के काम काज को लेकर हाथ वाले भाई लोग भी चिंतन मंथन में व्यस्त है। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर यह मंथन जोरों पर है। लेकिन समस्या यह है कि दो साल में हाथ वालों ने क्या पाया, इस पर सबकी जुबान पर बंद है। मारवाड़ वालों का एक ही सवाल है कि भगवा वालों के हाथ के बजाय खुद की हथेलियों की तरफ भी देखो। दो साल में जीरो के अलावा कुछ नहीं है। जब हमने ही एक दूसरे की टांग खींचने के सिवाय कुछ नहीं किया, तो सामने वालों से उम्मीद करना बेईमानी है।
-एल. एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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