जहरीली हवा के चंगुल में दिल्ली

एक गंभीर समस्या 

जहरीली हवा के चंगुल में दिल्ली

आज देश की राजधानी दिल्ली के लोग जहरीली हवा में जीने को मजबूर हैं।

आज देश की राजधानी दिल्ली के लोग जहरीली हवा में जीने को मजबूर हैं। धुंध और प्रदूषण से लोगों का सांस लेना तक दूभर हो रहा है। यह हालत समूचे राजधानी क्षेत्र की है। प्रदूषण का आलम यह है कि राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक 461 अंक के पार पहुंच गया है। बीते पांच दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 अंक से ज्यादा बढ़ गया है। वायु गुणवत्ता का पूर्वानुमान लगाने के लिए तैनात प्रणाली इस बाबत इस बार भी नाकाम साबित हुयी है। इससे पहले भी खासतौर पर गंभीर हवा वाले दिन का भी सटीक अनुमान लगाने में यह प्रणाली विफल रही है। एन सी आर का आसमान धुंध और धुंए से पटा पड़ा है। धुंए की मोटी परत के चलते दम घुटने लगा है। प्रदूषण बढ़ने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गैस चैम्बर में तब्दील हो गया है। खासबात यह रही कि देश के सर्वाधिक प्रदूषित पांच शहरों में एनसीआर के शहर ही रहे हैं।

खराब वायु गुणवत्ता :

यहां सक्रिय 39 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों में से 38 पर एक्यूआई 400 के ऊपर था। जबकि बजीरपुर में यह 500 के अधिकतम स्तर पर था। दिल्ली में शाहदरा और गाजियाबाद में कहीं-कहीं यह सात सौ का आंकड़ा भी पार कर गया। गौरतलब है कि 500 के ऊपर नापने में सीपीसीबी भी असमर्थ है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने बाहरी खेल गतिविधियों पर पूरी तरह पाबंदी लगाने का निर्देश दे दिया है। आयोग ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को इस बाबत पत्र लिखकर सूचित किया है। आयोग ने अपने पत्र में चिंता जतायी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद खेलों के आयोजन बंद क्यों नहीं किये गये। आयोग ने कहा है कि खराब वायु गुणवत्ता के बावजूद ऐसे आयोजन का निरंतर संचालन बच्चों के स्वास्थ के साथ गंभीर खिलवाड़ है।

स्वास्थ्य समस्याएं :

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वायु प्रदूषण से जुड़ी होने वाली स्वास्थ्य समस्यायें अक्सर एयरोसोल से जुड़ी होती हैं। एयरोसोल हवा में निलंबित सूक्ष्म ठोस या तरल लवण होते हैं । इनका आकार कुछ नैनोमीटर से लेकर कई माइक्रोमीटर तक हो सकता है। एयरोसोल मानव आंखों को मुश्किल से दिखाई देते हैं। एयरोसोल में यह धुंआ, कोहरा जलन पैदा कर सकते हैं और अत्याधिक सान्द्रता के कारण श्वसन तंत्र को अवरुद्ध भी कर सकते हैं। यहां तक कि यह मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं। इस बाबत देश के 80 से ज्यादा पद्म पुरस्कार प्राप्त डाक्टरों ने चिंता जाहिर की है। उनके अनुसार भारत में सभी श्वसन संबंधी मौतों में से एक तिहाई से अधिक वायु गुणवत्ता से जुड़ी हैं। इसके अलावा स्ट्रोक से होने वाली लगभग 40 फीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।

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प्रदूषण का असर :

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हालात की भयावहता का सबूत यह है कि प्रदूषण का असर अब त्वचा, फेफड़े, पाचन तंत्र, हड्डियों, श्वसन प्रणाली, प्रजनन तंत्र को ही प्रभावित नहीं कर रहा, यह दमा, हृदय रोगों से भी कहीं आगे बढ़ गया है। शरीर के हर अंग को यह प्रभावित कर रहा है। अब यह कैंसर और मेटाबोलिक विकार को भी पार कर गया है। इससे मष्तिष्क पर गंभीर असर पड़ता है, जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ गया है। अब वातावरण में मानक से भी ढाई गुणा प्रदूषक कण मौजूद हैं। यह खतरनाक स्थिति है। देश की राजधानी दिल्ली के लोग पिछले तीन महीनों से भी ज्यादा समय से प्रदूषित जानलेवा हवा में सांस ले रहे हैं। यहां की जहरीली हवा लोगों को अपना घर छोड़ने को मजबूर कर रही है। हालात की गंभीरता का प्रमाण यह है कि डाक्टर दिल्ली वालों को कुछ दिनों के लिए पहाड़ी राज्य जाने की सलाह दे रहे हैं।

बिगड़ती आबोहवा :

खासकर दिल, फेफड़े, साइनस और सांस के रोगियों के लिए दिल्ली की ये बिगड़ती आबोहवा उनकी परेशानी को कई गुणा बढ़ा देती है। उनका कहना है कि दिल्ली में अब प्रदूषण की स्थिति बद से बदतर हो गयी है। सर्दियों में यहां रहना अपनी जिंदगी को खतरे में डालने जैसा है। विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र की मानें तो दिल्ली में हानिकारक जहरीली गैसों यथा नाइट्रोजन डाय आक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है। राजधानी के प्रदूषण में लगभग 51.5 फीसदी योगदान वाहनों के उत्सर्जन का है। इसके बाद आवासीय उत्सर्जन और दूसरे कारक जिम्मेदार हैं। राजधानी में मुख्य रूप में प्रदूषण वाहनों और दहन स्रोतों से हो रहा है।

एक गंभीर समस्या :

वायु गुणवत्ता प्रबंधन के अनुसार दिल्ली की 35 मुख्य सड़कों पर सबसे ज्यादा धूल मौजूद है। इनमें अधिकांश सड़कें दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत आती हैं। टूटे फुटपाथ और गड्ढे वाली सड़कें धूल से अटी रहती हैं। यह धूल वाहनों के पहियों से लिपट कर उड़ती है और पूरे वातावरण में भर जाती है। इसके लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने डीडीए को भी उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली सड़कों के रखरखाव में खामियों और बार बार की लापरवाही के लिए फटकार लगाई है। उसके अनुसार निरीक्षण में शहर के कई हिस्सों में धूल का उच्च स्तर, कचरा जमाव और कचरा जलाने के मामले पाया जाना डीडीए की लापरवाही का जीता जागता सबूत है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत व न्यायमूर्ति जायमाल्या बागची की आला पीठ ने सही ही कहा है कि वायु प्रदूषण की समस्या को अब सिर्फ सर्दियों की मुसीबत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। वायु प्रदूषण अब एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। अब इसका दीर्घकालिक उपाय ढूंढना जरूरी हो गया है।

-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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