शिक्षा मानव जीवन का आधार

जीवन का मूल मंत्र 

शिक्षा मानव जीवन का आधार

शिक्षा मानव जीवन का आधार है।

शिक्षा मानव जीवन का आधार है। यह केवल रोजगार पाने का साधन नहीं, बल्कि संस्कार, नैतिकता और समाज की प्रगति का वास्तविक स्तंभ है। शिक्षक वह दीपक है, जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाता है। इस संदर्भ में मेरा यह कथन कि मैं भी एक शिक्षक हूं, केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। मैंने अपने राजनीति और सार्वजनिक जीवन में रहते हुए सदैव यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी क्षण,किसी न किसी रूप में एक शिक्षक होता है। प्राचीन भारतीय परंपरा में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। गुरु को सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक के समान दर्जा दिया गया है परंतु मेरा यह दृष्टिकोण केवल पारंपरिक गुरु तक सीमित नहीं है। मेरा मानना है कि मां जीवन का पहला पाठ पढ़ाती है, वह पहली शिक्षक है। पिता अपने बच्चों को संस्कार देता है, वह भी एक शिक्षक है। मित्र सही मार्गदर्शन करता है, वह भी शिक्षक है।

सकारात्मक बदलाव :

अनुभव हमें जीवन का सबक सिखाते हैं, वे भी शिक्षक हैं, इसलिए मैं कहता हूं कि मैं भी एक शिक्षक हूं, क्योंकि हर इंसान अपने ज्ञान और अनुभव से दूसरों को सिखाता है। मैं भी एक शिक्षक हूं, का वास्तविक अर्थ यही है कि हम सभी में एक शिक्षक छुपा हुआ है। हमें चाहिए कि हम अपने ज्ञान और अनुभव को दूसरों के साथ साझा करें। समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए आगे आएं। बच्चों को केवल किताबें ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाएं। मेरा जीवन इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में रहकर भी मैंने शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया है। समाज में शिक्षा और शिक्षक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। उसका जीवन और कार्य इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। राजस्थान की राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहने और अब राज्य की विधानसभा का अध्यक्ष रहने के बावजूद मैंने हमेशा शिक्षा को अपने जीवन का केंद्र बिंदु माना है।

मैं स्वयं शिक्षक रहा :

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राजनीति में आने से पहलें मैं स्वयं शिक्षक रहा। आज जिस तकनीकी शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया जाता है, मैं उसी विषय से जुड़ा हुआ था। मैं देश के सबसे बड़े भौगोलिक प्रदेश राजस्थान का दो बार शिक्षा मंत्री भी रहा। राजस्थान का शिक्षा मन्त्री रहते हुए मैंने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनका असर आज भी दिखाई देता है। मैंने राज्य के शिक्षा पाठ्यक्रम में सुधार किया और विद्यालयों के पाठ्यक्रम में महापुरुषों, संतों और स्वतंत्रता सेनानियों को शामिल कराया। जिसमें महाराणा प्रताप महान पाठ को शामिल कराना प्रमुख था, क्योंकि मेरा प्रारंभ से ही मानना था कि अकबर महान पाठ पढ़ाना सही नहीं है। यह हमारे महान इतिहास का अपमान है। इसीलिए मैंने इस चैप्टर और अन्य कई महापुरुषों और भारतीय संस्कृति से जुड़े पाठ स्कूल पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराये। इसका उद्देश्य बच्चों को केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि प्रेरणा और आदर्श प्रदान करना था।

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संस्कृत ज्ञान की कुंजी :

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संस्कृत को प्रोत्साहन देने के क्रम में मैंने संस्कृत भाषा को प्राचीन भारतीय ज्ञान की कुंजी मानते हुए इसे विद्यालय स्तर पर बढ़ावा दिया। स्मार्ट स्कूल योजना के अन्तर्गत शिक्षा को आधुनिक बनाने के लिए डिजिटल क्लास,ई-कंटेंट और प्रोजेक्टर आधारित पढ़ाई शुरू कराई। विद्यालय अनुशासन पर बल देते हुए शिक्षकों और विद्यार्थियों की उपस्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया। पढ़ो राजस्थान,जैसी योजनाओं से शिक्षा में नवाचार लाने का कार्य किया। नैतिक शिक्षा पर बल देने से विद्यार्थियों के नेतृत्व में यह प्रयास हुआ कि विद्यार्थी केवल पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि व्यवहार और सामाजिक उत्तरदायित्व में भी श्रेष्ठ बनें। मेरा मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है। भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। प्रौद्योगिकी और आधुनिकता का समावेश शिक्षा को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करता है। अनुशासन और मूल्य आधारित शिक्षा ही समाज को सही दिशा देती है।

जीवन का मूल मंत्र :

मेरे लिए मैं भी एक शिक्षक हूं, यह वाक्य जीवन का मूल मंत्र है। राजनीति में रहते हुए भी मैंने स्वयं को समाज का शिक्षक माना हैं। क्योंकि जीवन स्वयं सबसे बड़ा विद्यालय है। अनुभव सबसे बड़ी पाठ्य पुस्तक है। हर व्यक्ति जो कुछ सीखता है, उसे समाज के साथ साझा करना उसका कर्तव्य है। इस दृष्टिकोण से हर किसी को अपने आपको शिक्षक और एक निरंतर सीखने वाला और सिखाने वाला इन्सान मानना चाहिए। आज के समय में जब शिक्षा को केवल डिग्री और रोजगार तक सीमित कर दिया गया हैए मेरा यह विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है कि यदि समाज को सशक्त बनाना है, तो शिक्षा में संस्कार और संस्कृति को स्थान देना होगा। शिक्षक को केवल अध्यापक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और जीवन निर्माता होना चाहिए। शिक्षा का अंतिम लक्ष्य समग्र विकास होना चाहिए, न कि केवल परीक्षा उत्तीर्ण करना। मैं भी एक शिक्षक हूं, केवल एक विचार या भाषण नहीं है। यह एक जीवन दृष्टि है।

शिक्षा का उद्देश्य :

शिक्षक होना किसी पद, वेतन या संस्था से बंधा हुआ कार्य नहीं है, बल्कि, जब भी हम किसी को सही मार्ग दिखाते हैं, अनुभव साझा करते हैं और समाज को शिक्षित करते हैं, तब हम शिक्षक बन जाते हैं। वास्तविकता में हर व्यक्ति शिक्षक है और हर क्षण शिक्षा का अवसर है। इसलिए यह कथन हमारे हृदय और मन में गहराई से छू जाना चाहिए कि मैं भी एक शिक्षक हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कई बार अपने भाषणों,मन की बात और शिक्षक दिवस जैसे अवसरों पर शिक्षा और शिक्षक पर विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी नहीं, जीवन निर्माण है। शिक्षा का लक्ष्य केवल रोजगार तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह बच्चों के चरित्र, रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता को विकसित करने वाली होनी चाहिए। शिक्षा में भारतीय संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक विज्ञान और तकनीक को जोड़ने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। शिक्षा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती है। यदि शिक्षा व्यवस्था पारदर्शी, गुणवत्तापूर्ण और भ्रष्टाचार मुक्त होगी, तभी समाज और देश का भविष्य सुरक्षित और सशक्त बन सकता है।

-वासुदेव देवनानी
अध्यक्ष, राजस्थान विधानसभा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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