गणेशोत्सव राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण

भक्तों का उत्साह 

गणेशोत्सव राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण

भारतीय संस्कृति की आत्मा उसके पर्व और उत्सवों में समाई हुई है।

भारतीय संस्कृति की आत्मा उसके पर्व और उत्सवों में समाई हुई है। यहां प्रत्येक त्योहार केवल आस्था का अंग नहीं होता बल्कि जीवन, समाज और प्रकृति के बीच सामंजस्य बिठाने का माध्यम बनता है। इन्हीं में से एक है गणेश उत्सव। जिसे भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देशों में बसे भारतीय बड़े उत्साह से मनाते हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला यह पर्व सामान्यत: दस दिन का होता है। परंतु इस वर्ष गणेश उत्सव दस दिनों के बजाय तेरह दिनों तक चलेगा। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि जब परंपरा 10 दिनों की है, तब इस बार 13 दिन क्यो,इसका उत्तर हमें गणेशोत्सव की गहन परंपरा, धार्मिक ग्रंथों और पंचांग गणना में मिलता है। गणेशोत्सव दस दिनों का क्यों होता है, यह समझने के लिए हमें भारतीय ग्रंथों के गूढ़ संकेतों को जानना होगा। इस बार चतुर्थी से चतुर्दशी का अंतराल 13 दिनों का बन रहा है।

भक्तों का उत्साह :

यद्यपि परंपरा में दस दिन मूल मंत्र है किन्तु अनंत चतुर्दशी का पूजन ही अंतिम है, इसीलिए भक्तों का उत्साह इस बार लंबे समय तक बना रहेगा। अब प्रश्न आता है कि इस बार उत्सव 10 के बजाय 13 दिनों का क्यों है। इसका उत्तर पंचांग और चंद्रगति की गणना में मिलता है। भारतीय कैलेंडर चंद्रमास पर आधारित है। कभी-कभी तिथियों के संयोग और क्रम बदलने से पर्व की अवधि बढ़ जाती है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को थी,जबकि अनंत चतुर्दशी 8 सितंबर को आएगी। इस प्रकार चतुर्थी से चतुर्दशी तक कुल 13 दिन का अंतराल है। धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह कोई विरोधाभास नहीं है। गणेश जी की स्थापना चतुर्थी पर ही की जाती है और उनका विसर्जन अनंत चतुर्दशी पर ही होता है। इस बीच कितने दिन आते हैं, यह पंचांग की स्थिति पर निर्भर करता है। कई बार 10 की बजाय 11 या 12 दिन भी हो सकते हैं। इस बार 13 दिनों की अवधि बनना भक्तों के लिए सौभाग्य का ही प्रतीक है। मानो यह विघ्नहर्ता का आशीर्वाद ही है कि उनका प्रवास इस बार और लंबा होगा। अतिरिक्त तीन दिन अनंत का आशीर्वाद हैं।

जीवन और ब्रह्मांड :

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संख्या दस हमारे जीवन और ब्रह्मांड से गहरे रूप में जुड़ी है। हिन्दू दर्शन में दस दिशाओं का वर्णन है, दस इंद्रियां कही गई हैं और दस अवतारों की परंपरा आती है। संख्या दस का अर्थ है संपूर्णता। दस दिशाएं, दस इंद्रियां और दशावतार, ये सभी जीवन और ब्रह्मांड की पूर्णता का संकेत हैं। संख्या दस संपूर्णता और पूर्ण चक्र का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर दस दिनों तक की पूजा यही दर्शाती है कि जीवन की सभी इंद्रियों, दिशाओं और गुणों को संयमित करके अंतत: आत्मा को शुद्ध कर लिया जाए। दस दिनों में प्रत्येक दिन साधना का एक चरण है, कहीं संयम, कहीं विनम्रता, कहीं धैर्य, कहीं ज्ञान, कहीं परिवार और परंपरा का सम्मान। अनंत चतुर्दशी को विसर्जन का विधान इसीलिए रखा गया कि दस दिन की साधना पूरी होने के बाद जीवन की अस्थिरता और अनित्यता की शिक्षा भी स्मरण हो।

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महाभारत की रचना :

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व्यास ऋषि ने जब महाभारत की रचना का संकल्प लिया, तब उन्होंने गणपति से इसे लिपिबद्ध करने का निवेदन किया। गणेश ने इसे स्वीकार किया पर यह शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे। व्यास ने यह कहा कि वे श्लोक तभी लिखेंगे, जब उन्हें उसका अर्थ समझ आए। इस प्रकार लेखन का कार्य शुरू हुआ और लगातार दस दिनों तक गणपति बिना रुके लिखते रहे। दसवें दिन यह कार्य पूर्ण हुआ और तब गणेश को जल स्रान कराया गया। यही कथानक भी दस दिनों के उत्सव का एक आधार माना जाता है। गणेश जी का स्वरूप और उसमें छिपी शिक्षाएं भी दस दिनों की साधना को गहन बनाती हैं। उनका बड़ा मस्तक हमें बुद्धि और विवेक की ओर प्रेरित करता है। छोटे नेत्र ध्यान और एकाग्रता का महत्व बताते हैं। विशाल कान धैर्य का संदेश हैं जबकि छोटा मुख संयम और अल्पभाषिता की शिक्षा देता है। हाथी का सिर शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है तो उनका वाहन मूषक विनम्रता और लघुता में भी सामर्थ्य की व्याख्या करता है। इन प्रतीकों का चिंतन और आत्मसात दस दिनों तक किया जाता है, जिससे साधक का जीवन संतुलन और ज्ञान से भर उठ करता है।

जनचेतना का माध्यम :

गणेशोत्सव केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनचेतना का माध्यम बनाया। ब्रिटिश शासन में जब सामूहिक आयोजन वर्जित थे, तब तिलक ने गणेश उत्सव के सार्वजनिक आयोजन आरंभ किए, जिससे समाज में एकता, भक्ति और राष्टÑप्रेम का समन्वय हुआ। आज भी पंडालों में सामूहिक आरती, दान और सेवा गतिविधियां इसी सामाजिक समरसता को आगे बढ़ाती हैं। यह पर्व लोगों को एक साथ लाता है, जाति-पाति के भेदभाव को खो देता है और एकता ही शक्ति है,का वास्तविक संदेश देता है। गणेश उत्सव इस दार्शनिक गहराई का उत्सव है। 10 दिनों का इसका महत्व सनातन है पर जब पंचांग की गति इसे 13 दिन का बना दे तो हमें इसे और अधिक आशीर्वाद के रूप में देखना चाहिए।

-योगेश कुमार गोयल
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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