साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसले

ऑनलाइन पेमेंट करना लोगों की आदत में आ गया 

साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसले

साइबर ठगी के समाचारों की भरमार के बावजूद देश में केवल 18 फीसदी लोग ही ऐसे हैं, जिन्हें साइबर अपराध होने पर उसकी शिकायत कहां और कैसे करनी है कि जानकारी है।

देश दुनिया में साइबर अपराध के बढ़ते आंकड़े जहां चिंतित करने वाले हैं, वहीं यह और भी आश्चर्यजनक और चिंताजनक हालात है कि लाख अवेयरनेस प्रोग्राम व मीडिया में आए दिन साइबर ठगी के समाचारों की भरमार के बावजूद देश में केवल 18 फीसदी लोग ही ऐसे हैं, जिन्हें साइबर अपराध होने पर उसकी शिकायत कहां और कैसे करनी है कि जानकारी है। यह तो सरकारी आंकड़ा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जनवरी-मार्च, 2025 में कराए गए ताजातरीन सर्वे से यह आंकड़ें प्राप्त हुए हैं। दूसरी और यूपीआई से भुगतान में खासा बढ़ोतरी हुई हैं। आज ठेले पर सब्जी बेचने वाले से लेकर दो-पांच रुपए का सामान विक्रेता भी आसानी से यूपीआई से भुगतान प्राप्त कर रहा है। 2022-23 में जहां केवल 38 फीसदी लोग ऑनलाइन पेमेंट करते थे, वह आज बढ़कर 50 प्रतिशत के लगभग हो गया है। वास्तविकता तो यह है कि आज ऑनलाइन पेमेंट करना लोगों की आदत में आ गया है। जेब में रुपया-पैसा रखना या कहीं जाते समय साथ पैसा ले जाना लोगों की आदत में अब लगभग नहीं ही रहा है। पर तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि साइबर अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और पिछले तीन सालों में ही साइबर अपराध के आंकड़ें तीन गुणा बढ़ गए हैं।

सरकार की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि आज मोबाइल पर किसी का नंबर डायल करते ही पहले साइबर अपराध से सचेत रहने की कॉलर ट्यून सुनने को मिलती है और उसके बाद बात होती है। मोबाईल पर नंबर मिलाते ही नहीं अपितु सोशियल मीडिया के प्लेटफार्म खासतौर से इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर आजकल साईबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन या ब्लेक मेलिंग से सतर्क रहने का संदेश सुनने को मिलता है। इतने के बावजूद ठगी के आंकड़ें चेताने वाले हैं। मजे की बात यह है कि साइबर ठगी के इन रुपों से सबसे अधिक शिकार पढ़े लिखे और समझदार लोग ही हो रहे हैं। ठगों के हौसले बुलंद हैं, तो ठगी के शिकार होने वाले लोगों की संख्या और राशि में मल्टीपल बढ़ोतरी हो रही है। खास बात यह है कि ठगी के केन्द्र व ठगी के तरीके से वाकिफ होने के बावजूद यह होता जा रहा है। हांलाकि झारखण्ड के जमातड़ा से ठगों के तंत्र को तोड़ दिया गया पर देश में एक दो नहीं अपितु 74 जिलों में इस तरह की ठगी करने वालों के हॉटस्पॉट विकसित हो गए। झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के केन्द्र पहले पांच प्रमुख सेंटर विकसित हो गए। ऐसा नहीं है कि साइबर अपराध केवल और केवल भारत में हो रहे हैं अपितु यह विश्वव्यापी समस्या होती जा रही है। दुनिया के देशों में देखा जाए तो साईबर ठगी के मामलों में रशिया पहले पायदान तो यूक्रेन दूसरे स्थान पर है। इनके बाद चीन, अमेरिका, नाइजेरिया और रोमानिया का नंबर आता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है साइबर ठगों की सारी दुनिया में सहज पहुंच है। लोगों की गाढ़ी कमाई को हजम करने में इन्हें विशेषज्ञता हासिल है।

लोगों की कमजोरी को यह समझते हैं और उसी कमजोरी के चलते पढ़े लिखे लोगों को भी आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। हमारे देश में साइबर ठग या तो किसी तरह का लालच देकर लिंक भेजकर ठगी करते हैं या फिर डरा धमकाकर आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। सरकार प्रचार के सभी माध्यमों से बार बार व लगातार आगाह कर रही है कि ठगों द्वारा डराने वाले तरीके वास्तविक नहीं है। बैंक कभी भी बैंक डिटेल या ओटीपी ऑनलाइन नहीं मांगते पर पता नहीं कैसे ठगों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई लुटा बैठते हैं। ओटीपी दे देते हैं तो लिंक खोलने के लिए लाख मना करने के बावजूद लिंक खोलकर लुट जाते हैं। पुलिस अधिकारी बन कर जिस तरह से डिजिटल अरेस्ट कर ठगी का रास्ता अपनाया जा रहा है उस संबंध में अवेयरनेस अभियान के बावजूद ठगी का शिकार होने वालों की संख्या में कमी नहीं हो रही है। डिजिटल अरेस्ट में डॉक्टर, रिटायर्ड जज, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी सहित संभ्रात वर्ग के लोगों को आसानी से जाल में फंसाकर ठगी हो रही हैं वह भी करोड़ों तक की ठगी के उदाहरण मिल रहे हैं। झूठे मामलों में परिजनों को फंसने से बचाने का झांसा देकर ठगी हो रही है। मजे की बात यह है कि इस स्तर तक डर या भयाक्रांत हो जाते हैं कि किसी अन्य या पुलिस से समस्या साझा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाते और ठगी के बाद हाथ मलते रह जाते हैं। डिजिटल अरेस्ट के मामलें तो दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। दरअसल इसमें पुलिस, सरकारी जांच एजेंसी या प्रवर्तन निदेशालय के नकली अधिकारी बन कर इस कदर डरा देते हैं कि कई दिनों तक लगातार ऑडियो या वीडियो कॉल करके ठगी का शिकार बना लेते हैं। 

ऐसा नहीं है कि सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हों। सरकार व वित्तदायी संस्थाओं द्वारा मीडिया के माध्यम से सजग किया जा रहा है। इसके साथ ही झारखण्ड के बड़े केन्द्र जमातड़ा को लगभग समाप्त कर ही दिया है। पर देश में 74 हॉट स्पॉट विकसित हो गए हैं। मीडिया द्वारा भी समय समय पर स्ट्रिंग कर इस तरह के केन्द्रों को एक्सपोज किया है पर ठगी कम होने को ही नहीं है। दरअसल आमनागरिकों को भी सजग होना ही होगा। अनजान नंबरों पर बात ही ना करें। ज्योंही कोई डराए धमकाएं तो बहकावें में आने के स्थान पर पड़ताल करें। इस तरह के हालात सामने आए तो परेशान होने के स्थान पर परेशानी को साझा करें, पुलिस का सहयोग लेने में भी संकोच ना करें। 

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देखा जाए तो सजगता इस समस्या का समाधान हो सकती है। सबसे ज्यादा जरुरी यह हो जाता है कि लाख सजगता के बावजूद भी यदि साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं, तो उस स्थिति में बिना किसी घबराहट और संकोच के कहां ओर कैसे शिकायत की जा सकती है इसकी जानकारी देने के लिए सरकारी संस्थाओं के साथ ही गैरसरकारी संगठनों को भी आगे आना होगा नहीं तो साइबर अपराध का जिस तरह से दायरा दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है उस पर अंकुश नहीं लग सकेगा।

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-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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