अरावली पर्वतमाला को बचाना जरुरी 

आमजन की चिंता 

अरावली पर्वतमाला को बचाना जरुरी 

आज देश में खासकर अरावली पर्वत माला अंतर्गत आने वाले राज्यों में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, आंदोलन हो रहे हैं, आमजन को अरावली पर आए खतरे के बारे में सचेत किया जा रहा है।

आज देश में खासकर अरावली पर्वत माला अंतर्गत आने वाले राज्यों में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, आंदोलन हो रहे हैं, आमजन को अरावली पर आए खतरे के बारे में सचेत किया जा रहा है। यह सब इतना हाहाकार इसलिए है कि अरावली पर्वत माला आज खतरे में है। दरअसल उत्तर भारत की सबसे पुरानी इस पर्वतमाला पर आज अपने अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। आज 670 मिलियन साल पुराने इतिहास को जमींदोज करने का प्रयास किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के 20 नवम्बर के आदेश पर ध्यान दें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर यह लागू हो गया तो यह निश्चित है कि अरावली तो हरियाली विहीन हो ही जायेगी, यह समूचा अंचल, भूजल क्षेत्र, भूजल भंडार, वन्य-जीव,उनके आश्रय स्थल सहित इस क्षेत्र में रहने वाले करोड़ों करोड़ लोगों के खाद्य एवं सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

आमजन की चिंता :

यह खतरा केवल राजस्थान, हरियाणा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे अरावली परिक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सीमावर्ती राज्य दिल्ली और गुजरात भी अछूते नहीं रहेंगे। वन मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट ने भी इस आशंका को बल प्रदान किया है कि क्या अरावली बचेगी पर्यावरणविदों, वन्यजीव विशेषज्ञों और आमजन की चिंता का सबब यही है। यदि सुप्रीम कोर्ट के 20 नवम्बर के आदेश और वन मंत्रालय की रिपोर्ट का जायजा लें, तो अरावली की पहाड़ियों की जो नयी परिभाषा है, उसके मुताबिक अरावली का 90 फीसदी इलाका कानूनी संरक्षण से बाहर हो जायेगा। उसके हिसाब से जिस जमीन पर मौजूदा समय में पहाड़ हैं और जंगल हैं, यदि यह फैसला लागू हो गया, तो वहां जल्द ही कंक्रीट के जंगल और खनन माफियाओं का कब्जा हो जायेगा। नतीजतन पूरी अरावली खंड हो जाएगी।

खनन से पहले :

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जहां खनन से पहले अरावली की पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से काफी ऊंची थी। जिले में अरावली का रकबा करीब 10 हजार हैक्टेयर है। यह रकबा करीब करीब 20 गांवों में आता है। इस हिस्से में पिछले लगभग 40 सालों में पत्थर और सिल्का सेंड के लिए बराबर खनन किया जाता रहा है। इसके चलते खनन कारोबारियों कहें या खनन माफियाओं ने पहले तो अरावली में पहाड़ियों को खत्म किया। उसके बाद उन्होंने वहां करीब 500 फीट गहरी खदानें बना डालीं। यह सिलसिला यहां पूरे जिले में आज भी जारी है। यहां आज भी करीब 300 से ज्यादा क्रैशर बेरोकटोक चल रहे हैं। यह हालत केवल अकेले फरीदाबाद जिले की ही नहीं,बल्कि पूरे अरावली क्षेत्र में कमोबेश जारी है।

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पहाड़ियां चिन्हित :

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फॉरेस्ट सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट की मानें तो वर्तमान में अरावली क्षेत्र में कुल मिलाकर छोटी-बड़ी 19 हजार पहाड़ियां चिन्हित हैं। लेकिन नयी परिभाषा के मुताबिक पहाड़ी के मानक बदल दिये गये हैं। जाहिर है कि नयी परिभाषा अरावली को नष्ट करने वाली साबित होगी। इससे न केवल काफी नुकसान होगा,बल्कि समूची अरावली पर इसका व्यापक दुष्प्रभाव पड़ेगा और वह खण्ड- खण्ड हो जायेगी। सुप्रीम कोर्ट ने तो पहले भी सीईसी की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए अरावली में खनन पर रोक लगाई थी। जहां तक पहाड़ की ऊंचाई का सवाल है, पहाड़ की ऊंचाई का पैमाना समुद्र तल से तय होता है। जबकि देखा जाए तो अमूमन अरावली की फैली अधिकांश पहाड़ियों की ऊंचाई 300 मीटर के आसपास है।

खनन माफिया :

दिल्ली और गुरग्राम के धरातल की ऊंचाई समुद्र तल से 240 से 260 मीटर के आसपास है। ऐसे में नयी परिभाषा के मुताबिक अरावली की पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से कम यानी 40 से 60 मीटर तक हो जाती है। इसके चलते तकरीबन 90-95 फीसदी वानिकी क्षेत्र अरावली के दायरे से बाहर हो जाएगा। केवल एक फीसदी ही पहाड़ियां बाकी बची रह पायेंगीं। रिपोर्ट के पैराग्राफ 30-31 में विशेषज्ञों ने यही चिंता जाहिर की है। इसके चलते अरावली पर्वत श्रृंखला का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। यही सबसे बड़ा खतरा है। जहां तक एनसीआर का सवाल है, यहां पर एक तरह से खनन माफियाओं का एकछत्र राज रहा है। एनसीआर में लगभग 31 पहाड़ का तो खनन माफियाओं ने अस्तित्व ही मिटा दिया है।

केवल पहाड़ नहीं है :

अरावली हमारे लिए जीवनदायिनी है, धरोहर है। वह केवल पहाड़ नहीं है, वह हमारे इन चारों राज्यों दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात की जीवन रेखा है। वन्य जीव विशेषज्ञों तथा जानकारों का मानना है कि अरावली की 25 प्रतिशत पहाड़ियां तो नष्ट हो ही चुकीं हैं या वे नष्ट होने के कगार पर है, 100 मीटर वाला नियम लागू हो जाने पर यहां की 90 प्रतिशत से ज्यादा पहाड़ियां नष्ट हो जाएंगी, किसान बर्बाद हो जाएगा, वन्य जीवों का जीवन जीना दुर्लभ हों जाएगा, प्रदूषण और तापमान बढ़ेगा। नदियां मर जाएंगीं, शुद्ध हवा पानी एका संकट बढ़ेगा। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक होगा। अरावली पर्वत माला को बेचने की साजिश देश के भविष्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। अरावली मिटेगी,तो भविष्य मिटेगा। और इस सबके लिए आने वाली पीढ़ियां हमें कतई माफ नहीं करेंगी।

-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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