जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

पिछले दिनों सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में मर्दानगी भी चर्चा में आई। राज में नंबर दो की कुर्सी संभाल रही मोहतरमा के बजट भाषण में सामने वालों में टोका-टोकी की होड़ मची हुई थी।

चर्चा में मर्दानगी
पिछले दिनों सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में मर्दानगी भी चर्चा में आई। राज में नंबर दो की कुर्सी संभाल रही मोहतरमा के बजट भाषण में सामने वालों में टोका-टोकी की होड़ मची हुई थी। खेती बाड़ी वाले मंत्री की गैर हाजरी को लेकर प्रतिपक्ष के सदस्यों ने कुछ ज्यादा ही उछलकूद की और मीनेश वंशज भाई साहब को मर्द साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मर्द बताने वालों में सबसे आगे चंबल का पानी पीने वाले वो भाई साहब थे, जिन्होंने गुजरे जमाने में इसी पंचायत में खुद को मर्द और सूबे को मर्दों वाला प्रदेश बताया था। अब इनको कौन समझाए कि समय बड़ा बलवान है। समय-समय की बात है, कोई समय दिन बड़ा तो कोई समय रात।

तीन पीढ़ी बनाम एक पीढ़ी
सूबे में इन दिनों तीन पीढ़ी बनाम एक पीढ़ी का खेल खूब चल रहा है। खेल भी और कोई नहीं, बल्कि भगवा और हाथ वाले भाई लोग खेल रहे हैं। खेले भी क्यों नहीं, मामला प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। इसका असर भी सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में दिखाई दे रहा है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि राज वालों के पास सिर्फ एक पीढ़ी का अनुभव है तो सामने वालों के पास तीन पीढ़ियों का है, तभी तो तीन पीढ़ी के अनुभवी लोग फ्लोर मैनेजमेंट में भारी पड़ रहे हैं। राज के एक रत्न की राय ठीक ही है कि बड़Þबोले पन से हंगामा करा कर सामने वालों को बहिर्गमन के लिए उकसाओ और फिर शांति से काम करो।

बदलती बॉडी लैंग्वेज
अटारी वाले भजन भाई साहब की बदलती बॉडी लैंग्वेज को लेकर भगवा वाले कई वर्कर माथा लगा रहे हैं, मगर उनके समझ में नहीं आ रहा है कि इसके पीछे का राज क्या है। वे सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने से लेकर सचिवालय तक सूंघा-सांघी कर रहे हैं, मगर उनकी पार नहीं पड़ रही। अब उनको कौन समझाए कि भाई साहब अब जो काम दाएं हाथ से करेंगे तो बाएं हाथ तक को पता नहीं चलने देंगे। साहब की बदली बॉडी लैंग्वेज से लगता है कि  उनकी हर मंशा पूरी हो रही है, और तो और उनको जिनको मैसज देना था, वह एक महीने पहले ही दे दिया। राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं है। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

यह तो होना ही था
बीजेपी की वर्किंग कमेटी की मीटिंग में शनि को मराठी मैडम के सामने जो कुछ हुआ, वह नया नहीं था। हार्ड कोर वर्कर्स इसके लिए कई महीनों से तैयार थे, मगर उनको उचित मंच नहीं मिल रहा था और न ही कोई सुनने वाला था। मिरजापुर वाले भाई साहब के साथ ही एमएलएज तो उनको कोसों दूर रखते हैं। उनकी दशा दो पाटों के बीच फंसे चने के बराबर थी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि वो तो भला हो इंचार्ज आॅफ को मराठी मैम का, जिन्होंने माथा लगाकर वर्कर्स की बात सुनने में अपनी भी भलाई समझी। वर्कर्स भी कहां चूकने वाले थे, सो मौका मिला तो एमएलएज की पोल खोल कर ब्याज समेत वसूल कर लिया।

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एक जुमला यह भी
राज के सात महीनों के काम काज को लेकर भगवा वाले भाई लोग भी चिंतन मंथन में व्यस्त है। सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में यह मंथन जोरों पर है, लेकिन समस्या यह है कि सात महीनों में भगवा वालों ने क्या पाया, इस पर सबकी जुबान बंद है। शेखावाटी वालों का एक ही सवाल है कि हाथ वालों के हाथ के बजाय खुद की हथेलियों की तरफ भी देखो। सात 
महीनों में जीरो के अलावा कुछ नहीं है। जब हमने ही एक दूसरे की टांग खींचने के सिवाय कुछ नहीं किया तो सामने वालों से उम्मीद करना बेमानी है।
   

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-एल एल शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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