जानें राज काज में क्या है खास 

लाल आंखों का रहस्य 

जानें राज काज में क्या है खास 

जब भी तबादलों की चर्चा होती है, तो कई पोस्टों के लिए सपने देखना भी चालू हो जाता है।

चर्चा बदलाव की :

सूबे में इन दिनों सिर्फ एक ही चर्चा है। इससे सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों का ठिकाना भी अछूता नहीं है। अटारी वाले भाई साहब की जयपुर टू दिल्ली जर्नी के बाद चर्चा ने और भी जोर पकड़ लिया। चर्चा के बीच राज के कई खास रत्नों की नींद उड़ गई, तो लाइन में लगे कई भाइयों के पैर जमीं पर नहीं टिक रहे। चर्चा है कि कैबिनेट में रिसफलिंग के लिए माथापच्ची पूरी हो चुकी है। अब गुजराती बंधुओं के पास दिल्ली तक पहुंचे सवा साल के रिपोर्ट कार्ड में फिसड्डी रहे सात रत्नों की रवानगी और 12 की ताजपोशी हो सकती है। अब उन भाई साहबों की हालत खराब है, जो वास्तव में जमीं से जुड़कर अपनी आने वाली पीढ़ियों के जुगाड़ के लिए न दिन देख रहे और न रात।

लाल आंखों का रहस्य :

भारती भवन के कुछ भाई साहबों की आंखें कुछ ज्यादा ही लाल हैं। राज का काज करने वालों की मानें तो उनको सत्ता और संगठन की रीति और नीति जम नहीं रही और वे सख्त खफा हैं। उनकी आंखें लाल हो भी क्यों न, हवामहल वाले बाबाजी के साथ दस दिन पहले जो कुछ किया, उनकी किसी को उम्मीद नहीं थी। उनको पीताम्बर वाले बाबा को एफआईआर की आड़ में बैकफुट पर लाने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा। माफी तक जाने के लिए बाबा पर किसका प्रेसर था, यह तो राम जानें, लेकिन सयानों की मानें, तो हर गलती कीमत मांगती है और इसमें गलती करने वाले भुगते बिना नहीं रहेंगे।

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सीपी के लिए लाइन हुई बड़ी :

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जब भी तबादलों की चर्चा होती है, तो कई पोस्टों के लिए सपने देखना भी चालू हो जाता है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जब से आईपीएस की लिस्ट आने की सुगबुगाहट हुई है, तभी से सीपी की कुर्सी के सपने देखने वाले एक्टिव हो गए हैं। सीपी की कुर्सी भी एक नहीं बल्कि दो हैं। इनमें से एक सूर्यनगरी में तो दूसरी गुलाबीनगरी में। गुलाबीनगरी वाली सीपी की कुर्सी के लिए साहब लोग दिल्ली तक दौड़ लगाने के साथ ही अटारी वाले भाई साहब को पुराने दिनों में ले जाने में कसर नहीं छोड़ रहे। कोई दामाद का सहारा ले रहा है, तो कोई ससुर की आड़ में खेल रहे है। साढू भाई भी पूरी ताकत लगा रहे हैं, तो कुछ बाबाओं का नाम लेकर भारती भवन वाले भाई साहबों का नाम लेने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। गुलाबीनगर वाली इस कुर्सी पर कौन बैठेगा, यह तो पता नहीं, लेकिन सपने देखने वालों की लाइन कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गई।

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एक जुमला यह भी :

सूबे की राजधानी गुलाबीनगर में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि एक न्यारी दुकान से ताल्लुक रखता है। दुकान भी दवा की नहीं, बल्कि दारू की है और बड़ी पहुंच वालों से ताल्लुकात रखती है। दुकान भी ऐरी गैरी जगह पर नहीं बल्कि भगवान के मंदिरों के पास है और मंदिरों में आने जाने वाले भक्तों को भगवान से पहले मदहोश भाई लोगों के हाथ जोड़ना पड़ता है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि विरोधी दल के राज में ही चांद के पोल में धड़ल्ले से चली इस दुकान का अब अपनी ही पार्टी के राज में बंद होना मुश्किल है। चूंकि सूबे में राज के लिए 18 महीने पहले हुई जंग में माताजी का प्रसाद तुला राशि वाले भाई साहब ने ही बांटा था, जिनका इससे गहरा ताल्लुकात है। इस न्यारी दुकान से ब्यूरोक्रेट्स के साथ ही भगवा वाले भाई साहब भी कन्नी काटते हैं। इसका कारण समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

-एल.एल. शर्मा 
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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