जानें राज काज में क्या है खास
भाई साहबों की बढ़ी धड़कन
ऑपरेशन सिन्दूर क्या हुआ, सूबे के कई भाई लोगों के मंसूबों पर पानी फिर गया।
मंसूबों पर फिरा पानी :
ऑपरेशन सिन्दूर क्या हुआ, सूबे के कई भाई लोगों के मंसूबों पर पानी फिर गया। भगवा वाले कई भाइयों ने मंत्रिमंडल में जगह मिलने की पूरी आस में कल्फ वाले सफेद झक कपड़े भी सिलवा लिए थे और ओथ लेने के दिन में भी सपने देख रहे थे, लेकिन सबकुछ गड़बड़ हो गया। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि अब नए सिरे से होने वाली एक्सरसाइज में कुछ भाई लोगों के नाम के आगे क्रॉस लगने के चांस बनते नजर आ रहे हैं। जिन आधा दर्जन भाई साहबों का पत्ता साफ होने वाला था, उनको भी कुछ दिनों के लिए राहत मिल गई। अब वे बेचारे दिन-रात ऑपरेशन सिन्दूर के गुणगान करते थकते ही नहीं हैं।
भाई साहबों की बढ़ी धड़कन :
सूबे के भगवा वाले भाई लोगों की धड़कन की स्पीड कम होने का नाम ही नहीं ले रही। घर वालों के साथ ही फ्रेंड्स भी काफी चिंतित हैं। उनके फैमिली डॉक्टर्स को भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर माजरा क्या है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भाई लोगों के बड़े ठिकाने पर आने वाले हार्ड कोर वर्कर भी चटकारे लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वे रोजाना नए-नए कारण बताकर तालियां पीट रहे हैं। सालों से ठिकाने पर आने वाले बुजुर्गवार की मानें, तो धड़कन बढ़ने का कारण केवड़िया है। जहां पिछले दिनों बीएल भाई साहब ने राज और उसके रत्नों के बारे में एमएलएज से वन टू वन फीडबैक लिया था।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि दो सिंहों को लेकर है, जो ब्यूरोक्रेसी से ताल्लुकात रखते हैं। जुमला भी बोर्डर से लेकर सचिवालय तक चल रहा है। इनमें से एक सिंह ने बचपन में गुलाबीनगरी के नलों का तो दूसरे सिंह ने नहरों का पानी पीया है। कन्या राशि वाले दोनों ही सिंह खुद को किसी से कम नहीं मानते हैं। इनमें से एक सिंह नेशनल सिविल सर्विस से ताल्लुकात रखता है, तो दूसरा स्टेट सर्विस का है। जुमला है कि ऑपरेशन सिन्दूर के बीच कामकाज को लेकर सीमावर्ती जैसलमेर जिले में दो सिंहों के बीच हुई तनातनी अब गुवाड़ी से निकल कर चौक में आ गई। राज ने एक सिंह का ठिकाना तो बदल दिया, मगर पटेलों की पटेलाई बीच में आ गई। अब इन पटेलों को कौन समझाए, कि जब जाजम बिछेगी, तो जुबान खोलने से पहले दांए-बाएं और आगे-पीछे का हिसाब भी लगाना होगा।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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