जानें राज काज में क्या है खास
चर्चा में वर्क एफिशिएंसी
पिंकसिटी में भगवा वाले भाई लोगों के एक खेमे को अब सिर्फ ताई का ही आसरा है।
अब ताई का ही आसरा :
पिंकसिटी में भगवा वाले भाई लोगों के एक खेमे को अब सिर्फ ताई का ही आसरा है। वृषभ राषि वाली ताई भी मरु भूमि से नहीं बल्कि मराठा जमीं से ताल्लुक रखती हैं। दिल्ली दरबार में भी ताई का पगफेरा कुछ ज्यादा ही है। शहर के उत्तरी इलाके में मूंछ का सवाल बने वृश्चिक राशि वाले छोटे साहब के ट्रांसफर ने भाई लोगों को ताई की याद जो दिला दी। साहब भी एक कदम आगे निकले जो आनन-फानन में ही आदर्शनगर वाले भाई साहब का सहारा लेकर अपना ट्रांसफर कैंसिल करवा लाए। इसके बाद डिप्रेशन में आए कई बड़े लोग एक जाजम पर भी बैठे और सुमेरपुर वाले भाई साहब से अरदास भी की, मगर उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए, सो पार नहीं पड़ी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि भाई लोगों को अब सिर्फ ताई का ही आसरा है। अब वे उस चौघड़िए का इंतजार कर रहे हैं, जिसमें ताई से मुलाकात होगी।
चर्चा में वर्क एफिशिएंसी :
सूबे में इन दिनों वर्क एफिशिएंसी को लेकर काफी चर्चा है। वैसे तो कानाफूसी तो पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक है, लेकिन ज्यादा असर सचिवालय के गलियारों में दिखाई दे रहा है। ठाले बैठे लोग लंच केबिनों में कागज पेन लेकर वर्क एफिशिएंसी के नाम पर राज का काज करने वालों की सूची बनाते हैं, मगर 13 के बाद उनकी स्पीड भी धीमी पड़ जाती है। राज करने वालों ने भी वर्क एफिशियंसी के नाम पर पद बांटने की कई बार कोशिश की, मगर उनकी लिस्ट भी लम्बी नहीं हो पाई। डीओपी वाले साहब कुछ माथापच्ची करते तो उसमें डिजायर सिस्टम आड़े आ गया। अब बेचारे सीधे सादे कानपुर वाले साहब को ही तन के साथ मन लगाकर राज का इकबाल कायम करने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
गलफांस बना एंक्रोचमेंट :
सूबे में इन दिनों एंक्रोचमेंट के मामले डीएलबी के साहब लोगों के गले की फांस बने हुए हैं। उनके न तो उगलते बन रहे हैं और निगलते। वे कुछ करने की सोचते हैं, कि पॉलिटिक्ल एप्रोच आडेÞ आ जाती है। बेचारों की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। जिनको एंक्रोचमेंट हटाने का जिम्मा सौंपा गया है, वे खुद ही कई कदम आगे हैं। पिंकसिटी के हवामहल के द्वार के सामने वाले भवन से चर्चा निकल कर आ रही है कि बड़े एंक्रोचमेंट को लेकर एक्शन की फाइल तो चली थी, मगर आगे नहीं बढ पाई। कारण तो सबको पता है, मगर जानबूझकर चुप है। राज का काज करने वालों में खुसरफुसर है कि पेट वालों को दूर कर गोद वालों को तवज्जो दोगे, तो रिजल्ट भी उनके हिसाब से ही मिलेगा। अब हाथ से हाथ छुड़ा कर भगवा वालों के गले लगने वाले भाई लोगों ने भी कुछ सोच समझ कर ही कदम उठाया है। चूंकि उनको नवम्बर से पहले वापस अपने पैरेंटल हाउस में लौटना है। उनके इस कदम को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि न घर के और न घाट के रहे को लेकर है। जुमले को लेकर दिन में देखे सपनों को पूरा करने के लिए डेढ़ साल पहले सालों पुराना हाथ का साथ छोड़ कमल के फूल की सुगंध सूंघने आए भाई लोगों की हालत कुछ ठीक नहीं है। उनका दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई है। उनको समझ में नहीं आ रहा कि आखिर माजरा क्या है। जुमला है कि सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने पर कदम रखने के बाद उनको इस बात के लिए बगलें झांकना पड़ता है, कि कोई वर्कर उनसे राम-राम करने के लिए आगे कदम तो नहीं बढा रहा है। लेकिन भगवा वाले हार्ड कोर वर्कर भी बड़े समझदार हैं। राम-राम करना तो दूर की बात, उनकी तरफ टेढ़ी नजरों से देखने के बाद अपना मुंह फेरने में ही अपनी भलाई समझते हैं। बेचारों की हालत तो उस समय और भी ज्यादा खराब होती है, जब बड़े ठिकाने से कार्यक्रमों में उनको बुलावा तक नहीं भेजा जाता। विधायकी और सांसदी के सपने देखने वाले न तो घर के रहे और नहीं घाट के।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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