गांधी मार्ग से सभी समस्याओं का समाधान संभव
नैतिकता और सत्य पर सतत चलने का प्रतिफल है
गांधी के जीवन कोप्रारंभ से लेकर अंत तक देखते हैं, तो हमें ऐसे अनेक पड़ाव देखने को मिलते हैं जिससे प्रतीत होता है कि सरल व्यक्तित्व, व्यापक एवं दूर दृष्टिकोण, मानवतावादी दृष्टिकोण,सत्य और अहिंसा की दृढ़ताभरी हुई थी।
जयपुर। मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी बनने की साधना बहुत लंबी रही है। यह किसी उत्परिवर्तन का परिणाम नहीं है, अपितु ऐसे सदमार्ग, सदआचरण, सद व्यवहार, नैतिकता और सत्य पर सतत चलने का प्रतिफल है। गांधी के जीवन कोप्रारंभ से लेकर अंत तक देखते हैं, तो हमें ऐसे अनेक पड़ाव देखने को मिलते हैं जिससे प्रतीत होता है कि सरल व्यक्तित्व, व्यापक एवं दूर दृष्टिकोण, मानवतावादी दृष्टिकोण,सत्य और अहिंसा की दृढ़ताभरी हुई थी। वे न केवल मनुष्य तक सीमित थेअपितुजीव जंतु,पेड़ पौधे और पर्यावरण के लिए भी उतने ही प्रयासरत थे,जितने मानव कल्याण के लिए थे। गांधी आध्यात्मिक होने के साथ-साथ इसकी व्यावहारिकता की क्रियान्विति पर जोर देते थे। उनकी सोच में संपूर्ण विश्व ही एक परिवार था। हाल ही में भारत ने जी-20की अध्यक्षता एवं मेजबानी करते हुए वसुधैव कुटुंबकम की थीम को विश्व के समक्ष रखते हुएएक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्यका नारा दिया जो की गांधी के विचारों से प्रेरित है। विश्व केअनेक देशों में आंतरिक अशांति,द्वंद,आतंकवाद,नक्सलवाद जैसी समस्याएं एवं चुनौतियां खड़ी है और युद्ध के हालात बने हुए हैं या प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष संघर्ष जारी है I ऐसे हालातो में गांधीजी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है और उन समस्याओं और चुनौतियों का मुकाबला गांधी के सिद्धांतों का अनुसरण करके किया जा सकता है।
महात्मा गांधी के सर्वोदय के सिद्धांत की बात करें तो प्रतीत होता है कि वे सभी का उदय करना चाहते थे। उन्होंने विकेंद्रीकरण की बात करते हुए कहा कि जब तक शासन -प्रशासन में अंतिम व्यक्ति की सहभागिता नहीं होगी तब तक देश का विकास संभव नहीं है। वे सभी धर्म का आदर करते थे और देश की आन, बान और शान के लिए उन्होंनेअपनी अंतिम सांसों तक प्रयास किया। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा देने के पीछे यह अवधारणा है कि उन्होंने देशभक्ति,राष्ट्रीयता की भावना से जुड़ते हुए प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में रखकर के अपना सब कुछ न्योछावर किया। गांधी एक अच्छे वकील के साथ-साथ एक कुशल लेखक भी थे। उनकी लेखन शैली सरल, सटीक, स्पष्ट और कृत्रिमता से रहित थी। गांधी द्वारा लिखा गया हिंद स्वराज, 1909में गुजराती में प्रकाशित हुआ। उन्होंने गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में हरिजन सहित कई समाचार पत्रों का संपादन किया, जैसे- इंडियन ओपिनियन जबकि दक्षिण अफ्रीका मेंयंग इंडिया, अंग्रेजी में, और नवजीवन, एक गुजराती मासिक। भारत लौटने पर गांधी जी ने अपनी आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ सहित कई किताबें भी लिखी। गांधी की पूरी रचनाएं भारत सरकार द्वारा 1960के दशक में द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी के नाम से प्रकाशित की गई थी।
गांधीवादी अहिंसा व शांतिमुख्य रूप से आध्यात्मिक लक्ष्यतथागोणरूप से राजनीतिक व सामाजिक लक्ष्यसे प्रेरित होने के कारण आधुनिक समाज में आज भी लोकप्रिय है व स्वीकार्य है। एक नेता व विचारक के रूप में गांधी की महानता इस बात में निहित थी किउन्होंने अहिंसा व शांति के संदेश को जन आंदोलन के सफल तकनीक में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने अहिंसा में शांति को व्यावहारिकता का स्वरूप प्रदान किया। समाज के प्रत्येक क्षेत्र मेंउन्होंने विभिन्न रूपों में अहिंसा में शांति के प्रयोगात्मक पहलू को न केवल प्रस्तुत किया, अपितु उसे स्वयं जीया भी राजनीतिक क्षेत्र में जहां अनेक सत्याग्रह आंदोलन उनके अहिंसक प्रयोग को अभिव्यक्त करते हैं वहीं सामाजिक क्षेत्र में भी अहिंसा के प्रयोग स्वरूप का उनका चिंतन स्पष्ट था। महात्मा गांधी ने महात्मा बुद्ध, भगवान महावीरस्वामी, नानक, कबीर, विनोबा जैसे प्राचीन भारतीय विचारों में संतों द्वारा प्रतिपादितअहिंसा व शांति के सिद्धांत को सामाजिक व राजनीतिक लक्ष्य पाने का एक जरिया बनाने का प्रयास किया। उनके विचार में राजनीति में सुधार का सर्वोत्तम साधन अहिंसा में शांति ही हो सकता है। गांधी के सिद्धांतों को हमें राजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक,औद्योगिक या कहें प्रत्येक क्षेत्र में व्यावहारिकता में लाने की आवश्यकता है। वैश्विक परिपेक्ष में देखते हैं तो पता चलता है कि भारत की पहचानऔर सम्मान में निरंतर वृद्धि हो रही है और दुनिया के देशों की नजर भारत पर है। वे देश यह अपेक्षा करते हैं कि यदि समस्याओं और चुनौतियां का हल खोजना है तो हमें भारतीय दृष्टिकोणऔर भारत की गांधीवादी सोच से ही समाधान संभव हो सकता है।
गांधी का समयहिंसा, तीव्र औद्योगिकरण और उपनिवेशवाद के साथ-साथ विश्वयुद्धों का समय भी हैI वे उनसे भागते या पहले से चली आ रही विरोध की परंपरा कोयथावत स्वीकार नहीं करते, बल्कि अपने विवेक से उनके मूल कारणकोजानने और समझने का प्रयासकरके उनका समाधान प्रस्तुत करते हैं I गांधी जीहिंसा का उपाय ज्यादा इंसान नहीं बल्कि मनुष्यता ही है। यह गांधी के विचार की बुनियाद भी कहीं जा सकती है और उनके लिए किसी भी समस्या का हल इस बात में है कि मनुष्यता को केंद्र में रखकर इसका क्या समाधान खोजा जा सकता है। जब मनुष्य चाहे प्रतिपक्षी ही सही अपने मूल स्वभाव अहिंसा को छोड़कर उसके विरोध में काम करने लगे तो गांधी के अनुसार मनुष्यता का तकाजा यही है कि उसे प्रेम के नियम से ही अहिंसा की ओर प्रवृत्त किया जाए। महात्मा गांधी की इस बात का समर्थन हेराल्ड जे लास्कीजैसे राजनीति विज्ञानीके इस निष्कर्ष से भी होता है कि राज्य के लक्ष्य कुछ भी हो यथार्थ में राज्य एक शक्ति संगठन है जो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए बल प्रवर्तन के अपने वैध अधिकार पर आश्रित है और अंततः राज्य की सेवा ही उसकी इच्छा पूर्ति का साधन है। वही राम मनोहर लोहियाने जब यह कहा था कि विश्व को गांधी और अनुभव में से किसी एक को चुनना होगा तो वह केवल युद्ध और शांति की बात नहीं कर रहे थे। उनका आशय अहिंसा औरहिंसा सभी सूक्ष्म स्थल रूपों और आयाम में से किसी एक के चुनावका था। महात्मा गांधी ने 1931 में लंदन मेंभारतीय छात्रों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था मुझे अपने देशवासियों की पीड़ाओं के निवारण से भी अधिक चिंता मानव प्रकृति के बरबरीकरण की है। वह वरवरिकरणजो इस आधुनिकतावादी कहीं जाने वाली सभ्यता के लालच का एक स्वभाव एक परिणाम है। मार्टिन लूथर किंगभारतीय संस्कृति एवं गांधीवाद से बेहदप्रभावित थे। शांति स्थापित करने के लिए उन्हें विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल शांति पुरस्कारप्रदान किया गया था। उन्होंने कहा था किभारत देश से मुझे इसकीप्रेरणा मिलीमुझे भारतीय सिद्धांतों व गांधीजी ने अत्यधिक प्रभावित कियाI गांधी जी की अहिंसक नीतिऔर उनके कार्य करने केतरीके ने मेरे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। देश की एकता और अखंडता के लिएउन्होंनेआजीवन संघर्ष किया, लेकिन जो भी कियासत्य और अहिंसा के बल पर कियाऔरजिसका परिणाम आजादी के रूप मेंदेश को मिला। हालांकि गांधी जी की आजादी इससे भी व्यापक थी परंतु समय एवं परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने निर्णय किया वह देश की एकता और अखंडता के लिए था। हम न केवल भारत के समक्षखड़ी समस्याओं एवं चुनौतियांके समाधान का मार्ग तलाश सकते हैं, अपितु पूरी दुनियाकेसमक्ष समस्याओं एवं चुनौतियां का समाधान गांधीवादी चिंतनऔर गांधी मार्ग से कर सकते है।
विश्व स्तर पर प्रसिद्ध व्यक्ति, महात्मा गांधी को उनकी अहिंसक, अत्यधिक बौद्धिक और सुधारवादी विचारधाराओं के लिए जाना जाता है। महान व्यक्तित्वों में माने जाने वाले, भारतीय समाज में गांधी का कद बेजोड़ है, क्योंकि उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के उनके श्रमसाध्य प्रयासों के लिए ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में जाना जाता है। महात्मा गांधी की शिक्षा ने उन्हें दुनिया के सबसे महान लोगों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महात्मा गांधी का शिक्षा में योगदान यह मानना था कि भारतीय शिक्षा सरकार के नहीं बल्कि समाज के अधीन है, इसलिए महात्मा गांधी भारतीय शिक्षा को ‘द ब्यूटिफुल ट्री’ कहा करते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान रहा। भारत का हर नागरिक शिक्षित हो यही उनकी इच्छा थी। गाँधी जी का मूल मंत्र ‘शोषण विहिन समाज की स्थापना’ करना था।जलियांवाला बाग नरसंहार से गाँधी जी को यह ज्ञात हो गया था कि ब्रिटिश सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अतः उन्होंने सितंबर 1920से फरवरी 1922के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। लाखों भारतीय के सहयोग मिलने से यह आंदोलन अत्यधिक सफल रहा। और इससे ब्रिटिश सरकार को भारी झटका लगा।12मार्च 1930 से साबरमती आश्रम (अहमदाबाद में स्थित स्थान) से दांडी गांव तक 24दिनों का पैदल मार्च निकाला गया। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के नमक पर एकाधिकार के खिलाफ छेड़ा गया। गाँधी जी द्वारा किए गए आंदोलनों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलन था।

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