भारत में हरित शहरों के लिए रोडमैप
महत्वपूर्ण कदम है
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के मुद्दे सबसे महत्वपूर्ण हैं।
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के मुद्दे सबसे महत्वपूर्ण हैं। धरती पर बढ़ते प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण हरित पर्यावरण की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ गई है। एक हरित पर्यावरण का मतलब है एक ऐसा वातावरण, जहां प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग हो और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान न पहुंचे। इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। हरित पर्यावरण के लिए ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और बायोमास ऊर्जा का उपयोग करना सबसे महत्वपूर्ण रणनीति है। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला और तेल से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना अत्यावश्यक है। सौर पैनल और पवन ऊर्जा के उपकरण स्थापित कर, हम न केवल प्रदूषण कम कर सकते हैं, बल्कि दीर्घकालिक ऊर्जा स्रोत भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
वन संरक्षित हों :
वृक्षारोपण और वन संरक्षण महत्वपूर्ण है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और हमें शुद्ध आॅक्सीजन प्रदान करते हैं। इसलिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने और वनों को संरक्षित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। वनों की कटाई को रोकने के लिए कड़े कानून लागू किए जाने चाहिए और समुदायों को वृक्षारोपण कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए। शहरी क्षेत्रों में हरित क्षेत्रों का विस्तार करने और छोटे-बड़े बागानों की स्थापना करने से भी पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी। हरित क्षेत्रों का संरक्षण और विस्तार किया जाना चाहिए। पार्क, बगीचे, और शहरों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए ताकि शहरी हीट आइलैंड प्रभाव को कम किया जा सके और नागरिकों के लिए स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सके।
तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने भारत के शहरों को वैश्विक आर्थिक केंद्रों में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, यह विकास कई पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों को भी सामने लेकर आया है।
जागरूकता का होना :
शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण, जल संकट, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या और बढ़ती जनसंख्या के कारण बुनियादी सुविधाओं पर बढ़ते दबाव जैसी चुनौतियां अब प्रमुख हो गई हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए हरित शहरों की अवधारणा एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर रही है। इस दिशा में सबसे बड़ा कदम शिक्षा और जागरूकता का होना है। लोगों को यह सिखाना और जागरूक करना जरूरी है कि वे किस प्रकार अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, ताकि बच्चे बचपन से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें। साथ ही, सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियानों का आयोजन करना चाहिए ताकि सभी लोग पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को समझ सकें। हरित शहरों का मतलब केवल पर्यावरण संरक्षण से नहीं है, बल्कि ऐसी संरचनाओं और नीतियों का विकास करना है, जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा दें। भारत जैसे देश में, जहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है, हरित शहरों के विकास के लिए एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करना न केवल जरूरी है बल्कि समय की मांग भी है।
हरित पर्यावरण :
शहरों के तेजी से विस्तार के कारण हरित पर्यावरण पर दबाव बढ़ा है। इसलिए शहरी नियोजन और भवन निर्माण में पर्यावरणीय मापदंडों का ध्यान रखा जाना चाहिए। हरित भवन निर्माण की अवधारणा को अपनाना जरूरी है, जिसमें ऊर्जा की खपत कम हो और प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो। इसके अलावा, छतों पर हरित उद्यानों की स्थापना और पानी की पुन:चक्रण प्रणाली को अपनाना भी पर्यावरण संरक्षण में सहायक हो सकता है। हरित भवन तकनीक, जैसे ऊर्जा-संवर्धन वाली सामग्री का उपयोग, प्राकृतिक रोशनी और हवादार संरचनाओं का विकास, जल पुनर्चक्रण प्रणाली आदि को अनिवार्य करना चाहिए। हरित शहरों की अवधारणा वह हैं, जहां आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन होता है। इन शहरों का मुख्य उद्देश्य कार्बन फुटप्रिंट को कम करना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना, और पर्यावरणीय सततता को सुनिश्चित करना है।
महत्वपूर्ण कदम है :
पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को संरक्षित करना हरित पर्यावरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जैव विविधता हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को बनाए रखती है और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करती है। इसे बचाने के लिए संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव अभ्यारण्यों की स्थापना करनी चाहिए। वन्यजीवों की अवैध शिकार और तस्करी पर कड़े नियम लागू किए जाने चाहिए। विकास के लिए एक समग्र और प्रभावी रोडमैप तैयार करना आवश्यक है। इसके तहत प्रमुख घटक शामिल होने चाहिए जैसे नीतिगत ढांचा और कानूनों का सख्त पालन हरित शहरों के विकास के लिए सरकार को ठोस नीतियों और योजनाओं का निर्माण करना होगा। पर्यावरण संरक्षण कानूनों को और सख्त बनाया जाना चाहिए और उनका पालन सुनिश्चित करना होगा। इसके साथ ही,राज्य और नगर निगमों को हरित शहरों के लिए समर्पित योजनाओं को लागू करना चाहिए। शहरों में ऊर्जा का स्रोत नवीकरणीय संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत से होता है। इसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और प्रदूषण को नियंत्रित करना है। हरित पर्यावरण की दिशा में काम करना केवल सरकार या किसी एक समूह की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें समाज के हर वर्ग का योगदान जरूरी है।
-डॉ. रिपुन्जय सिंह
सदस्य,राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड,जयपुर
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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