रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध

वैकल्पिक स्रोतों की तलाश 

रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध

अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए प्रतिबंध लगाए हैं।

अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए प्रतिबंध लगाए हैं। इसके पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मुख्य उद्देश्य है रूस की तेल से होने वाली आय को कम करना। ताकि यूक्रेन युद्ध में रूस की वित्तीय क्षमता को सीमित किया जा सके। इस फैसले का प्रभाव सिर्फ रूस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। यह दोनों कंपनियां भारत को अधिकांश कच्चे तेल की आपूर्ति करती हैं। ऐसे में भारतीय रिफाइनरियों का भविष्य भी दांव पर लग गया है। यदि आपूर्ति किन्हीं कारणों से प्रभावित होती है, तो ऐसे में भारत को तेल आयात के लिए सउूदी अरब, संयुक्त अरब, इराक या सिंगापुर के ट्रेडिंग हब आदि का सहारा लेना पड़ सकता है। इससे तेल की लागत बढ़ेगी, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

वैकल्पिक स्रोतों की तलाश :

अमेरिका के प्रतिबंधों का स्वरूप मुख्यत: द्वितीयक प्रतिबंध यानी यह सिर्फ अमेरिकी नागरिकों या कंपनियों तक नहीं बल्कि उन देषों या कंपनियों को भी निषाना बना सकता है जो रूस के साथ तेल व्यापार में सहयोग करती हैं। प्रतिबंधित कंपनियों के साथ व्यापार करने वाले बैंक या ऊर्जा कंपनियां भी प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में भारतीय बैंकों और बीमा कंपनियों पर दबाव बढ़ सकता है, जो रूसी तेल सौदों को वित्तीय सहायता या बीमा सुरक्षा देती हैं।

यदि अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील मिले तो भारत, ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों से पुन: तेल आयात करने पर विचार कर सकता है। ईरान पर अमेरिका ने पहले से ही प्रतिबंध लगा रखा है। इन दिनों उसने वेनेजुएला की अलग सैन्य घेरेबंदी कर रखी है। ऐसे में प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की वजह से भारत को अपनी जरूरत के मुताबिक तेल आपूर्ति के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ सकती है। इसके अलावा स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व को मजबूत करना और दीर्घकालिक तेल अनुबंधों पर ध्यान देना होगा। 2020 में यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदना शुरू किया। आज भारत, चीन के बाद रूस का सबसे बड़ा कच्चा तेल का खरीदार बना। 2024 तक रूस से भारत अपने तेल आयात का करीब 35 फीसदी तक पहुंच गया। इससे भारत को न केवल अपनी ऊर्जा लागत को नियंत्रित करने बल्कि परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी बढ़ाया।

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भारत रूसी कंपनियों से व्यापार जारी :

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रूस ने अब तक भारत को लगभग 10-12 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर तेल बेचा है। अगर प्रतिबंधों के कारण रूस की निर्यात प्रक्रिया जटिल होती है तो रियायती दरें घट सकती हैं। यानी भारत को महंगे दामों पर रूसी तेल खरीदना पड़ सकता है, जिससे घरेलू ईंधन की कीमतों पर दबाव पड़ेगा। भारत और रूस के बीच जो रुपए-रूबल भुगतान प्रणाली स्थापित की गई थी, वह पश्चिमी वित्तीय तंत्र स्विफ्ट से बाहर काम करती है। भारत ने अब तक रूस और अमेरिका दोनों के साथ संबंधों का संतुलन बनाए रखा है। एक ओर अमेरिका भारत का सामरिक साझेदार है क्वाड और इंडो पैसिफि क रणनीति में उसकी प्रमुख भूमिका है। दूसरी ओर रूस भारत का पारंपरिक रक्षा और ऊर्जा सहयोगी है। अब अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत पर दबाव बढ़ सकता है कि वह रूस से दूरी बनाए। लेकिन भारत के लिए यह संभव नहीं है, क्योंकि उूर्जा सुरक्षा उसकी प्राथमिक आवश्यकता है। भारत की रूस के तेल खरीद पर पहले से ही पश्चिमी देशों ने नैतिक और राजनीतिक आलोचना की है। अमेरिका और यूरोप मानते हैं कि भारत और चीन की रूसी तेल खरीद से रूस को युद्ध चलाने के लिए आर्थिक मदद मिलती है। नए प्रतिबंधों के बाद यदि भारत रूसी कंपनियों से व्यापार जारी रखता है तो कूटनीतिक आलोचना बढ़ सकती है।

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वास्तविक बहुध्रुवीय संतुलन की नीति अपनानी :

भारत को अपनी ऊर्जा नीति में विविधता लाने की जरूरत होगी। नवकरणीय उूर्जा जैसे सौर और पवन में निवेश और रूस के साथ ऊर्जा साझेदारी को और मजबूत करने के लिए रुपये या डिजिटल करेंसी आधारित भुगतान प्रणाली को बढ़ावा दे। रूस यह भी चाहता है कि भारत उसकी तेल रिफाइनरी परियोजनाओं या पाइपलाइन निवेशों में साझेदारी करे ताकि पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम किया जा सके। अगर रूसी तेल की आपूर्ति प्रतिबंधों के कारण घटती है, तो वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें पहले ही 90 डॉलर प्रति बैरल के करीब हैं, नई बाधाओं से यह 100 डॉलर से उूपर जा सकता है। भारत जैसे आयातक देशों के लिए यह महंगाई और व्यापार घाटे में वृद्धि का कारण बनेगा। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह अमेरिकी दबाव और अपनी ऊर्जा जरूरतों के बीच संतुलन बनाए रखे। रूस से संबंधों को पूरी तरह तोड़ना संभव नहीं और अमेरिका से दूरी बनाना रणनीतिक रूप से हानिकारक है। इसलिए भारत को वास्तविक बहुध्रुवीय संतुलन की नीति अपनानी होगी। जहां राष्ट्रीय हित सवार्ेपरि हों और वैश्विक दबावों में स्वतंत्र निर्णय लिए जाएं। देश के तेल आयात बिल में 2 फीसदी की वृद्धि होगी। हालांकि बढ़ी हुई लागत का भारतीय उपभोक्ताओं पर कम से कम तुरंत असर पड़ने की संभावना नहीं है। नई दिल्ली को मास्को के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए कूटनीतिक रूप से कदम उठाने होंगे। खासकर जब अमेरिका के साथ संबंध अप्रत्याशित हो गए हैं, जिससे वह कुछ और वायु रक्षा प्रणालियां खरीदने की उम्मीद कर रहा है। फि र दिसंबर माह में नई दिल्ली में राष्ट्रपति पुतिन के साथ द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन भी आयोजित होने वाला है।

- महेश चंद्र शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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