देश के विकास में महिलाओं के स्वास्थ्य की अहम् भूमिका

परिवार की धुरी ‘महिला’ होती है

देश के विकास में महिलाओं के स्वास्थ्य की अहम् भूमिका

एक स्वस्थ महिला ही अपने परिवार की देखभाल व पोषण संबंधी विविध आवश्यकताओं को सुचारू रूप से परिपूर्ण करती हुई परिवार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

परिवार, समाज व देश के समग्र व संतुलित विकास में महिलाओं के स्वास्थ्य की अहम् भूमिका हैं। परिवार की धुरी ‘महिला’ होती है। महिला के स्वास्थ्य का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण परिवार के स्वास्थ्य, विकास व खुशहाली पर पड़ता है। एक स्वस्थ महिला ही अपने परिवार की देखभाल व पोषण संबंधी विविध आवश्यकताओं को सुचारू रूप से परिपूर्ण करती हुई परिवार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। स्वस्थ महिला ही स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट संतान को जन्म देकर उसके भरण-पोषण की समुचित व्यवस्था करते हुए स्वस्थ भावी युवा पीढ़ी का निर्माण करती है, जो समाज व देश के भावी ‘कर्णधार’ होते हैं।

विभिन्न शोधों के दौरान यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि महिला स्वास्थ्य पर जैविकीय व भौतिक-घटकों के अतिरिक्त सामाजिक सांस्कृतिक व आर्थिक तत्वों का भी प्रभाव पड़ता है। दुखद व चिन्ताजनक तथ्य है कि वर्तमान में भी ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कारणों से महिलाओं के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। हमारे समाज में अभी भी महिलाओं के स्वास्थ्य की उपेक्षा व अवहेलना की जाती है। विश्व स्वास्थ्य प्रतिवेदन में भी देश में महिलाओं के स्वास्थ्य संकट की ओर संकेत करते हुए उल्लेख किया गया है कि भारत की लगभग 65 प्रतिशत महिला जनसंख्या कुपोषण की शिकार है, 80 प्रतिशत महिलाएं रक्त की कमी से ग्रस्त है। यही नहीं, कितनी ही महिलाएं प्रति वर्ष गर्भावस्था अथवा शिशु जन्म के दौरान अकाल मौत का ग्रास बन जाती है।

स्वतंत्रता के पश्चात, देश में महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार सुनिश्चित करने के लिए अनेक कार्यक्रम संचालित किए गए। देश में समेकित बाल परियोजना एवं गोद भराई योजना के माध्यम से गर्भवती महिलाओं की जांच, पोषाहार, टीकाकरण एवं परामर्श की व्यवस्था की जा रही है। इसी भांति ‘जननी सुरक्षा योजना’ के अन्तर्गत मातृ वं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए ‘संस्थागत प्रसव’ को बढ़ाने के लिए ‘नकद राशि’ के रूप में प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है। मातृ मृत्यु दर व रूग्णता में कमी लाने के लिए मातृ-स्वास्थ्य कार्यक्रम का सूत्रपात किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत गर्भावस्था का शीघ्र पंजीकरण, प्रसव से पूर्व कम से कम तीन बार परीक्षण, गर्भवती स्त्री महिलाओं को टीकाकरण व प्रशिक्षित कार्मिकों द्वारा प्रसव जैसे घटकों को प्राथमिकता प्रदान की गई। इसके साथ ही, निर्धन महिलाओं को स्वास्थ्य केन्द्रों तक आपात स्थिति में शीघ्र पहुंचाने के लिए ‘रेफरल वाहन’ की व्यवस्था भी की गई है। सुरक्षित मातृत्व के बारे में महिलाओं को जागरूक व शिक्षित करने के दृष्टिकोण से परिवार कल्याण विभाग द्वारा सूचना, शिक्षा और सम्प्रेषण संबंधी कार्यक्रमों का आयोजन समय-समय पर किया जाता है। इन सबके बावजूद भी स्वास्थ्य सुविधाओं के दृष्टिकोण से महिलाओं की ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति शहरों की तुलना में काफी निराशाजनक है।
देश में बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, बाल विवाह, दहेज-प्रथा, पर्दा प्रथा व निरक्षरता के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। देश में गरीबी व बेरोजगारी का दंश सर्वाधिक महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। गरीबी के कारण महिलाएं सम्पूर्ण परिवार को खिलाने के पश्चात् अवशिष्ट भोजन को ग्रहण करते हुए कुपोषण व रक्ताल्पता जैसी भयावह स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो जाती है। इसी भांति गर्भावस्था व प्रसव के दौरान भी गरीब महिलाएं आवश्यक पोषक व समुचित आहार से वंचित रह जाती है जिसकी वजह से अन्तत: वे अकाल मौत का शिकार हो जाती है। देश में मातृ मृत्यु दर का आंकड़ा विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा काफी अधिक है। कितनी विडम्बना है कि महिलाओं के लिए ‘मां’ बनना वरदान नहीं अपितु अभिशाप साबित हो रहा है। यह हमारे सभ्य समाज पर कलंक ही है कि ‘मां’ बनने की सजा के रूप में महिलाओं को अपना अस्तित्व दांव पर लगाना पड़ता है। महिलाएं प्रसव जैसी स्वाभाविक प्रक्रिया के दौरान मौत का ग्रास बन जाती है। सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर सम्पादित विभिन्न सर्वेक्षणों के दौरान यह चिन्ताप्रद तथ्य सामने आया है कि देश की आधी से अधिक महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा अत्यन्त कम है। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष सामने आया है कि किशोरावस्था में विवाहित हो जाने वाली 1.9 प्रतिशत लड़कियां खून की जबरदस्त कमी तथा 45.9 प्रतिशत खून की सामान्य कमी का शिकार होती है। रक्ताल्पता के कारण ही प्रसव के दौरान महिलाओं का जीवन अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। यही नहीं, रक्तालपता का प्रतिकूल प्रभाव नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है जिससे बच्चे के सुनहरे भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। ऐसा पाया गया है कि रक्ताल्पता से ग्रस्त महिलाओं मे से लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं पोषकाहार की न्यूनता, अपर्याप्तता व अभाव के कारण इस रोग का शिकार हो जाती है।ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधाओं की अपर्याप्तता, प्रशिक्षित शिक्षा कर्मियों का अभाव एवं महिला चिकित्सकों की अनुपस्थिति के कारण ग्रामीण महिलाओं में मातृत्व मृत्यु दर अधिक है। 
       

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