सेव अरावली अभियान का समर्थन करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा- अरावली की नई परिभाषा उत्तर भारत के भविष्य के लिए खतरा, केंद्र सरकार पुनर्विचार करे

उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न

सेव अरावली अभियान का समर्थन करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा- अरावली की नई परिभाषा उत्तर भारत के भविष्य के लिए खतरा, केंद्र सरकार पुनर्विचार करे

अशोक गहलोत ने गुरुवार को अरावली संरक्षण के पक्ष में चल रहे सेव अरावली अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर (डीपी) बदली। गहलोत ने कहा कि यह महज एक फोटो बदलना नहीं, बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है।

जयपुर। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार को अरावली संरक्षण के पक्ष में चल रहे सेव अरावली अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर (डीपी) बदली। गहलोत ने कहा कि यह महज एक फोटो बदलना नहीं, बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है। अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन बदलावों ने पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। उन्होंने जनता से भी अपील की है कि वे अपनी डीपी बदलकर इस मुहिम का हिस्सा बनें। गहलोत ने अरावली की नई परिभाषा को अस्तित्व के लिए खतरनाक बताते हुए तीन प्रमुख चिंताएं जाहिर की हैं। गहलोत ने कहा कि अरावली कोई मामूली पहाड़ नहीं, बल्कि प्रकृति की बनाई हुई 'ग्रीन वॉल' है। यह थार रेगिस्तान की रेत और गर्म हवाओं (लू) को दिल्ली, हरियाणा और यूपी के उपजाऊ मैदानों की ओर बढ़ने से रोकती है। यदि 'गैपिंग एरिया' या छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल दिया गया, तो रेगिस्तान हमारे दरवाज़े तक आ जाएगा और तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। ये पहाड़ियाँ और यहाँ के जंगल एनसीआर (एनसीआर) और आसपास के शहरों के लिए 'फेफड़ों' का काम करते हैं। ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

गहलोत ने चिंता जताई कि जब अरावली के रहते हुए स्थिति इतनी गंभीर है, तो अरावली के बिना स्थिति कितनी वीभत्स होगी, इसकी कल्पना भी डरावनी है। अरावली को जल संरक्षण का मुख्य आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी चट्टानें बारिश के पानी को ज़मीन के भीतर भेजकर भूजल रिचार्ज करती हैं। अगर पहाड़ खत्म हुए, तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर किल्लत होगी, वन्यजीव लुप्त हो जाएंगे और पूरी इकोलॉजी खतरे में पड़ जाएगी। गहलोत ने जोर देकर कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से अरावली एक निरंतर शृंखला है। इसकी छोटी पहाड़ियाँ भी उतनी ही अहम हैं जितनी बड़ी चोटियाँ। अगर दीवार में एक भी ईंट कम हुई, तो सुरक्षा टूट जाएगी। गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए इस परिभाषा पर पुनर्विचार किया जाए। अरावली को 'फीते' या 'ऊंचाई' से नहीं, बल्कि इसके 'पर्यावरणीय योगदान' के आधार पर आंका जाना चाहिए।

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