राजस्व मण्डल दो दशक बाद भी अधीनस्थ न्यायालय से नहीं मंगवा पा रहा रिकॉर्ड, पेंडेंसी बढ़ने का यह भी बड़ा कारण, वर्तमान में 70 हजार की पेंडेंसी
इसलिए दादा का मुकदमा पोते लड़ने को मजबूर
आदेश की पालना के लिए मण्डल प्रशासन संबंधित अधीनस्थ न्यायालय को पत्राचार भी कर चुकी, लेकिन बीस साल बाद भी हालात जस के तस ही बने हुए हैं।
अजमेर। राजस्व मामलों में प्रदेश की सर्वोच्च अदालत का दर्जा प्राप्त राजस्व मण्डल में पेडेंसी का ग्राफ 70 हजार पार कर गया है। इसका सबसे बड़ा कारण मण्डल के आदेश की अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों से पालना नहीं करना हैं। हालात यह हैं कि दो से तीन दशक तक के मामलें में मण्डल में केवल इसलिए विचाराधीन है कि निचली अदालतों को बार-बार मण्डल की बैंच द्वारा रिकॉर्ड भेजने के आदेश देने और मण्डल प्रशासन द्वारा लगातार पत्राचार करने के बाद भी रिकॉर्ड मण्डल नहीं पहुंच रहा हैं। नतीजन दादा द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रकरणों को उनके पोते लड़ने को मजबूर हैं। गंभीर बात यह हैं कि अपूर्ण रिकॉर्ड के बावजूद ऐसे प्रकरणों को कॉजलिस्ट में शामिल करते हुए फिर से बैंच तक पहुंचा दिया जाता हैं। पिछली बैंच की तरह इस बार नई बैंच भी अपूर्ण रिकॉर्ड के अभाव में संबंधित अधीनस्थ न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को रिकॉर्ड भेजने के आदेश कर देती हैं, लेकिन मण्डल के कार्मिक इसकी भी पालना नहीं करवा पाते और पेडेंसी का ग्राफ लगातार बढ़ता ही रहता हैं। राजस्व मण्डल में दो दशक पूर्व यानी वर्ष 2005 पाली जिले में एक काश्तकार ने राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 212 के तहत सहायक कलक्टर न्यायालय/उपखण्ड न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। (212 उपखण्ड न्यायालय में भी एसीएम कोर्ट की शक्तियों की हैसियत से सुने जाते हैं।) इसके खिलाफ राजस्व अपील प्राधिकारी (आरएए) में धारा 225 में अपील कर दी। अपील के बाद धारा 230 में पक्षकार ने राजस्व मण्डल में निगरानी याचिका प्रस्तुत कर दी, लेकिन मण्डल में इस निगरानी याचिका पर अब तक अंतिम बहस केवल इसलिए नहीं हो सकी चूंकि बीस साल बाद भी एसडीओ कोर्ट/एसीएम कोर्ट व आरएए कोर्ट से मण्डल तक रिकॉर्ड पहुंचा ही नहीं। जबकि इस प्रकरण में मण्डल की बैंच ने एक से अधिक बार अधीनस्थ अदालत को पूर्ण रिकॉर्ड भेजने के आदेश दे चुकी है। आदेश की पालना के लिए मण्डल प्रशासन संबंधित अधीनस्थ न्यायालय को पत्राचार भी कर चुकी, लेकिन बीस साल बाद भी हालात जस के तस ही बने हुए हैं। प्रभावित संबंधित काश्तकार हो रहा हैं।
अधिकारी और कार्मिक केवल कोर्ट पर निर्भर
इसमें गंभीर बात यह हैं कि मण्डल की न्याय शाखा के अधिकारी और कार्मिक भी ऐसे प्रकरणों को गंभीरता से लेने के बजाए केवल बैंच के आदेश पर ही निर्भर बने हुए हैं। जब-जब बैंच आदेश करती हैं, तभी केवल संबंधित पीठासीन अधिकारियों को पत्राचार किया जाता हैं। इस मामले में चौंकाने वाला तथ्य यह हैं कि इस बीस साल की अवधि में अब तक मात्र पांच बार ही न्याय शाखा और मण्डल प्रशासन द्वारा संबंधित पीठासीन अधिकारी को न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए पूर्ण रिकॉर्ड भेजने के लिए लिखा गया हैं। जबकि मण्डल की बैंच के आदेश की पालना नहीं करने पर संबंधित पीठासीन अधिकारी पर न्यायालय की अवहेलना की कार्रवाई का भी प्रावधान हैं।
रजिस्ट्रार कोर्ट में फिर लग जाते ऐसे केस
मण्डल प्रशासन ऐसे प्रकरणों के निस्तारण के लिए हरसंभव प्रयास के दावा करता हैं, लेकिन ऐसे प्रकरणों की एन्ट्री रजिस्ट्रार कोर्ट के माध्यम से फिर से हो जाती हैं, चूंकि कोर्ट के रीडर ऐसे प्रकरणों का अध्ययन ही नहीं करते कि जब संबंधित मामले में रिकॉर्ड ही अपूर्ण हैं तो फिर इसकी सुनवाई कैसे हो सकेगी।
तत्कालीन मण्डल अध्यक्ष ने लिया था सख्त एक्शन
मण्डल में करीब पांच वर्ष पूर्व तत्कालीन मण्डल अध्यक्ष ने ऐसे ही कुछ प्रकरणों में संबंधित पीठासीन अधिकारियों द्वारा अपूर्ण रिकॉर्ड को पूर्ण नहीं करने करने पर सख्त एक्शन लेते हुए प्रदेशभर के कई राजस्व अधिकारियों पर नियमानुसार कार्रवाई की गई थी।
तो समाप्त हो सकते हैं दस हजार प्रकरण
विशेषज्ञ अधिवक्ताओं और मण्डल के जानकार अधिकारियों का मानना हैं कि यदि मण्डल ऐसे प्रकरणों पर गंभीरता से कार्य करें तो मण्डल की मौजूदा पेडेंसी में से करीब 10 हजार मुकदमें समाप्त हो सकते हैं।
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