मरीजों को 80 फीसदी महिलाएं देती है किडनी

रोगियों की किडनी ट्रांसप्लांट हो रही है

मरीजों को 80 फीसदी महिलाएं देती है किडनी

देश में हर साल 1.20 लाख लोगों की किडनी खराब हो जाती है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए प्रदेश में कई अस्पताल है, लेकिन डोनेट करने वालों की कमी है।

जयपुर। देश में हर साल 1.20 लाख लोगों की किडनी खराब हो जाती है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए प्रदेश में कई अस्पताल है, लेकिन डोनेट करने वालों की कमी है। स्थिति यह है कि केवल 10 फीसदी किडनी खराब होने के बाद रोगियों की किडनी ट्रांसप्लांट हो रही है। इसका कारण कानूनी पेंच है। किडनी के अवैध बेचान को रोकने के लिए कानून आवश्यक है, लेकिन लोगों को बचाने के लिए कैडेबर ट्रांसप्लांट का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है। एसएमएस अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. धनंजय अग्रवाल ने बताया कि परिजनों के अलावा कानून में मरीज से भावनात्मक रूप से जुड़े या फिर मित्र-रिश्तेदार भी किडनी देने की बाध्यता को समाप्त किया है। इससे कुछ राहत है, लेकिन मृत्युपरांत अंगदान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। मरीजों को किडनी 80 फीसदी उनकी मां, बहन या बेटी ही देती है, जबकि किडनी लेने वालों में 90 फीसदी पुरुष हैं। 10 फीसदी रोगी महिलाएं ऐसी है। इन्हें परिजन किडनी देते हैं।

बेटी अनमोल है मां चंदा की इस जिद के आगे मौत भी हारी
कीर्ति नगर की 60 वर्षीय चंदा बंसाली की जिद 40 वर्षीय बेटी सीमा बरडिया को बचाने की थी। सीमा की किडनी खराब हो गई थी। चंदा बुजुर्ग थी। अंगदान रिस्की था, लेकिन जिद थी खुद की जान से ज्यादा बेटी सीमा को बचाने की। दो साल बीत गए पर किडनी कहीं से डोनेट नहीं हो पाई। परिवार में किसी की किडनी मैच नहीं हुई। मां अड़ी थी, लेकिन जब उसकी जांच हुई तो वे अंगदान में फेल बताई गई। बाद में चंड़ीगढ़ में जांच हुई, डॉक्टरों ने यस कह दिया। आखिरकार बेटी को बचाने की जंग को मां जीत गई। चंदा और सीमा अब स्वस्थ्य हैं।

पत्नी से जिदंगी मिली दोनों थे बुजुर्ग, अब स्वस्थ हैं
श्याम नगर के 67 वर्षीय निर्मल कुमार जैन पांच साल पहले बीमार हुए। डॉक्टरों ने किडनी खराब बता दी। जैन ने बताया कि पहले उन्हें लगा कि अब जीवन खत्म हो गया है, लेकिन पत्नी मंजू जैन मौत के सामने खड़ी थी। बुजुर्ग वह भी थी, लेकिन जज्बा मुझे बचाने का था। डोनर नहीं मिला, उसने अपनी किड़नी मुझे दे दी। तब लगा महिला घर ही नहीं जिदंगी भी बचाती है। मेरा जीवन उसी का कर्जदार है। आज दोनों स्वस्थ हैं, लेकिन यह सोच जरूरी है कि महिला को हम उसके त्याग-समर्पण के अनुसार तवज्जो दें। अभी महिलाओं की यह तस्वीर बनना अधूरी है।

डोनर बन डॉक्टर पति ने दम तोड़ती पत्नी को बचाया
विनिता शर्मा की किडनी 2007 में जब खराब हुई, तो वे 38 साल की थी। सात साल इलाज लिया, लेकिन 2014 में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। मौत सामने थी। पेशे से डॉक्टर पति डॉ. चन्द्रप्रकाश शर्मा ने क्षणिक भी नहीं सोचा। वर्ल्ड किडनी डे आता था, तो अस्पतालों में देखती थी कि सौ में से एक ही पति डोनर बन अपनी पति को बचाते हैं। इसलिए अभी समाज को महिलाओं के प्रति सोच बदलने की आवश्यकता है। मेरे पति ने उलट उदाहरण पेश किया। सभी पुरुषों की सोच ऐसी हो, तो महिलाओं की उड़ान आसमां से भी ऊपर हो।





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