980 करोड़ रुपए प्राइवेट अस्पतालों का भुगतान बाकी : आरजीएचएस में 15 जुलाई से कैशलेस इलाज बंद करेंगे
पेंशनर्स-कर्मचारियों और उनके परिजन सहित 60 लाख का होता है इलाज
अपने भुगतान को वे 2021 से पहले की सरकार की व्यवस्था अनुसार रिइम्बर्समेंट के तहत इलाज के बिल पेश कर विभाग, वित्त विभाग या फिर पेंशन विभाग से लें।
जयपुर। प्रदेशभर के प्राइवेट अस्पतालों ने 7 माह से राजस्थान गर्वमेंट हैल्थ स्कीम (आजीएचएस) में सरकारी कर्मचारियों-पेंशनर्स के कैशलेस इलाज की एवज में 980 करोड़ रुपए बकाया का सरकार द्वारा भुगतान नहीं किए जाने के विरोध में लामबंद हो गए हैं। भुगतान नहीं होने पर उन्होंने 15 जुलाई से अस्पतालों में कैशलैस इलाज की व्यवस्था बंद करने का फैसला किया है। यह पैसा 701 अस्पतालों का बाकी है। अस्पतालों ने अपना बकाया भुगतान लेने और कैशलेस स्कीम में इलाज नहीं करने के लिए प्राइवेट अस्पतालों ने राजस्थान एलायंस ऑफ हॉस्पिटल एसोसिएशन का गठन किया है।
हालांकि प्राइवेट अस्पतालों ने फैसला किया है कि वे सरकारी कर्मचारियों-पेंशनर्स का इलाज तो जारी रखेंगे, लेकिन उन्हें कैशलेस सुविधा नहीं देंगे। वे अस्पताल आए इलाज कराए। सीजीएचएस स्कीम के तहत केन्द्रीय कर्मचारियों-पेंशनर्स की इलाज की तय दरों से भुगतान कर दें। अपने भुगतान को वे 2021 से पहले की सरकार की व्यवस्था अनुसार रिइम्बर्समेंट के तहत इलाज के बिल पेश कर विभाग, वित्त विभाग या फिर पेंशन विभाग से लें।
राज्य में 12 लाख से अधिक कार्मिक
प्रदेशभर में इस स्कीम के तहत करीब 12 लाख से अधिक कर्मचारियों -पेंशनर्स हैं। चूंकि उनके परिजनों को भी यह सुविधा मिलती है, ऐसे में करीब 60 लाख लोगों का प्रदेश में स्कीम के तहत कैशलेस इलाज होता है। प्राइवेट अस्पतालों की मांग है कि भुगतान के साथ ही येाजना में सुधार व सुचारू संचालन के लिए सरकार कदम उठाए और मामले में सरकार उनकी एलायंस में गठित कमेटी से बातचीत करें। जल्द वित्त विभाग, स्टेट हैल्थ इंश्योरेंस एजेंसी इन्हें वार्ता को बुला सकती है।
अस्पतालों में चस्पा किए ब्रोशर-पोस्टर
प्राइवेट अस्पतालों ने अपने अस्पतालों के ओपीडी, लॉबी, रिसेप्शन और वार्डों में 15 जुलाई से आरजीएचएस स्कीम में पेंशनर्स-कर्मचारी और उनके परिजनों का इलाज 15 जुलाई से कैशलेस नहीं करने के ब्रोशर और पोस्टर भी लगाए हैं। प्रदेश में हर माह करीब 100 करोड़ रुपए का इलाज स्कीम के तहत सरकारी कर्मियों-पेंशनर्स-परिजनों का कैशलेस होता है।
विरोध में आने की असली वजह आखिर क्या?
स्कीम में 60 लाख लोगों के इलाज में वर्ष 2024-25 में 4430.62 करोड़ रुपए खर्च किए गए। जबकि यह राशि वर्ष 2021-22 में केवल 686.48 करोड़ रुपए थी। चार साल में बजट 3744.14 करोड़ बढ़ गया। इसमें केवल दवाओं का ही बजट 2566.64 करोड़ हो गया। जबकि सरकारी अस्पतालों में जहां करोड़ों लोग हर साल इलाज कराते हैं। केवल 1100 करोड़ की दवा आती है। आखिर खर्च राशि में एकदम इतनी ज्यादा बढ़ोतरी कैसे हो गई। इसे लेकर बीते दिनों वित्त विभाग ने सख्ती शुरू की थी। बड़ी संख्या में दवा विक्रेताओं, अस्पतालों में इलाज-जांच, दवाइयां खर्च में भारी फर्जीवाड़ा मिला था। योजना में भुगतान भी रोका गया। इसके बाद स्कीम को सुधार के लिए राजस्थान स्टेट हैल्थ एश्योरेंस एजेंसी को सौंप दिया गया। अब इसमें कई संशोधन-प्रावधान किए जा रहे हैं। अस्पताल-एजेंसी में टकराहट बढ़ी है। ऐसे में अस्पताल कैशलेस के विरोध में आए हैं। पुरानी रिइम्बर्समेंट स्कीम में ही इलाज के पक्षधर हो रहे हैं।

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