गैरजिम्मेदारी और अव्यवस्था पर कटाक्ष करता नाटक जामुन का पेड़
पेड़ के नीचे दबा यह शख्स शायर है
यह नाटक दर्शकों को गहरे विचार करने पर मजबूर कर देता है।
जयपुर। जवाहर कला केंद्र जयपुर की ओर से जयपुर नाट्य समारोह के अंतर्गत नाटक जामुन का पेड़ का मंचन हुआ। कृष्ण चंदर द्वारा लिखित यह नाटक गुरमिंदर सिंह पुरी रोमी के निर्देशन में हुआ, जिसका नाट्य रूपांतरण नीरज गोस्वामी ने किया है। यह कहानी प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के चलते होने वाले संघर्षों की है जिसके बोझ तले एक निर्दोष व्यक्ति ने अपनी जान गंवा दी। मंच पर कहानी की शुरुआत सचिवालय के लॉन में गिरे जामुन के पेड़ के ईर्द गिर्द खड़ी भीड़ के साथ होती है जिसका दुख वहां खड़े बहुत से सरकारी कर्मचारी मना रहे हैं। वह याद करते हैं कि इसके जामुन कितने मीठे हैं और यह पेड़ कितना छायादार। तभी एक व्यक्ति की नजर उस पेड़ के नीचे दबे शख्स पर पड़ती है। जिंदा हो? मर गया शायद? पूछने पर जवाब आता है कि मैं जिंदा हूं मुझे बाहर निकालो।
मालूम पड़ता है कि पेड़ के नीचे दबा यह शख्स शायर है। दरख्त को काटकर शायर को बचाया जा सकता है लेकिन यह फैंसला सरकारी अनुमति का मोहताज है। ऐसे में यह बात एक महकमे से दूसरे महकमे तक पहुंचती है जिसमें फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट सभी शामिल होते गए लेकिन कोई फैंसला नहीं हो पाता। नाटक के आखिर में दर्शाए दृश्य ने लोगों को अवाक कर दिया, सुनते हो? आज तुम्हारी फाइल मुकम्मल हो गई! सुपरिटेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी। नाटक की प्रस्तुति में हास्य और व्यंग्य के माध्यम से गंभीर सामाजिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया गया। सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता और प्रशासनिक लापरवाही पर कटाक्ष करते हुए, यह नाटक दर्शकों को गहरे विचार करने पर मजबूर कर देता है।
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