धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा : देश के अलग-अलग कोनों में उत्सव की अनूठी झलक, कहीं सिंदूर खेला तो कहीं सोना पत्ती की भेंट 

सामूहिकता और स्थानीय देव संस्कृति का प्रतीक

धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा : देश के अलग-अलग कोनों में उत्सव की अनूठी झलक, कहीं सिंदूर खेला तो कहीं सोना पत्ती की भेंट 

मैसूर पैलेस को हजारों बल्बों से सजाया जाता है और भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें हाथियों पर सजीव देवी की मूर्तियां बैठाई जाती हैं।

जयपुर डेस्क। भारत विविधताओं का देश है और यहां हर पर्व अपने अनोखे रंग और परंपरा के साथ मनाया जाता है। नवरात्र के बाद विजयादशमी या दशहरा का पर्व शक्ति, धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है। भले ही इसकी जड़ें एक ही हैं-रावण पर राम की विजय और महिषासुर पर दुर्गा का वध, लेकिन अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है।

उत्तर भारत: रावण दहन और रामलीला
उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में दशहरा का मुख्य आकर्षण रामलीला और रावण दहन होता है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार में बड़े-बड़े मैदानों में अस्थायी मंच सजाए जाते हैं जहां रामायण का नाट्य रूपांतरण होता है। विजयादशमी की शाम को विशालकाय पुतलों-रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण-का दहन किया जाता है।

गुजरात: नवरात्र से विजयादशमी तक
गुजरात में दशहरा का उत्सव पूरे नवरात्रि की उमंग से जुड़ा हुआ है। नौ रातों तक गरबा और डांडिया रास की धूम रहती है। दसवें दिन विजयादशमी पर लोग अपने शस्त्र और औजारों की पूजा करते हैं। इस दिन को नए कार्य की शुरूआत के लिए शुभ माना जाता है। ग्रामीण इलाकों में अब भी रामलीला और रावण दहन का आयोजन होता है।

महाराष्ट्र: सीमेगा उत्सव और देवी की विदाई
महाराष्ट्र में दशहरा को सीमेगा उत्सव कहा जाता है। यहां लोग अपनी सीमाओं से बाहर जाकर सोना (अक्षत या अपराजिता के पत्ते) एक-दूसरे को भेंट करते हैं और कहते हैं, सोना जैसा उज्ज्वल जीवन हो। यह परंपरा मराठा इतिहास से जुड़ी है, जब विजयादशमी को युद्ध के लिए शुभ दिन माना जाता था। पुणे और नासिक जैसे शहरों में दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन भी विजयादशमी पर ही होता है। महाराष्ट्र में, विजयदशमी को नए काम और पढ़ाई शुरू करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है।

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दक्षिण भारत: आयुध पूजा -सांस्कृतिक कार्यक्रम
कर्नाटक की राजधानी मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। मैसूर पैलेस को हजारों बल्बों से सजाया जाता है और भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें हाथियों पर सजीव देवी की मूर्तियां बैठाई जाती हैं। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में, बोम्मई कोलु या गोलू की परंपरा है, जहां घरों में गुड़ियों की सीढ़ीनुमा सजावट की जाती है। लोग अपने औजारों, किताबों और गाड़ियों की पूजा करते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में शमी पूजा की जाती है, जहां लोग शमी के पेड़ की पूजा करते हैं और एक-दूसरे को उसकी पत्तियां सोना के रूप में भेंट करते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक है।

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पूर्वोत्तर भारत: आदिवासी और स्थानीय रंग
असम, त्रिपुरा और नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में दशहरा स्थानीय परंपराओं के साथ घुल-मिल गया है। असम में दुर्गा पूजा का रंग अधिक गहरा होता है, जबकि त्रिपुरा और मणिपुर में पारंपरिक नृत्य और संगीत के साथ विजयादशमी मनाई जाती है।

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पश्चिम बंगाल: दुर्गा पूजा का विसर्जन
पश्चिम बंगाल में दशहरा का रूप सबसे भव्य दिखाई देता है। यहां पर दशहरा दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार दस दिनों तक चलता है और देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस पर विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को विजयदशमी कहते हैं। बंगाल में पांच दिनों तक चलने वाली यह पूजा भव्य पंडालों, खूबसूरत मूर्तियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से रमी होती हैं। विजयदशमी के दिन, देवी की मूर्तियों को एक जुलूस के साथ नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। इस दिन सिंदूर खेला का रिवाज है, जहां महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर देवी के आशीर्वाद की कामना करती हैं।

हिमाचल प्रदेश: कुल्लू दशहरा
हिमाचल प्रदेश का कुल्लू दशहरा अनोखा है क्योंकि यहां रावण दहन नहीं होता। विजयादशमी के दिन से यहां सात दिन का मेला शुरू होता है, जिसमें देवताओं की शोभायात्रा और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह पर्व सामूहिकता और स्थानीय देव संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। 

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