वर्ल्ड हियरिंग डे : सुनने और बोलने के बिना भी जिंदगी कामयाबियों का नूर

जब कला देती है आवाज

वर्ल्ड हियरिंग डे : सुनने और बोलने के बिना भी जिंदगी कामयाबियों का नूर

असली शक्ति आत्मविश्वास, संघर्ष और अपनी क्षमताओं को पहचानने में होती है।

जयपुर। ये कहानियां उन लोगों की प्रेरक यात्रा को दर्शाती है, जिन्होंने सुनने और बोलने की क्षमता के बिना भी अपने जीवन को सफल और प्रेरणादायक बनाया। ये न केवल अपने परिवार और समाज में योगदान दे रहे हैं, बल्कि अपने कार्यक्षेत्र में भी मिसाल कायम कर रहे हैं। इन युवाओं की कहानियां हमें यह सिखाती है कि असली बाधाएं शरीर में नहीं, बल्कि सोच में होती हैं। सुनने और बोलने की क्षमता का अभाव जीवन की गुणवत्ता को कम नहीं कर सकता। असली शक्ति आत्मविश्वास, संघर्ष और अपनी क्षमताओं को पहचानने में होती है। ये प्रेरक लोग अपने हौंसलों और मेहनत से यह संदेश दे रहे हैं कि ‘सन्नाटे के बीच भी सफलता की गूंज होती है।’

यश जांगिड़ :  जब 'शब्द' नहीं, 'कर्म' बोलते हैं
जयपुर के मुरलीपुरा निवासी 26 वर्षीय यश जांगिड़ के पिता दीपक शर्मा ने कभी भी यश के सुनने और बोलने की अक्षमता को प्रगति में बाधा नहीं बनने दिया। यश एक निजी कंपनी में कस्टमर सपोर्ट का काम करते हैं, जहां  वे ईमेल चेक करना, जवाब देना और कस्टमर्स से फीडबैक लेना जैसे कार्य कुशलता से करते हैं। वे अपने माता-पिता के लाडले हैं और जल्द ही अपनी शादी करने जा रहे हैं। घर के कामों में मां की मदद करना और लगातार नए कोर्स करना उनकी जिजीविषा को दर्शाता है।

अजय गर्ग : बारीकियों की दुनिया के महारथी
57 वर्षीय अजयकुमार गर्ग कलाकार है। बचपन में सामान्य थे, लेकिन एक चिकित्सीय रिएक्शन के कारण उनकी सुनने और बोलने क्षमता ने काम करना बंद कर दिया। हालांकि, उनकी कला ने उन्हें पहचान दिलाई। मिनिएचर आर्ट में उनकी निपुणता ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करना उनकी प्रतिभा का प्रमाण है। वे यह साबित करते हैं कि ध्वनि के बिना भी रंगों की दुनिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

दीपाली शर्मा : रंगों से शब्द बुनने वाली कलाकार
दीपाली शर्मा जन्म से ही सुन और बोल नहीं सकतीं, लेकिन उनकी कला बोलती है। विजुअल आर्ट में ग्रेजुएशन और एमवीए के बाद अब वे पीएचडी कर रही हैं। वे एक प्रतिभाशाली कलाकार हैं, जिन्हें इस साल ललित कला अकादमी द्वारा राज्य स्तरीय पुरस्कार और टाटा फाउंडेशन के सबल पुरसकार से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त हुआ। उनके पति सामान्य हैं, और उनका परिवार उनके व्यवहार से बहुत प्रसन्न है। दीपाली की कहानी यह दर्शाती है कि आत्मविश्वास और मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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छवि शर्मा : जब कला देती है आवाज
छवि शर्मा ने विजुअल आर्ट में गोल्ड मेडल हासिल किया और उनकी पेंटिंग अमेरिका की प्रतिष्ठित पेमब्रोक मैगजीन के कवर पेज पर प्रकाशित हुई। वे बचपन में हियरिंग एड की मदद से पढ़ाई करती थीं, लेकिन कोकलियर इम्प्लांट सर्जरी के बाद अपनी मेहनत से सुनने व बोलने की क्षमता को काफी हद तक हासिल किया। उनकी संवेदनशीलता और गहरी भावनात्मक समझ उनके कला कार्यों में झलकती है। उनके पिता कहते हैं कि छवि हर सुनी और अनसुनी बात को पूरी संवेदनशीलता से महसूस करती हैं। वे यह साबित करती हैं कि कला की भाषा सुनने या बोलने की मोहताज नहीं होती।

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