महाकुंभ कल्पवास, एक माह तक गंगा किनारे रेत में करते हैं आराधना

महाकुंभ में कल्पवास एक प्राचीन धार्मिक परम्परा है

महाकुंभ कल्पवास, एक माह तक गंगा किनारे रेत में करते हैं आराधना

महाकुंभ में कल्पवास एक प्राचीन धार्मिक परम्परा है, जो श्रद्धालुओं के लिए आत्मशुद्धि, ध्यान और तपस्या का मार्ग प्रस्तुत करता है।

जयपुर। महाकुंभ में एक ओर दुनिया भर से आए लोग हैं, वीआईपी मूवमेंट है, गंगा स्नान को आतुर श्रद्धालु हैं, दूसरी ओर रेत पर बने बहुत ही साधारण टेंट हैं और हैं वहां रहकर उपासना में जुटे कल्पवासी। दरअसल, ये न तो नागा साधु हैं, न ही किसी अखाड़े से जुड़े हैं, न ही इनका कोई नेता है और न ही कोई चमक-दमक है। ये देश के विभिन्न हिस्सों से आए कल्पवासी हैं, जो एक माह तक इन टेंटों में रहकर ईश्वर की आराधना कर रहे हैं। महाकुंभ में कल्पवास एक प्राचीन धार्मिक परम्परा है, जो श्रद्धालुओं के लिए आत्मशुद्धि, ध्यान और तपस्या का मार्ग प्रस्तुत करता है। कल्पवास आमतौर पर पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक करीब एक माह चलता है।

ऐसे गुजरता है जीवन
कल्पवासी श्रद्धालु संगम किनारे अपना शिविर लगाते हैं और बहुत ही साधारण जीवन गुजारते हुए रहते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन, एक समय सात्विक भोजन और तीन बार संगम में स्नान करना होता है। दिनभर प्रभु की भक्ति में लीन रहना होता है। श्रद्धालु यज्ञ, हवन और वेदों के पाठ के माध्यम से ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। 

क्यों करते है कल्पवास
आत्मशुद्धि,पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए कल्पवास किया जाता है। इसे जीवन में अनुशासन और आध्यात्मिक शांति लाने का माध्यम माना जाता है। इसके पीछे यह विश्वास है कि माघ मास में संगम स्नान और तपस्या से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और पुण्य अर्जित करता है। 

कल्पवासी पंचदेवों की करते हैं उपासना
आदि शंकराचार्य ने कुंभ की परिकल्पना करते समय विचार किया था कि कल्पवास के दौरान श्रद्धालु पंचभूतों की उपासना करेंगे। इसमें शिव आकाश तत्व, विष्णु जल तत्व, शक्ति अग्नि तत्व, सूर्य वायु तत्व और गणेश पृथ्वी तत्व के प्रतीक होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कल्पवासी कल्पवास के दौरान आकाश तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व और पृथ्वी तत्व के प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहता है। इससे आत्मा, मन, बुद्धि का संस्कार और परिष्कार होता है। 

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कल्पवास केवल प्रयागराज में ही
कुंभ का मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में भरता है, लेकिन कल्पवास सिर्फ प्रयागराज में होता है। यहां पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। कल्पवासी न तो नागा साधु हैं, न ही किसी अखाड़े से सम्बद्ध, न ही कोई नेता और न पास चमक-दमक, ये देश के विभिन्न हिस्सों से आए हैं

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कल्पवास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है बल्कि इससे आत्मा, मन और बुद्धि का संस्कार और परिष्कार होता है। आदि शंकराचार्य ने पंच महाभूतों के सान्निध्य में कल्पवास की कल्पना की थी,जो आज बहुत ही व्यापक स्तर पर हो रही है। यह भारतीय संस्कृति का जीवंत स्वरूप है, जो संयम,सेवा और साधना का संदेश देता है।  
-राजेश्वर सिंह, पूर्व अति. मुख्य सचिव एवं अध्येता भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति, जयपुर 

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हिन्दू धर्म में कल्पवास का 
बड़ा महत्व है, कल्पवास करने से काफी पुण्य मिलता है।

साधना का मार्ग है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग साधना के पथ पर चलकर ईश्वर की कृपा प्राप्त करते हैं।

पूरा एक माह कठोर जीवन जीते हुए साधना की जाती है।

साधु-संत ही नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में गृहस्थ भी कल्पवास करते हैं।
-स्वामी सम्पत कुमार अवधेशाचार्यजी महाराज 

ऐसा माना जाता है कि एक बार कल्पवास करने से इतना फल मिलता है, जितना कोई व्यक्ति सौ साल बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करता है। कम से कम कल्पवास एक दिन का भी हो सकता है, इस दौरान सफेद और पीले वस्त्र पहनने चाहिए। जमीन पर सोने के साथ ही साधु-संतों के प्रवचन सुनना चाहिए। कल्पवास करने से भगवान विष्णु की कृपा होती है।’ 
-डॉ. पुरूषोतम गौड़, प्रख्यात ज्योतिषी एवं हिन्दू धर्म अध्येता

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