रिसर्च में फिसड्डी एसएमएस मेडिकल कॉलेज
सालों पहले रिटायर प्रोफेसर के जिम्मे काम, प्राइवेट कॉलेजों से भी कम रिसर्च
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से मेडिकल शिक्षा में बेहतरीन सेवाओं, रिसर्च सहित अन्य मापदंडों के आधार पर हर साल देश के मेडिकल कॉलेज की नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क(एनआईआरएफ) रैंकिंग दी जाती है। सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज इस 2023 की रैंकिंग में 46 वें नंबर पर है।
जयपुर। जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में सालों पहले रिटायर हुए प्रोफेसर के भरोसे रिसर्च प्रोजेक्ट मंजूर करने का जिम्मा दे रखा है। ऐसे में उत्तर भारत के बड़े मेडिकल कॉलेजों में शुमार मेडिकल कॉलेज रिसर्च में फिसड्डी हो गया है। मेडिकल रिसर्च में देश के टॉप 10 तो छोड, शुरुआती तीन दर्जन मेडिकल कॉलेजों में भी इसका नाम शामिल नहीं है। यहीं नहीं देश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज भी एसएमएस से कई गुना ज्यादा रिसर्च प्रोजेक्ट लेकर काम कर रहे हैं। एसएमएस मेडिकल कॉलेज में रिसर्च प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देने के लिए रिटायर प्रोफेसर डॉ. शशि सिंघवी को एथिकल कमेटी का चेयरमैन बना रखा है। कमेटी में अन्य अहम पदों पर भी रिटायर मेडिकल प्रोफेसरों को लगा रखा है। जिनमें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के रूप में डॉ. आरके सुरेखा भी हैं। दोनों ही 8-9 साल पहले मेडिकल कॉलेज से रिटायर हो चुके हैं। हर 2-3 सालों में एथिकल कमेटी के 33 फीसदी सदस्य बदले जाते हैं, लेकिन कमेटी में इनकी मौजूदगी बरकरार है।
रिसर्च में देश के तीन दर्जन मेडिकल कॉलेजों में भी नाम शामिल नहीं
बेरुखी के चलते एन आई आर एफ में 46 वीं रैंक पर
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से मेडिकल शिक्षा में बेहतरीन सेवाओं, रिसर्च सहित अन्य मापदंडों के आधार पर हर साल देश के मेडिकल कॉलेज की नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क(एनआईआरएफ) रैंकिंग दी जाती है। सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज इस 2023 की रैंकिंग में 46 वें नंबर पर है। जबकि उनसे पहले सीमित संसाधनों के बावजूद आधा दर्जन से ज्यादा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज रैंकिंग में इससे पहले हैं। 5 साल में कभी भी टॉप-25 में भी शामिल नहीं हुआ। 2018 में तो कॉलेज रैंकिंग की दौड़ में ही शामिल नहीं था।
तीन साल में जितना काम, प्राइवेट में उससे कई गुना ज्यादा एक साल में हुआ
सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज में पिछले तीन साल 2019-20 में 12, 2020-21 में 19 और 2021-22 में 45 स्पोंसर्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स लिए। यानि कुल 76 रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर काम हुआ। जबकि रैंकिंग में हमसे आगे चल रहे कर्नाटक के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (9 वीं रैंक) ने तीन साल में 678, पुणे के डॉ.डीवाई पाटिल विद्यापीठ(15 वीं रैंक) ने 99, बंगलुरू के सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज(19 वीं रैंक) ने 700 , दिल्ली के इंस्टीट्यूट आॅफ लीवर एंड बाइलेरी साइंस (23 वीं रैंक) ने 125, मैसूर के जेएसएस मेडिकल कॉलेज (37 वीं रैंक) ने 166 और बंगलुरू के एमएस रमाह मेडिकल कॉलेज (43 वीं रैंक) ने 122 प्रोजेक्ट्स हाथ में लेकर उन्हें पूरा किया। एसएमएस मेडिकल कॉलेज ने 5 साल में केवल 137 रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर ही काम किया।
सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज में पिछले तीन साल 2019-20 में 12, 2020-21 में 19 और 2021-22 में 45 स्पोंसर्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स लिए। यानि कुल 76 रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर काम हुआ। जबकि रैंकिंग में हमसे आगे चल रहे कर्नाटक के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (9 वीं रैंक) ने तीन साल में 678, पुणे के डॉ.डीवाई पाटिल विद्यापीठ(15 वीं रैंक) ने 99, बंगलुरू के सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज(19 वीं रैंक) ने 700 , दिल्ली के इंस्टीट्यूट आॅफ लीवर एंड बाइलेरी साइंस (23 वीं रैंक) ने 125, मैसूर के जेएसएस मेडिकल कॉलेज (37 वीं रैंक) ने 166 और बंगलुरू के एमएस रमाह मेडिकल कॉलेज (43 वीं रैंक) ने 122 प्रोजेक्ट्स हाथ में लेकर उन्हें पूरा किया। एसएमएस मेडिकल कॉलेज ने 5 साल में केवल 137 रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर ही काम किया।
लाइलाज मरीजों के ठीक होने की उम्मीद भी टूटी है, करोड़ों का फंड भी नहीं आ सका
केन्द्र के डीसीजीआई यानी ड्रग कंट्रोलर जनरल आॅफ इंडिया के जरिये नई दवाओं पर रिसर्च को बड़ी शोध कंपनियां प्रोजेक्ट्स को रिसर्च के लिए अप्रूवल कराती है। फिर प्रोजेक्ट्स पर काम के लिए मेडिकल कॉलेजों को इन्हें सामान्य दवाइयों से ठीक ना होने वाले मरीजों पर उपयोग के लिए पेशकश करती है। एथिकल कमेटी इसकी मंजूरी के लिए एथोरिटी होती है। मंजूरी पर दवाइयां लाइलाज मरीजों के इलाज में काम आती है। दवा कितनी कारगर रही, उसकी रिपोर्ट तैयार होती है। कंपनी एवज में करोड़ों की इन महंगी दवाइयों के साथ बड़ी राशि कॉलेज को फंडिंग भी करती है। प्रोजेक्ट्स नहीं लेने से लाइलाज मरीजों के ठीक होने की उम्मीद और करोड़ों का फंड भी कॉलेज को नहीं आ सका है।
रिसर्च प्रोजेक्ट्स ज्यादा आएं, इसका प्रयास करेंगे। जल्द एथिकल कमेटी को भी पुर्नगठित करेंगे। एक सेंट्रल कमेटी भी गठित करने की योजना है ताकि रिसर्च वर्क की मोनिटरिंग भी हो सके। रिसर्च प्रोजेक्ट्स से आने वाले पैसे को कॉलेज के वैलफेयर में भी खर्च करेंगे।
- डॉ.दीपक माहेश्वरी, प्रिंसिपल, एसएमएस मेडिकल कॉलेज।

Comment List