कवि सबका होता है, जैसे देश व संविधान: जावेद

हमें गर्व होता है कि हमने भी कोईगीत, कविता, शेर, शायरी एक कार्यक्रम में सुनाया था 

कवि सबका होता है, जैसे देश व संविधान: जावेद

हिन्दी और उर्दू के कवि कुंवर जावेद का कहना है कि सोशल मीडिया का फायदा यह है कि आपका काम मिनट से पहले पूरी दुनिया में पहुंच जाता है।

जयपुर। हिन्दी और उर्दू के कवि कुंवर जावेद का कहना है कि सोशल मीडिया का फायदा यह है कि आपका काम मिनट से पहले पूरी दुनिया में पहुंच जाता है। नुकसान यह है कि जिनके पास काम पहुंचता है, वे एक झटके में पुराना कह देते हैं। लेकिन हमें गर्व होता है कि हमने भी कोईगीत, कविता, शेर, शायरी एक कार्यक्रम में सुनाया था। सोशल मीडिया के आने से कवि सम्मेलन तो कम नहीं हुए, उनकी क्वांटिटी में इजाफा ही हुआ है, लेकिन क्वालिटी को लेकर उनका ग्राफ  नीचे आया है। नकल का दौर है, लोग रील बना बना के डाल रहे हैं। अरे भाई गोविंदा, शाहरुख, प्रभुदेवा का डांस हम देख चुके हैं। मालिक ने सबको अलग अलग बनाकर इस धरती पर भेजा है, सबके भीतर एक सॉफ्टवेयर है, बस उसको खोजने और पकड़ने की देर है। लोगों को रील की बजाय रियल के पीछे भागना चाहिए। जावेद ने कहा कि कवि  सबका होता है, जैसे देश सबका है, संविधान सबका होता है, वैसे ही क्रिएटर भी सबका होता है। जावेद ने कहा कि कभी कभी आप वो काम कर रहे होते हैं, जो आपका मन नहीं होता, लेकिन आपको करना पड़ता है। चाहे फिर कोई भी वजह रही हो, लेकिन जब आप उसमें दो चार महीने गुजार लेते हैं तो फिर वह आपके नेचर का हिस्सा हो जाता है और फिर आप एक क्रिएटर भी हो जाते हो। 

 कुंवर ने कहा कि फाइन आर्ट्स में प्लानिंग नहीं चलती। फाइन आर्ट्स वालों के अंदर ही सपने और ख्वाब होते हैं और वह खुद व खुद ही बाहर आते हैं। कभी कभी गांव का भोजन भी फाइव स्टार होटल को मात दे देता है।

कवियों को थोड़ा गंभीर होने की जरूरत :  पूराने और नए कवि सम्मेलन व कवि के सवाल के जवाब में जावेद ने कहा कि मुझे 40 साल हो गए मैंने तीन दौर देख लिए, मैंने मुझसे जो सीनियर थे उनको भी देखा, सुना, उसके बाद की जो पीढ़ी आई उसका भी लुत्फ  लिया और अब जो दौर या पीढ़ी है उनको भी सुन रहा हूं। आज के दौर के कवियों या पीढ़ी को बस यही कहना चाहता हूं कि अब आप थोड़ा सा गंभीर हो जाएं, देश के प्रति, श्रोताओं के प्रति और जो आयोजनकर्ता है उनके प्रति। सभी को इंसाफ  मिलना चाहिए और इंसाफ  का एक ही रास्ता है खुद लिखो, खुद पढ़ो, सब कुछ खुद का होना चाहिए। जयपुर को लेकर उन्होंने कहा कि यह शहर तो खुद एक यादों का भंडार है, एक दो यादों से तो काम चलेगा नहीं। इस शहर से तो पूरी दुनिया प्रभावित है। मेरा और मेरे बच्चों का बहुत ज्यादा लगाव रहा है इस शहर से, हम लोग खूब घूमने आया करते थे। 

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