मॉडल कोई भी हो जनता से वसूलेंगे टोल : हाईब्रिड एन्युटी मॉडल पर 9 ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे का खाका तैयार, डीपीआर का काम सौंपा
हरे-भरे खेतों से होकर गुजरेंगे
ये एक्सप्रेस-वे उन जगहों पर बनाए जाएंगे, जहां पहले कोई सड़क कनेक्टिीविटी नहीं है, हरे-भरे खेतों से होकर गुजरेंगे।
जयपुर। राजस्थान में 2750 किलोमीटर से अधिक लंबाई के 9 ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे बनाए जाएंगे। एक्सप्रेस-वे का निर्माण किस मॉडल पर होगा, अभी तय होना बाकी हैं, बजट में इनकी अनुमानित लागत 60 हजार करोड़ आंकी गई है और एक्सप्रेस-वे का निर्माण हाईब्रिड एन्युटी मॉडल और बीओटी पर करने की घोषणा की गई है। हालांकि मॉडल कोई भी हो, लेकिन जनता से टोल वसूला जाएगा। वर्तमान में इनकी 30 करोड़ की लागत से डीपीआर तैयार करवाई जा रही है। ये एक्सप्रेस-वे उन जगहों पर बनाए जाएंगे, जहां पहले कोई सड़क कनेक्टिीविटी नहीं है, हरे-भरे खेतों से होकर गुजरेंगे।
दो एक्सप्रेस-वे पर एनएचएआई की मंजूरी
केंद्र सरकार के विजन 2047 के तहत दो ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे पर एनएचएआई ने सहमति प्रदान कर दी हैं। पहला जयपुर से जोधपुर और दूसरा बीकानेर-कोटपूतली एक्सप्रेस-वे शामिल है। हालांकि राज्य की ओर से अब केंद्र को पत्र लिखकर सभी नौ एक्सप्रेस-वे का काम हाथ में लेने का आग्रह किया जा रहा हैं।
क्या होता है ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इन्हें हरे मैदानों या खेतों के बीच से निकाला जाता है, जहां भूमि अधिग्रहण आसान होता है, साथ ही जमीन समतल होती है और शहर से थोड़ा दूर होने के कारण भीड़-भाड़ भी कम होती है, इसलिए इन एक्सप्रेस-वे को बनाना और फिर यहां उच्च गति पर वाहन का परिचालन करना आसान होता हैं। एक्सप्रेस-वे को शहरों के बीच से कम ही निकाला जाता है। इसके कारण इनमें घुमाव और मोड बहुत कम होते है।
इसके क्या फायदे
हाईब्रिड एन्युटी मॉडल के तहत सरकार डेवलपर को परियोजना में होने वाले खर्च का 40 फीसदी भुगतान कार्य प्रारंभ होने से पहले ही कर देती है, जबकि शेष 60 फीसदी राशि डेवलपर को खुद की लगानी होती है, यह अब तक अपनाए जा रहे बीओटी मॉडल से बेहतर है, क्योंकि इसमें डेवलपर को काम शुरू करने के लिए वित्तीय संस्थानों से वित्तीय मंजूरी का इंतजार नहीं करना पड़ता। एडवांस राशि खर्च होने तक डेवलपर शेष 60 प्रतिशत राशि का जुगाड़ कर लेता हैं।
राजस्थान ने क्यों अपनाया एचएएम
वित्तीय संसाधनों की कमी के चलते राजस्थान सरकार ने हाईब्रिड एन्युटी मॉडल पर फोकस किया है। 2750 किलोमीटर लंबे नौ ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे के लिए राज्य सरकार के पास 60 हजार करोड़ की वित्तीय प्रबंधन नहीं होने के कारण इस मॉडल पर फोकस किया है ताकि कम समय में तुरंत रिजल्ट मिल सके।
हाईब्रिड एन्युटी मॉडल क्या है...?
हाईब्रिड एन्युटी मॉडल में सरकार और निजी कंपनियों का संयुक्त निवेश होता है। यह मॉडल राज्य और केन्द्र सरकार के बीच साझेदारी की तरह काम करता है, जिसमें निजी कंपनियां निर्माण कार्य करती हैं और उन्हें सरकार से तय की गई एन्युटी राशि मिलती है। यहां सरकार निर्माण का कुछ हिस्सा और आॅपरेशन का कुछ हिस्सा तय करती है और निजी कंपनियों को अनिश्चित समय तक अपनी जिम्मेदारी निभानी होती है।
बीओटी मॉडल क्या था?
बीओटी मॉडल में निजी कंपनियां सड़कों का निर्माण करती थी और कुछ समय तक उन्हें चलाने का अधिकार प्राप्त होता था। इस दौरान वे टोल से पैसा कमाती थी। अंत में सड़क को सरकार को ट्रांसफर कर देती थीं। यह मॉडल कुछ मामलों में समस्याओं का सामना करता था, जैसे कि देर से निर्माण, परियोजना की लागत में वृद्धि और वित्तीय बोझ का भार हो जाता था।
15 जिलों में नेटवर्क होगा तैयार
राज्य सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के बजट में इन एक्सप्रेस हाइवे की घोषणा की। इन रूट में हालांकि बाद में बदलाव भी हो सकता है, लेकिन अभी तक के निर्धारित रूट के अनुसार ये एक्सप्रेस-वे 15 जिलों से होकर गुजरेंगे, जिनमें आवाजाही में लगने वाला घंटों का समय आधे से भी कम हो जाएगा।
हाईब्रिड एन्युटी मॉडल और बीओटी के बीच अंतर
निवेश का तरीका बीओटी में निजी कंपनियां पूरी लागत उठाती थीं, जबकि हाईब्रिड एन्युटी मॉडल में सरकार और निजी कंपनी दोनों का संयुक्त निवेश होता है। वित्तीय जिम्मेदारी बीओटी में प्राइवेट कंपनियों को पूरे टोल के जरिए पैसा कमाना होता था, जबकि हाईब्रिड एन्युटी मॉडल में सरकार एक निश्चित समय तक नियमित ऐनुइटी भुगतान करती है।
समय और रिस्क: बीओटी में निजी कंपनियों को सभी रिस्क उठाने होते थे, जबकि हाईब्रिड ऐनुइटी मॉडल में रिस्क साझा होता है, जिससे प्राइवेट कंपनियों पर कम दबाव पड़ता है।
नया मॉडल अपनाने के पीछे मुख्य कारण वित्तीय दबाव कम होना: हाईब्रिड ऐनुइटी मॉडल में सरकार का हिस्सा बढ़ने से निजी कंपनियों के लिए जोखिम कम हो जाता है।
समयबद्ध विकास: यह मॉडल परियोजनाओं के समयबद्ध और प्रभावी विकास को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
सरकारी सहयोग: सरकार की ओर से नियमित ऐनुइटी भुगतान करने से परियोजना पूरी होने के बाद भी सड़क के संचालन के दौरान सार्वजनिक लाभ सुनिश्चित होता है।
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