जर्जर स्कूलों से खतरे में बचपन, हर पल दरबीजी जैसी घटना का डर

संकट में शिक्षा: सर्दी में ठिठुरते और गर्मी में तपते विद्यार्थी

जर्जर स्कूलों से खतरे में बचपन, हर पल दरबीजी जैसी घटना का डर

कोटा जिले के सरकारी स्कूलों के हाल बद से बदतर।

कोटा। अंधेर नगरी, चौपट राजा..., कहावत की यह पंक्तियां इन दिनों कोटा जिले के राजकीय विद्यालयों व शिक्षाधिकारियों पर सटीक बैठती है। इन विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलना तो दूर कल्पना तक नहीं की जा सकती। सरकार के क्वालिटी एजुकेशन के दावों की ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में धज्जियां उड़ रही है। इटावा ब्लॉक के राजकीय प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय बिना कमरों के खुले में चल रहे हैं। यहां बच्चे कभी सर्दी में शीत लहर से ठिठुरते तो कभी गर्मी से झुलसते। सरकारी मशीनरी की लचरता से विद्यार्थियों ने स्कूल आना ही बंद कर दिया। हालात यह हैं, ग्रामीण इलाकों में दो-दो कमरों में प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूल चलते हैं। यह कमरें भी जर्जर हो चुके हैं, जिसकी वजह से स्कूल प्रशासन अनहोनी के डर से खुले में कक्षाएं लगाने को मजबूर है। ऐसे में मौसम बिगड़ते ही पढ़ाई  चौपट हो जाती है। कक्षा-कक्षों की छतों से प्लास्टर गायब हो चुके और सरिए बाहर निकल गए। दीवारों पर बड़ी-बड़ी गहरी दरारों से बचपन खतरे में पड़ा है। पेश है खबर के प्रमुख अंश....

हर पल दरबीजी जैसी घटना का डर
कोटा जिले के ग्रामीण इलाके अमरपुरा, झाड़ोल, बंबूलिया रणमल, कोटड़ा दीप सिंह सहित अन्यक्षेत्रों के प्रायमरी व अपर प्रायमरी स्कूलों में हर पल दरबीजी गांव के स्कूल में हुए हादसे जैसी घटनाओं का डर लगा रहता है। सुल्तानपुर के दरबीजी स्कूल में हाल ही में क्षतिग्रस्त टायलेट की दीवार ढहने से 7वर्षीय छात्रा की मौत हो गई थी।  इस घटना के बाद भी शिक्षा विभाग नहीं चेता। इन इलाकों के स्कूलों के कक्षा-कक्ष पूरी तरह से जर्जर हो रहे हैं। दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें, छतों के सरिए बाहर निकल रहे हैं। तेज हवा चलने या बारिश होने के दौरान हादसे का डर बना रहता है। 

अमरपुरा स्कूल : दो कमरे, दोनों ही जर्जर
इटावा ब्लॉक के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय अमरपुरा स्कूल खुले में चलता है। स्कूल के पास दो कमरे हैं, लेकिन दोनों ही जर्जर है। इनमें से एक कमरा आंगनबाड़ी का है और दूसरा स्कूल का, जिसे जर्जर होने के कारण बंद रखा जाता है। ऐसे में कक्षा 1 से 8वीं तक की कक्षाएं खुले आसमान के नीचे धूप में तो कभी पेड़ की छांव में चलती है। धूप आने पर विद्यार्थियों को फिर से दरी पट्टी उठाकर अपनी जगह बदलनी पड़ती है। 

मैंदान तो कहीं पेड़ के नीचे लगती कक्षाएं
अमरपुरा स्कूल के हैडमास्टर कालूलाल सुमन ने बताया कि स्कूल में कक्षा 1 से 8वीं तक कुल 78 बच्चों का नामांकन है। क्षतिग्रस्त कमरों में हादसे के डर से सभी कक्षाएं मैदान में खुले में चलानी पड़ती है। स्कूल के पास एक ही कमरा है, जिसकी छत से सरिए बाहर निकल रहे हैं। जिसमें पोषाहार बनता है और खाद्य सामग्री रखी जाती है। ऐसे में कक्षा 3 व 4 बरामदे में और 1,2,5,6,7 और 8वीं कक्षा पेड़ों के नीचे लगानी पड़ती है। बारिश के दिनों में हालात खराब हो जाती है। छोटे बच्चों की छुट्टी करनी पड़ती है, ताकि उनकी जगह बरामदे में कक्षा 6 से 8वीं तक के बच्चों को बिठा सके। उच्चाधिकारियों को मामले से अवगत करा चुके हैं और पीओ कार्यालय में भी लिखित शिकायत कर चुके हैं। 

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ढह गया रसोई घर, क्षतिग्रस्त कमरे में बना पोषाहार
अमरपुरा स्कूल का रसोई घर पिछले साल हुई तेज बारिश में ढह गया। जिससे पोषाहार के समान रखने व बच्चों के लिए भोजन बनाने में परेशानी हो गई। ऐसे में कक्षा-कक्ष के नाम पर  क्षतिग्रस्त कमरे में ही पोषाहार बनाना पड़ता है। 

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झाड़ोल स्कूल : एक कमरे में तीन कक्षाएं
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय झड़ोल की प्रधानाध्यापक रेणु मीणा ने बताया कि स्कूल में 120 बच्चों का नामांकन है और कमरे तीन हैं। जिसमें से एक असुरक्षित घोषित होने से सालों से बंद है। दूसरा क्षतिग्रस्त होने से कक्षाएं संचालित नहीं की जाती।  शेष बचे तीसरे कमरे में ही कक्षाएं लगती है, जिसमें 6,7 व 8वीं कक्षा एक साथ लगानी पड़ती है। वहीं, अन्य कक्षाएं खुले मैदान में चलती है। 

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मौसम बिगड़ते ही 120 बच्चों में मचती भगदड़
इस स्कूल में कक्षा 1 से 5वीं तक के विद्यार्थियों की कक्षाएं खुले में लगानी पड़ती है। इसमें कक्षा 1 व 2 तो चबुतरे पर तो 3, 4 व 5वीं कक्षा पेड़ों के नीचे लगानी पड़ती है। ऐसे में मौसम बदलते ही विद्यार्थियों में हड़कम्प मच जाता है और बारिश होते ही दरिपट्टियां  उठाकर बरामदे की ओर दौड़ लगानी पड़ती है। ऐसे में बच्चों के फिसलने से हादसे का डर बना रहता है। 

सर्दियों में ठिठुरते हैं बच्चे
कक्षा कक्ष नहीं होने से खुले में बैठने पर बच्चे व शिक्षक  सर्दियों में ठिठुरते रहते हैं। कभी बरामदमें में एक साथ पांच कक्षाएं लगानी पड़ती है लेकिन यहां भी सर्द हवाओं से ठिठुरन बनी रहती है। ऐसे स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलना तो दूर शिक्षा का माहौल भी नहीं बन पाता। सरकार को तुरंत बजट जारी कर जर्जर स्कूलों की मरम्मत करवानी चाहिए। 

कोटड़ादीप सिंह स्कूल : दीवारों में दरारें, छत के उखड़े प्लास्टर
राजकीय प्राथमिक विद्यालय कोटड़ा दीप सिंह स्कूल में कक्षा 1 से 5वीं तक कुल 80 बच्चों का नामांकन है। जबकि, कक्षा-कक्ष तीन ही है।  कक्षाओं की दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें हैं और छतों का प्लाटर गिरने से सरिए बाहर निकल आए। कमरे क्षतिग्रस्त हैं, निर्माण की सख्त आवश्यकता है। हालांकि, मरम्मत के लिए स्कूल प्रशासन की ओर से सरपंच व एसडीएमसी की बैठक में प्रस्ताव लिए जा चुके हैं, जिसे सीबीईओ को भेजे गए हैं। 

सरकार एक ओर तो क्वालिटी एजुकेशन देने की बात कर रही है और दूसरी तरफ मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर रही है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कैसे सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी।  बिना कमरों के स्कूल चल रहे हैं। खुले में पेड़ों के नीचे कक्षाएं लग रही हैं, बरसात में पढ़ाई चौपट हो जाती है। इलाके के सरकारी स्कूलों के बूरे हालात हैं, दरबीजी स्कूल जैसी घटना न हो, इसके लिए शिक्षा विभाग को छात्रहित में कमद उठाने चाहिए।
- शिव प्रकाश नागर, अध्यक्ष बेरोजगार महासंघ कोटा
 
क्षेत्र के ग्रामीण सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर है। टूटी दीवारें, टपकती छतें, शौचालयों का अभाव और बुनियादी सुविधाओं की कमी से बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा खतरे में है। शिक्षा विभाग व शिक्षा मंत्री को स्कूलों की दशा सुधारनी चाहिए।  इन स्कूलों को सुरक्षित, आधुनिक और बच्चों के लिए अनुकूल बनाए जाना बेहद जरूरी है। 
- हरिओम मीणा, सदस्य बेरोजगार महासंघ 

समसा के इंजीनियर व ब्लॉक शिक्षाधिकारी द्वारा स्कूलों  का निरीक्षण किया जाता है, उनकी रिपोर्ट के आधार पर डिपार्टमेंट बजट जारी करता है। इटावा ब्लॉक के स्कूलों की टीम भेजकर मौका दिखवाकर उचित कार्यवाही करेंगे। बच्चों की सुरक्षा व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना हमारी प्राथमिकता है।
- सतीश कुमार गुप्ता, विशेषाधिकारी शिक्षा मंत्री  

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