गंदे नालों में देशी-विदेशी पक्षियों का बसेरा, शहर के अधिकतर नाले गंदे, नियमित नहीं हो रही सफाई
बैक्टेरिया से घट रही परिंदों की उम्र
पक्षियों को प्राकृतिक आवासों में पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण वे अवांछित स्थानों जैसे नालों में भोजन की तलाश में जा रहे हैं।
कोटा। शहरी क्षेत्र में वैटलेंड लगातार घट रहे हैं। कहीं अतिक्रमण तो कहीं विकास की भेंट चढ़ गए। नतीजन, देश-विदेश से आने वाले परिंदों के सामने भोजन व रहवास का संकट गहरा गया। ऐसे में गंदे नाले उनकी शरणस्थली
बन गई। जहां भोजन के साथ अनगिनत बैक्टीरिया, वायरस, संक्रमण, रसायन भी मिल रहे हंै, जो न केवल पक्षियों के जीवन चक्र को बीमारियों की जद में ला रहा बल्कि उनकी उम्र भी घटा रहा है। जिम्मेदारों की अनदेखी के कारण माइग्रेट बर्ड्स की संख्या में भी कमी देखी जा रही है। शहर के कई इलाकों के नाले नियमित सफाई के अभाव में गंदगी से अटे पड़े हैं। जिनमें साजीदेहड़ा, एलबीएस मार्ग स्थित नाला, केशवपुरा, डीसीएम रोड, देवली अरब सहित कई नाले शामिल है। जहां गंदगी के बीच भोजन ढृूंढ रहे देसी-विदेशी पक्षियों को होने वाले नुकसान, कारण, सुझाव पर पक्षी विशेषज्ञों से जाना। पेश है रिपोर्ट के प्रमुख अंश...
नालों में भोजन से परिंदों को संभावित नुकसान
बीमारियां व संक्रमण : नालों का पानी अक्सर गंदा और प्रदूषित होता है। इसमें बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी होते हैं, जो पक्षियों को संक्रमण देकर बीमार कर सकते हैं।
रसायन व अपशिष्ट पदार्थ : सीवेज या नालों में औद्योगिक व घरेलू कचरे से निकलने वाले रसायन और भारी धातुएं (लेड, पारा, आर्सेनिक आदि) पक्षियों के शरीर में जमा होकर उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डालते हैं। जिससे अंडे देने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
प्लास्टिक और कचरे का खतरा : नालों में कई ऐसे अपशिष्ट पदार्थ, रासायनिक व अपचनीय सामग्री भी प्रवाहित होती हैं, जिन्हें पक्षी भोजन समझकर निगल लेते हैं, जो पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाती हैं और कई बार उनकी मृत्यु तक हो सकती है।
धागे व तार में उलझने से घायल: नालों में हर तरह का कचरा आता है। जिनमें तार, बैलून से बंधे धागे भी होते हैं। कई बार फिडिंग के दौरान उनके शरीर में जाकर फंस जाते हैं और पंजों व पंखों में उलझने से घायल हो जाते हैं। वहीं, गंदे पानी में पनपने वाले कीड़े व परजीवी पक्षियों की चोंच, आंखों व पैरों पर भी विपरीत असर डालते हैं।
जीवन दर घटने की आशंका : यदि, प्रवासी पक्षी लगातार गंदे नालों या प्रदूषित जलाशयों पर निर्भर होने लगे तो उनकी जीवित रहने की दर घट सकती है और उनकी संख्या में गिरावट आ सकती है।
आलनिया तालाब वैटलेंड, पेटा काशत बने मुसीबत
पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं, आलनिया डेम का तालाब पक्षियों के लिए बेहतरीन वेटलैंड है,यहां हर साल हजारों देसी-विदेशी पक्षी आते हैं। लेकिन, यहां पेटा काश्त परिंदों के लिए मुसीबत बनी है। तालाब में जब पानी कम होता है तो यहां लोग अतिक्रमण कर तालाब की जमीन पर पेटा काश्त करते हैं। जिसका सीधा असर प्रवासी पक्षियों पर पड़ता है। यहां आने वाली माइगे्रटरी बर्ड्स जमीन पर अंडे देते हैं क्योंकि डेम की भूमि में नमी होती है। वहीं, आसपास झाड़ियों में घौंसला बनाकर रहते हैं, जिसे पेटाकाश्त करने वाले लोग नष्ट कर देते हैं।
शहर में वैटलेंड हो विकसित
पक्षियों को प्राकृतिक आवासों में पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है, जिसके कारण वे अवांछित स्थानों जैसे नालों में भोजन की तलाश में जा रहे हैं। वन विभाग को शहरी क्षेत्र में वैटलेंड डवलप करवाए जाने चाहिए। साथ ही रहवास सुरक्षित हो, यह सुनिश्चित की जानी चाहिए। नगर निगम को भी नालों की नियमित सफाई करवानी चाहिए।
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर
अतिक्रमण पर कार्रवाई हो तो रुके पक्षियों का पलायन आलनिया तालाब बेहतर वैटलैंड है, यहां की परिस्थितियां पक्षियों के अनुकूल है। भोजन पानी की उपलब्धता भी पर्याप्त है लेकिन तालाब पर पेटा काश्तकारों के अतिक्रमण बड़ी समस्या है। प्रशासन को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि, परिंदों को गंदे जलाश्यों पर आश्रित न रहना पड़े और उनका पलायन रुके।
- रवि नागर, बायोलॉजिस्ट
पक्षी नालों में फिडिंग के आदी हो गए हैं। क्योंकि, यहां कीड़े-मकोड़े भोजन के रूप में मिल जाते हैं। ऐसी परिस्थितियां क्यों बनी, इसके कारण विभाग को तलाशने चाहिए। प्रदूषित जलस्रोतों में कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो उनके जीवन चक्र को प्रभावित करता है। ऐसे में वेटलैंड्स (आर्द्रभूमियों) का संरक्षण बेहद जरूरी है।
- डॉ. अंशु शर्मा, पक्षी विशेषज्ञ
इनका कहना है
गंदगी में रहने से पक्षियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ता है। बर्ड्स वहां रहती है तो वह स्थान एक तरह से उनका रहवास है। कीट, पतंगे, कीड़े-मकोड़े खाकर वायरस, संक्रमण फैलने से रोकती है,जो इंसानों को बीमारियों से बचाव के लिए अहम रोल अदा रही है। लेकिन, मनुष्य पक्षियों के प्रति अपना फर्ज नहीं निभा रहा है। नालों की नियमित सफाई होनी चाहिए ताकि, अपशिष्ट व रसायनिक पद्धार्थ को बहने से रोका जा सके। रही बात वैटलेंड की तो हमारे क्षेत्र में डवलप कर रहे हैं। जिनमें अभेड़ा तालाब, जोहरा बाई का तालाब, उम्मेदगंज पक्षी विहार, बायोलॉजिकल पार्क सहित भैंसरोडगढ़ व शेरगढ़ सेंचुरी के कई क्षेत्र शामिल हैं।
- अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग कोटा
नगर निगम द्वारा नालों की समय-समय पर सफाई करवाई जाती है। यदि, कहीं गंदगी की शिकायत मिलती है तो तुरंत सफाई करवा दी जाएगी।
- अशोक त्यागी, आयुक्त नगर निगम कोटा दक्षिण

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