बदलती जीवनशैली और तनाव से युवा व बच्चों के दिल दे रहे धोखा

डायबिटीज व स्मोकिंग बन रहे बड़े कारण, बच्चों की स्क्रीनिंग जरूरी

बदलती जीवनशैली और तनाव से युवा व बच्चों के दिल दे रहे धोखा

प्रत्येक स्कूल में कार्डियक किट हो, सीपीआर प्रशिक्षण भी देना चाहिए ।

कोटा। भारत में हार्ट के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। युवाओं से लेकर बच्चों तक दिल की बीमारी से परेशान हैं। बदलते जीवनशैली के चलते, युवा और बच्चों में दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है। मांसपेशियों के सिकुड़ने के कारण ब्लड सर्कुलेट नहीं हो पाता है जिसके कारण असमय मृत्यु हो जाती है।  दैनिक दिनचर्या के बदलाव के कारण हार्ट अटैक के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। यह विचार दैनिक नवज्योति कार्यालय में आयोजित मासिक परिचर्चा में  सामने आए। केस ऑफ साइलेंट अटैक आर इन्क्रीजिंग एमंग चिल्ड्रन एन्ड यूथ, व्हाट इज द रीजन विषय पर दैनिक नवज्योति कार्यालय में आयोजित टॉक शो में शहर के जाने-माने विशेषज्ञ कार्डियोलोजिस्ट, फिजीशियन, डायटीशियन, साइकेटिंस्ट, आयुर्वेद , योग टीचर, जिम ट्रेनर, पैरेंट्स व स्ट्रेस मैनेजमेंट से जुड़े विशेषज्ञों ने भाग लिया।  विशेषज्ञों ने कोरोनाकाल के बाद जीवनशैली में आए बदलाव के कारण लोगों में तनाव, अनियमित खान-पान तथा फिजिकल एक्टिविटी कम होने को मुख्य कारण माना है। प्रस्तुत हैं परिचर्चा के मुख्य अंश:-

स्कूलों में बच्चों की स्क्रीनिंग हो
वर्तमान में लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव आया है, जिसके चलते युवाओं में तनाव बढ़ने से डायबिटीज, बीपी सहित कई बीमारियों ने घेर लिया है। हार्टअटैक का प्रमुख कारण हार्ट सही तरीके से पंम्पिग नहीं कर पाने से मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है, जिसके कारण शरीर में ब्लड सर्कुलर सही तरीके से नहीं हो पाता है। साइलेंट अटैक का प्रमुख कारण भी बिगड़ी दिनचर्या तथा खानपान है। अगर अटैक आने वाले व्यक्ति को सही समय पर सीपीआर देकर जीवन बचाया जा सकता है। सीपीआर की जानकारी सभी को जानकारी होनी चाहिए। स्कूली बच्चों में आ रहे अटैक भी स्ट्रैस ही है। शहर की कई स्कूलों में जांच के नाम पर खानापूर्ति की जाती है तथा पैरेंट्स भी इस ओर ध्यान नहीं दे पाते है।
-डॉ. संजय शायर, सीनियर मेडिकल ऑफिसर 

शरीर के प्रति जागरूकता व पौष्टिक आहार जरूरी
सुबह जल्दी उठने व रात को जल्दी सोने की आदत को बनाए रखने के साथ ही स्वास्थ्य के प्रति सभी  में जागरूकता होना आवश्यक है। दिनचर्या व खान-पान सही नहीं होने से तनाव  व रोग बढ़ते हैं। विशेष रूप से हार्ट संबंधी बीमारी का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में शरीर के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं इस बारे में जानकारी होनी चाहिए।  पौष्टिक आहार लेना और नियमित योग व प्राणायम ऐसे माध्यम हैं जिनसे इस बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। 
-डॉ. नितिन सोलंकी क्लीनिकल न्यूट्रियनिस्ट 

डायबिटीज व स्मोकिंग बन रहे बड़े कारण
आज के दौर में डायबिटीज व स्मोकिंग हार्ट अरेस्ट के बड़े कारक सामने आ रहे हैं। कार्डिक अरेस्ट और हार्ट अटैक दोनों अलग अलग स्थितियां हैं।  जीवन की भागदौड़ के चलते हमारी दिनचर्या में काफी बदलाव आया है। नियमित समय में डाइट नहीं लेना, फास्टफूड पर ज्यादा निर्भर रहना भी हार्ट की समस्या को बढावा देता है। ज्यादातर हार्ट अटैक के मामलों में कॉलेस्ट्रोल बढ़ने से खून की आपूर्ति रुक जाती है जिससे असमय मृत्य हो जाती है। समय पर खान-पान लेना नियमित  योग व फिजिकल एक्टिविटी बनाए रखे। जीवन में तनाव (स्ट्रेस) कम रखें। स्कूलों में बच्चों की नियमित ब्लड, शुगर की जांच होनी चाहिए। वहीं प्रत्येक व्यक्ति को सीपीआर की जानकारी होनी चाहिए। हार्टअटैक के दौरान सीपीआर देने से व्यक्ति को नया जीवन मिल सकता है।
-डॉ. पवन सिंघल, कॉर्डियोलोजिस्ट कोटा हार्ट 

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स्कूलों में कार्डियो किट व डिस्प्रिन होना जरूरी
वर्तमान में बच्चों में साइलेंट हार्ट अटैक बढ़ रहे है। इसका प्रमुख कारण बच्चों का हर छोटी बात का स्ट्रेस लेना है। बच्चों द्वारा माता-पिता को अपनी समस्या बताने पर उनको अनदेखा कर देता है। वहीं स्कूल या घर से बाहर भी अपने मन की बात किसी से शेयर नहीं करने पाने की वजह से भी डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। नियमित खान-पान या फिजिकल एक्टिविटी नहीं होने से भी दैनिक कार्य प्रभावित हो जाते हैं। स्कूलों में बच्चों की नियमित जांच होनी चाहिए। वहीं प्रत्येक स्कूल में कार्डियेक किट होना चाहिए। उसमें डिस्प्रीन टेबलेट भी होनी चाहिए, आपातकाल स्थिति में संभल सकते हैं। सीपीआर देने के लिए ट्रेनर होना चाहिए ताकि आपातकाल में हार्ट अटैक के दौरान गोल्डन ऑवर में सीपी देकर जान बचाई जा सके। सीपीआर देने संबंधी प्रशिक्षण प्रत्येक स्कूलों के कर्मचारी व बच्चों को मिलना चाहिए। 
-डॉ. सुरभी गोयल, फिजियोलॉजिस्ट व स्ट्रेस मैनेजमेन्ट विशेषज्ञ

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डाइट प्लानिंग से  लाएं दिनचर्या में बदलाव
जीवन में सभी लोगों की बॉडी लेंग्वेज अलग-अलग होती है। नियमित आहार-विहार नहीं लेने से भी दिनचर्या बिगड़ जाती है। बाजार में मिल रहे फास्टफूड भी कॉलेस्ट्रोल को बढ़ाती है। कई लोग पर्याप्त नींद नहीं ले पाते है तथा अपने कामकाज को लेकर तनावग्रस्त रहते हैं। देर रात खाना खाने या खाना खाने के बाद तुरंत सो जाना भी बीमारियों को दावत देना है। शुरूआत में अगर शरीर में थकान, चक्कर आने जैसी समस्या आने तुरंत डॉ. को दिखाना चाहिए। लोगों को अपनी डाइट प्लानिंग को नियमित दिनचर्या में शामिल करके तथा नियमित व्यायाम और योग से भी अपने आपको स्वस्थ रख सकते हैं।
-सलोनी सेठी, डायटीशियन,एन्ड न्यूट्रियनिस्ट

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स्वस्थ जीवन के लिए योग जरूरी
वर्तमान में लोगों की फिजिकल एक्टिविटी न होने से कई बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। अनियमित दिनचर्या के चलते डायबिटीज, दिल की बीमारी व बीपी, शुगर सहित कई बिमारियां जकड़ लेती है। स्वस्थ शरीर के लिए योग करना भी जरूरी है। रोजाना अनुलोम-व्योलोम में श्वांस अंदर लेने तथा बाहर छोड़ने से भी शरीर स्वस्थ रहता है। योग गुरु रामदेव बाबा के सिखाए योग को भी घर पर ही करके स्वस्थ रह सकते है। समयभाव के कारण हमने अपनी जिंदगी को मशीन की तरह बना लिया है। जिसके कारण हम अपने परिवार के प्रति भी ध्यान नहीं दे पाते है। स्वस्थ शरीर के लिए पर्याप्त नींद जरूरी है।
-रचना शर्मा, व्याख्याता शारीरिक शिक्षा

स्कूलों में ही सीपीआर प्रशिक्षण
बच्चों में जिस तरह से छोटी उम्र में ही पढ़ाई के साथ ही माता पिता की अपेक्षाओं को पूरा करने का तनाव बढ़ता जा रहा है। उस कारण से हार्ट अटैक कम उम्र में भी होने लगा है। इससे बचने के लिए बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार काम करने दिया जाए। यदि स्कूल में कभी इस घटना का कोई मामला हो तो उसे कंट्रोल करने के लिए  स्कूलों में सीपीआर प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही बच्चों के खान-पान पर शिक्षकों द्वारा ध्यान दिया जाए। कम उम्र में ही सावधानी रखी गई तो आने वाले खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 
- मोइनुद्दीन पैरेन्ट्स 

प्रकृूति से जुड़ना जरूरी
पहले लोग सुबह जल्दी उठकर बाग बगीचों में घूमने जाते थे। पेड़ पौधों के बीच रहने से प्राकृति से जुड़े रहते थे। शुद्ध हवा व ऑक्सीजन मिलने के साथ  ही खान-पान में शुद्धता थी। लेकिन वर्तमान में अधिकतर लोग प्रकृति से दूर होने के साथ ही खान-पान भी शुद्ध नहीं होने से साइलेंट अटैक का खतरा अधिक बढ़ा है। जिम में शरीर को स्वस्थ बनाने के तरीके बताए जाते हैं। उसके लिए उसी तरह की डाइट का सेवन किया जाता है। साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने व बीमारियों से दूर रहने का एक ही उपाय है प्रकृति से जुड़ना या उसके नजदीक रहना। 
- अशोक औदिच्य सचिव बॉडी बिल्डिंग संघ 

फिजिकल एक्टिविटी बढ़ानी होगी
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए फिजिकल एक्टिविटी जितनी अधिक होगी उतना बेहतर रहता है। साथ ही लोगों को अपनी लाइफ स्टाइल को भी बदलना होगा। लाइफ स्टाइल सही नहीं होने से ही अटैक ही नहीं सभी तरह की बीमारियां जन्म लेती है।  शरीर के प्रति जागरूक लोग जिम में जाते है। लेकिन वहां जिस तरह की गतिविधि करवाई जाती है उसका नियमित अभ्यास व उसी अनुसार डाइट लेना आवश्यक है। जिम का मतलब शरीर के साथ ज्यादती करना नहीं है। स्वस्थ रहने के लिए  जागरूकता भी जरूरी है। 
- पूजा यादव, जिम ट्रेनर

बदलते लाइफ स्टाइल का प्रभाव
हार्ट अटैक का एक प्रमुख कारण लाइफ स्टाइल का प्रभाव भी है। इसके चलते युवा में स्मॉकिंग, शराब का सेवन तथा फिजिकल एक्टिविटी का भी अभाव है। जिम में आने वाले सभी को पहले दिनचर्या को सही करने, डाइट संबंधी नियमों का पालन करना तथा शारीरिक व्यायाम तथा जीवन में स्ट्रेस नहीं लेने की सलाह देता हूं।  जो युवा अपने आहार-विहार का पालन नहीं करते तथा फास्टफुड पर निर्भर रहते है, आने वाले दिनों में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने से  हार्ट पर जोर पड़ता है वहीं इम्युनिटी पॉवर कम होने से भी अचानक थकान, चक्कर आना भी हार्ट अटैक् को इंगित करता है।
- नरेन्द्र यादव, जिम ट्रेनर

स्कूलों में हो योगा क्लास
जिस तरह से वर्तमान में छोटी उम्र के बच्चों में  साइलेंट हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। उन्हें देखते हुए आवश्यक है कि बच्चों से  उनकी क्षमता के अनुसार शारीरिक गतिविधि करवाई जाए। स्कूलों में नियमित योगा क्लास लगाई जाए। जिससे बच्चा स्कूल में शिक्षकों की बात को जितना जल्दी अमल में लाता है उतना माता पिता की बात को भी नहीं लाता। बच्चों के खान-पान व उनकी दिनचर्या को भी सही रखकर इस बीमारी से बचाया जा सकता है।
-अंजली जैन सीए, अर्हं सोशल वेलफेयर फाउंडेशन 

स्ट्रेस से बचने को मेडिटेशन जरूरी
नियमित आहार-विहार तथा फिजिकल एक्टिविटी से अपने आपको स्वस्थ रखें। बदलती लाइफ स्टाइल में मेडिटेशन से भी अपने आपको फिट रख सकते हैं। वहीं व्यस्तता के कारण हम अपने स्वास्थ्य के प्रति अवेयर भी नहीं हो पाते है। अपने परिवार में भी सदस्यों से संवाद नहीं करने से अकेलेपन का शिकार हो जाते है।  स्वस्थ जीवन के लिए डाइट प्लानिंग भी जरूरी है। कोई भी शारीरिक बदलाव महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाए तथा उनके द्वारा दिए गए निर्देशों की पालना करें। स्ट्रेस से बचने के लिए मेडिटेशन का सहारा लें तथा कुछ समय अपने परिवार के साथ बिताएं। 
- डॉ.मिथिलश खींची, एसोसिएट प्रोफेसर, मनोचिकित्सक मेडिकल कॉलेज कोटा

बीमारी की जड़ पर पहले हो वार
हार्ट अटैक की बात कर रहे हैं लेकिन आयुर्वेद तो बीमारी ही नहीं हो इस पर काम करता है। हेल्दी और संसकारी संतति हो ऐसे प्रयास करने चाहिए। हमें हमारी पुरानी जड़ों पर लौटना होगा। आज परिवार में दूरिया बढ़ जाती है।  छोटे बच्चे भी मोबाइल देखते रहते है।  माता-पिता के काम पर जाने के बाद बच्चे अकेले रह जाते है जिससे नियमित खान-पान नहीं ले पाते है। फिजिकल एक्टिविटी भी नहीं हो पाती है। शहर के अधिकांश स्कूलों में बच्चों के ब्लड व नियमित डाइट की जांच नहीं हो पाती है। उनकी जीवनशैली में भी बदलाव आ जाता है। बच्चों को दादा-दादी का प्यार नहीं मिलने से संस्कारों में भी कमी आ जाती है। बच्चे व युवा अंदर ही अंदर तनावग्रस्त हो जाते है या नशे या बुरी आदतों के शिकार हो जाते है।
-अंजना शर्मा, वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्साधिकारी 

 स्कूल का रोल महत्वपूर्ण
स्वथ शरीर के लिए फीजिकल एक्टिवीटी बहुत जरूरी है। चालीस वर्ष की उम्र के बाद नियमित जांच को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। वहीं बच्चों के जीवन में स्कूल का रोल काफी महत्वपूर्ण है। स्कूलों को भी अपने दैनिक कार्यक्रम में बच्चों के खानपान व बीपी, शुगर या फिर महिने में एक बार रूटिन चैकअप जरूर होना चाहिए। स्कूलों में पढ़ाने वाले क्लास टीचर के पास बच्चे की जानकारी होती है। अगर बच्चों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है तो माता-पिता को बता सकते है। या फिर प्यार से कारण जानकर बच्चों का स्ट्रेस दूर किया जा सकता है। माता-पिता में कामकाजी थकान के चलते बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पाते है।
-महेन्द्र चौधरी, प्रिसींपल महात्मा गांधी रा.वि. श्रीनाथपुरम 

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