अधिक उत्पादन की आस ने बिगाड़ी मिट्टी की सेहत

खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक हो रहा उपयोग

अधिक उत्पादन की आस ने बिगाड़ी मिट्टी की सेहत

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मिट्टी के क्षारीय होने से पैदावार घट रही है। यूरिया व डीएपी जैसे उर्वरक के अधिकाधिक इस्तेमाल से प्राकृतिक तत्व मिट्टी से लोप हो रहे हैं। जिससे मिट्टी के कणों में पानी संग्रह की क्षमता कम हो रही है। परिणामस्वरूप अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

कोटा। जिले की मिट्टी की सेहत बेहद कमजोर है। अधिक उत्पादन की आस में किसान खेतों में अंधाधुंध रसायनों का उपयोग कर रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों के बेइंतहा इस्तेमाल से खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है। सीमित भूमि में अधिक उत्पादन के लालच के चलते किसानों ने रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग शुरू कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि वातावरण प्रदूषित हो चला है। कोटा जिले की मिट्टी भी लगातार बीमार होती जा रही है। लगभग पूरे जिले की मिट्टी में नाइट्रोजन और आॅर्गेनिक कार्बन जैसे जरूरी तत्वों की कमी है। वहीं जिंक और आयरन जैसे तत्व भी नदारद होते जा रहे हैं। 

7783 सैंपलों की हुई जांच
कोटा स्थित मृदा परीक्षण प्रयोगशाला के आंकड़े यही कहानी बयां कर रहे हैं। यहां इस सीजन में करीब 7783 सैंपल की जांच की गई है। इनमें से 100 प्रतिशत यानी सभी सैंपल में आर्गेनिक कार्बन की कमी पाई गई है। वहीं 98 फीसदी में नाइट्रोजन की कमी मिली है। 10 फीसदी में आयरन और 6 फीसदी में जिंक जैसे जरूरी तत्वों की कमी है। ऐसे में परंपरागत जैविक खेती ही मिट्टी की सेहत को सुधार सकती है। किसानों को रसायनों का जरूरत के मुताबिक या बिल्कुल कम इस्तेमाल करना होगा।

खेती पर पड़ रहा दुष्प्रभाव
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मिट्टी के क्षारीय होने से पैदावार घट रही है। यूरिया व डीएपी जैसे उर्वरक के अधिकाधिक इस्तेमाल से प्राकृतिक तत्व मिट्टी से लोप हो रहे हैं। जिससे मिट्टी के कणों में पानी संग्रह की क्षमता कम हो रही है। परिणामस्वरूप अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। यूरिया का बीजों के साथ सीधे संपर्क होने से अंकुरण दर में भी कमी आती है। रासायनिक उर्वरकों के असमान इस्तेमाल से दलहन फसलों की ग्रंथी निर्माण व वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यूरिया के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैस, नाइट्रस आॅक्साइड तथा वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचा रहा है। कीटनाशकों ने किसानों के मित्र जीव कहे जाने वाले कीटों को भी गायब कर दिया। ये जीव जैविक क्रियाओं से मिट्टी को उर्वरा बनाए रखने में मददगार होते हैं।

मानव और जीव-जंतुओं पर भी खतरा
कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि रसायनों के बढ़ते प्रयोग से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से न केवल मानव जीवन प्रभावित हुआ है, बल्कि पशु-पक्षी और जलीय जीव-जंतु भी संकट के दौर से गुजर रहे हैं। जो फल-सब्जियां सेहत का खजाना मानी जाती हैं, आज उनमें जहर घुल गया है। केमिकल के बढ़ते प्रयोग से लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। एक अध्ययन के मुताबिक कीटनाशक के अत्यधिक प्रयोग से कैंसर का खतरा बढ़ गया है। यहां तक कि हमारे हार्मोन, प्रोटीन सेल व डीएनए को क्षति पहुंच रही है। जिससे असमय थकान, संक्रमण, बीमारियों का खतरा, उम्र से पहले बुढ़ापे जैसी समस्याएं भी बढ़ गई हैं।

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एक दर्जन पैरामीटर पर होती है जांच
मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में एक दर्जन पैरामीटर पर मिट्टी का परीक्षण किया जाता है। परीक्षण में पीएच, ईसी, जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक, बोरान, आयरन, मैगनीज तथा कॉपर को मानकों पर कसा जाता है। मृदा में कुल 17 प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनमें 9 मुख्य पोषक तत्व तथा 8 सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों में से यदि एक की भी मृदा में कमी होती है तो फसल उत्पादन में विपरित प्रभाव पड़ता है। 

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रासायनिक उर्वरकों में अगर कमी नहीं लाई गई तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। रासायनिक उर्वरकों को कम करने के लिए हर फसल से पूर्व मिट्टी की जांच अहम है। इसके लिए किसान मृदा की जांच करवाकर ही फसलों में उर्वरक दें। परम्परागत खेती में शुरूआत में उत्पादन किसानों को कम लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे मृदा की सेहत सुधरने पर उत्पादन अच्छा होने लग जाएगा और इंसानों सहित जीव-जंतुओं को भी नुकसान नहीं होगा।
-खेमराज शर्मा, संयुक्त निदेशक कृषि विभाग

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