एडवांस रकम देकर बुक करा रहे मवेशियों का भोजन, जिले में गेहूं की बुवाई कम होने से भूसे की किल्लत

गत्ता व रद्दी बनाने में हो रहा उपयोग

एडवांस रकम देकर बुक करा रहे मवेशियों का भोजन, जिले में गेहूं की बुवाई कम होने से भूसे की किल्लत

पूर्व में मौसम में बदलाव के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था।

कोटा। ब्याईजी, फूफाजी, मामाजी, मौसाजी आपने भूसा बेच दिया क्या?, भूसा मत बेचना, आप हमें दे देना। कुछ तरह का वार्तालाप ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और पशुपालकों के बीच चल रहा है। जिले में भूसे के संकट ने पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में पशुपालक अभी से ही अपने मवेशियों के लिए भूसे का इंतजाम करने में जुट गए हैं। पशुपालक अपने रिश्तेदारों के यहां से भूसे का जुगाड़ करने में लगे हैं। इस साल जिले में गेहूं का उत्पादन कम हुआ। इसका प्रभाव भूसे पर भी पडा है। इसके चलते आगामी दिनों में मवेशियों के लिए भूसे की किल्लत हो सकती है।  

उत्पादन कम, डिमांड अधिक
समय के अनुसार हर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है। ऐसे में इन दिनों किसानों व पशुपालकों के लिए सबसे बड़ी समस्या पशुओं के लिए चारा संग्रह करने की आ रही है। गेहूं की बुवाई कम होने के साथ ही सुखला यानी भूसे की मांग अधिक बढ़ गई है। पशुपालक एडवांस में मुंह मांगी कीमत देकर इसे बुक कर रहे है। क्षेत्र में इस वर्ष गेहूं की कम बुवाई एवं पूरे सीजन में मौसम की मार के चलते फसल की ग्रोथ आशा के अनुरूप नहीं हुई है। इससे चलते कम भूसा निकल रहा है। भूसे की कमी की आंशका के चलते क्षेत्र के कई किसान व पशुपालक गेहूं कटाई व निकलाई से पूर्व ही भूसे की कीमत तय कर उसे एडवांस में बुक कर रहे हैं।

इसलिए आया भूसे का संकट
पूर्व में मौसम में बदलाव के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था। फसलों के जमीन में गिरने से पैदावार के साथ भूसे का संकट भी खड़ा हो गया है।  मौसम की खराबी और बूंदाबांदी व हवा चलने से खासकर गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा था। इससे गेहूं का उत्पादन भी कम हुआ है। इसका प्रभाव भूसे पर भी पड़ा है। जिन किसानों के पास पिछले साल का भूसा बचा है उसी से वे मवेशियों का आधा अधूरा पेट भर रहे हैं। गेहूं का उत्पादन कम होने से पर्याप्त मात्रा में भूसा मिलने की उम्मीद नहीं है। इससे पशुपालकों के सामने मवेशियों को खुला छोड़ने की मजबूरी खड़ी हो सकती है। 

गत्ता व रद्दी बनाने में हो रहा उपयोग
कृषि विशेषज्ञ गोविन्द गुप्ता के अनुसार पिछले कुछ सालों से भूसे का  कॉमर्शियल उपयोग होने लगा है इस कारण भी भूसे के स्टॉक में कमी आ रही है।  दरअसल, हाल के कुछ वर्षों में भूसे का इस्तेमाल गत्ता और रद्दी बनाने के कामों में भी किया जा रहा है। ऐसे में पशुपालकों को यह पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा अब किसान फसलों की कटाई कंबाइन मशीनों से करवाने लगे हैं। ऐसा करने से 6 इंच फसल बचकर खेत में ही रह जा रही है। कंबाइन एक बड़ी मशीन होती है। यह ऊपर के फसल को तो काट लेती है लेकिन नीचे के हिस्से की फसल रह जाती है।  इसी वजह से फसल अगर 12 इंच की है तो 6 इंच का पौधा खेत में ही रह जाता है। इस कारण भूसे का उत्पादन कम हो पा रहा है। 

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अधिक दाम पर भी नहीं मिल रहा
पशुपालक ज्ञानसिंह गुर्जर, रत्तीराम माली, हरकचंद लोधा व लालचंद मीणा आदि ने बताया कि एक बीघा में बोए हुए गेहूं के भूसे की कीमत करीब 4 से 5 हजार रुपए तक है। जो मुंह मांगी कीमत देने पर भी नहीं मिल रहा है। भूसा नहीं मिलने की दशा में चारे का कोई अन्य विकल्प काम में लेंगे। जिले में इस बार गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इससे भूसे की भी कमी बनी हुई है। वहीं कुछ किसान इसका स्टॉक भी कर रहे हैं, ताकि आगामी दिनों में अधिक दाम में बेचा जा सके। 

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पहले खेतों में किसान अपने औजारों से गेहूं की कटाई करता था, जिससे  भूसे का उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में होता था लेकिन अब ऐसा बेहद कम हो रहा है। अब कंबाइन मशीनों से गेहूं की कटाई करवाने के कारण भूसे का उत्पादन घटा है। इसके अलावा इस साल तापमान की अधिकता के कारण गेहंू की फसल में नुकसान देखा गया है। क्योंकि तापमान अधिक होने से अनाज हल्का हो जाता है और प्रोडक्शन में कमी आ जाती है। 
- गोविंद कुमार, कृषि पर्यवेक्षक

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