अंतररराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: इन महिलाओं की परिस्थितियों ने तोड़ी समाज की रूढ़ियां

महिलाएं ऑटो चलाने से लेकर रेलवे वर्कशॉप तक में मनवा रही अपना लोहा

अंतररराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: इन महिलाओं की परिस्थितियों ने तोड़ी समाज की रूढ़ियां

कोटा की ऑटो चालक बीना शर्मा पिछले 7 साल से ऑटो चला रहीं हैं। उन्होंने ऑटो चलाना साल 2017 में सीखा था और तब से ही ऑटो उनके मुख्य आय का स्त्रोत है।

कोटा। समाज की जमी अवधारणा को तोड़कर कुछ अलग करने की सोच से आगे बढ़ने वाली महिलाएं हमेशा भीड़ से अलग चलती हैं और अपनी एक अलग पहचान बनाती हैं। वहीं कुछ अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी दुनिया के बने बनाए नियमों को बदलते हुए ऐसा उदाहरण पेश करती हैं कि समाज भी उनका लौहा मानने को मजबूर हो जाता है। नवज्योति की अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की खास सीरीज में आज ऐसी ही महिलाओं की बात करेंगे जिन्होंने ऐसे कार्य किए जिन्हें आज भी महिलाओं के लिए नहीं माना जाता वहीं धारा से हटकर कुछ अलग करने की ठानी और अपने साथ अपने परिवार को भी एक बेहतर जीवन दिया।

जिम्मेदारियों ने भुलाया महिला होना
कोटा की ऑटो चालक बीना शर्मा पिछले 7 साल से ऑटो चला रहीं हैं। उन्होंने ऑटो चलाना साल 2017 में सीखा था और तब से ही ऑटो उनके मुख्य आय का स्त्रोत है। बीना ग्रेजुएट हैं और कहीं नौकरी नहीं लगने के कारण उन्होंने कोटा ऑटो चालक यूनियन द्वारा चलाए गए प्रशिक्षण शिविर में ऑटो चलाने की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग लेने के बाद बीना ने किस्तों पर ऑटो खरीदकर उसे चलाना शुरू कर दिया। शुरूआत में थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ऑटो चलाती रहीं और बीना आज सारा घर का खर्चा ऑटो से ही चलाती हैं। ऑटो चलाने के कारण बीना के पति ने उनसे अलग रहते हैं। पति के अलग होने के बाद बीना ने ही अपनी बेटी को पढ़ाया और उसकी शादी की। बीना का कहना है कि कोई छोटा बड़ा नहीं होता है अगर आप उसे दिल से करो तो ये दुनिया की नजर है जो महिला और पुरूष में फर्क करती हैं हमें महिलाओं को आगे लाने के लिए उनके लिए समान अवसर पैदा करने चाहिए।

नजमा निभा रहीं मां के साथ एक बेटे की जिम्मेदारी
ऑटो चालक नजमा मंसूरी के पति अनबन के कारण उनसे अलग हो गए और नजमा अपने मां बाप के साथ रहने लगी जिसके बाद मां बाप और बेटे की जिम्मेदारी उन पर आ गई। नजमा इससे पहले कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम करती थी, लेकिन नौकरी से आमदनी कम होने के कारण घर चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसलिए कोटा ऑटो यूनियन से ट्रेनिंग लेकर ऑटो चलाना शुरू कर दिया। नजमा कहती हैं कि शुरूआती दौर में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन घर को देखते हुए उन्होंने ऑटो चलाना जारी रखा। नजमा पिछले 7 साल से ऑटो चला रहीं हैं  और अभी अपने बलबूते घर का खर्चा चलाती हैं। इसके अलावा नजमा महिला ऑटो चालक यूनियन की अध्यक्ष होने के साथ महिलाओं को प्रेरित करती रहती हैं ताकि वो अपनें पैरों पर खड़ी हो सकें। 

कोटा रेलवे वर्कशॉप में पहली महिला
कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जो ऐसे नए आयाम बनाती हैं जिन पर दुनिया चलती है। ऐसी ही शख्सियत हैं गीता पेशवानी जो कोटा रेलवे वर्कशॉप में आने वाली पहली महिला हैं। गीता पेशवानी बताती हैं कि साल 1991 में जब उन्होंने अपनी 10वीं की पढ़ाई पूरी की तो रेवले वर्कशॉप में अर्पेंटिसशिप में दाखिला मिल गया। वर्कशॉप में अकेली महिला होने के चलते शुरुआत में लोगों ने मना किया, लेकिन गीता ने इसे एक चैलेंज के तौर पर लेते हुए अर्पेंटिसशिप पूरी की। जहां साल 2004 गीता रेलवे वेगन रिपेयर वर्कशॉप में कनिष्ठ अभियंता के पद पर चयनित हुई और आज वरिष्ठ अनुभाग अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा वर्कशॉप में गीता को पहली महिला होने के चलते साल 2002 में रेलवे में सम्मानित करने के साथ ही कई कंपनी के ऑफर आ चुके हैं लेकिन उन्हें वर्कशॉप में काम करना अच्छा लगता है। गीता बताती हैं कि उन्हें रेवले शॉप में काम करना पसंद है मशीनों को समझना और उन्हें ठीक करना अच्छा लगता है जिस कारण वो इस पेशे में आई। महिलाएं अगर चाहें तो हर काम कर सकती हैं बस उनकी इच्छाशक्ति होना चाहिए। 

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पति की बीमारी के चलते खुद भी करती हैं बैट बनाने का काम
घर को चलाने की जिम्मेदारी पति और पत्नी दोनों की होती है लेकिन कई बार दोनों की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति को निभानी पड़ जाती हैं। कोटा के सीएडी रोड पर बैट बनाकर बेचने वाली चंपा बाई उस व्यक्ति की भूमिका निभा रही हैं। चंपा बाई बताती हैं कि उनके परिवार में 6 सदस्य हैं जिनमें दो बड़ी बेटियां हैं और दो छोटे लड़के हैं लेकिन पति के बिमार रहने के चलते उनकी जिम्मेदारी भी वही उठा रही हैं। चंपा बाई के पति को आंतों में इंफेक्शन है जिसकी हर माह हजारों रुपए की दवाईयां आती हैं। ऐसे में घर चलाने के लिए वो उनके पति का बैट और लकड़ी की वस्तुएं बनाने में मदद करती हैं। चंपा करीब 20 साल से बैट और लकड़ी से बने सामान बनाकर बेच रही हैं। यही काम करते हुए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी की और तीन बच्चों को पढ़ा रही हैं। चंपा बाई कहती हैं कि कोई काम यह नहीं देखता की आप महिला हो या पुरुष वो देखता है कि अपको काम आता है या नहीं। ऐसे महिलाओं को कभी ये नहीं देखना चाहते हैं कि ये काम कर सकती हैं ये नहीं।

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