ना औषधीय पौधे पनपे न कम्पोस्ट खाद की हो रही बिक्री
नवाचार के नाम पर लाखों गए पानी में
निगम कर्मचारियों का कहना है कि खाद तैयार तो हो रही है लेकिन उतनी मात्रा में नहीं हो रही।
कोटा। नगर निगम कोटा दक्षिण की ओर से नवाचार के नाम पर लाखों रुपए खर्च तो कर दिए। लेकिन वे नवाचार कामयाब नहीं हो सके। जिससे लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उनका लाभ नहीं मिल पाया। नगर निगम कोटा दक्षिण की तत्कालीन आयुक्त कीर्ति राठौड़ के समय में प्रयास कर गांधी उद्यान में औषधीय पौधे लगाए गए थे। इसके लिए उद्यान के एक कॉर्नर में पूरी बगिया सी तैयार की गई थी। जिसके चारों तरफ सुरक्षा के लिए जाली लगाई गई। क्यारियां बनाई गई। जहां दर्जनों तरह के औषधीय पौधे लगाए गए थे। उनकी देखभाल की जिम्मेदारी उद्यान प्रभारी व कर्मचारियों को दी गई। पौधों के नाम लिखे गए। लेकिन हालत यह है कि कुछ समय तक तो ये पौधे चले लेकिन उसके बाद तत्कालीन आयुक्त का स्थानांतरण हो गया। उनके बाद किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा वे पौधे धीरे-धीरे सूखकर पूरी तरह से नष्ट हो गए। वर्तमान में वहां फिर से खाली जमीन रह गई है। सभी क्यारियां उजड़ी पड़ी हैं।
पौधे बड़े होने पर लोगों को देने की थी योजना
यहां लगाए गए पौधे बड़े होने पर लोगों को देने की योजना थी। उद्यान में लगाए गए औषधीय पौधों के बारे में यहां घूमने आने वालों को उनकी जानकारी और उनसे होने वाले लाभ के बारे में बताना था। साथ ही उन पौधों के बड़े होने पर लोगों को देनी की योजना थी। जिससे वे उन्हें अपने घरों पर लगा सके।
निगम की दुकान में बेचा था खाद
तत्कालीन आयुक्त ने निगम कार्यालय के बाहर बनी दुकान का उपयोग करते हुए उसमें कम्पोड खाद बेचना शुरू किया था। वहां कर्मचारी भी लगाया। खाद को सस्ते दर पर बेचा जा रहा था। कुछ समय तक तो ऐसा हुआ लेकिन उसके बाद जब खाद बिकना कम हुई तो वह दुकान भी बनद कर दी गई। इतनाा ही नहीं उस दुकान में इंदिरा रसोई खोल दी गई थी।
दीपावली पर गोबर के दीपक भी बेचे
निगम की ओर से गोबर के दीपक भी तैयार करवाए गए थे। जिन्हें दीपावली से पहले दुकान और संस्थाओं के माध्यम से बेचा गया था। ये दीपक निगम की बंधा धर्मपुरा गौशाला में तैयार किए गए थे। लेकिन यह भी तत्कालीन आयुक्त के जाने के साथ ही बंद हो गई।
क्लाईमेट नहीं कर रहा सूट
नगर निगम कोटा दक्षिण के उद्यान अधीक्षक रामलाल ने बताया कि गांधी उद्यान में औषधीय पौधे लगाए गए थे। वे कुछ समय तक तो चले। लेकिन अधिकतर पौधे ठंडे प्रदेश वाले थे। जिससे यहां उन्हें क्लाईमेट सूट नहीं करा और सभी पौधे सूख गए। अब दोबारा से वे पौधे नहीं लग सकते।
गोबर व पत्तों से तैयार की जा रही कम्पोस्ट खाद
तत्कालीन आयुक्त कीर्ति राठौड़ ने ही नवाचार करते हुए नगर निगम द्वारा गोबर व पत्तों से कम्पोड खाद तैयार करने की योजना बनाई थी। जिसके लिए उन्होंने चम्बल गार्डन में पुराने कैंटीन हॉल के पास खाली जगह पर बड़ा हॉल व टीनशेड तैयार करवाए। हॉल में गोबर व केचुए से खाद बनाने के लिए बड़े-बड़े 16 पिट बनवाए। उनमें निगम की गौशाला व कायन हाउस में निकलने वाले गोबर को लाकर उनसे खाद बनाई जा रही थी। हॉल के पास ही टीनशेड में बड़े-बड़े 14 पिट बनवाए थे। जिनमें पत्तों से खाद बनाई जा रही थी। ये पत्ते भी निगम के उद्यानों से लाए जा रहे थे। इसके लिए वहां अलग से लेबर लगाई गई। हालांकि अभी भी वह खाद तैयार तो हो रही है लेकिन नाम मात्र की।
निगम के गार्डन में ही उपयोग
सूत्रों के अनुसार गोबर व पत्तों से हर तीन महीने में करेीब एक ट्रक गोबर की खाद तैयार हो रही थी। जिसे पहले बाजार में भी बेचा जा रहा था। लेकिन जब से यह बिकना बंद हुई। तब से इस खाद का उपयोग नगर निगम के गार्डनों में पौधों में किया जा रहा है। साथ ही अधिकारियों के बंगलों की क्यारियों में काम लिया जा रहा है। खाद बनकर तैयार भी हो रही है जिससे उसके ढेर लगे हुए हैं। निगम कर्मचारियों का कहना है कि खाद तैयार तो हो रही है लेकिन उतनी मात्रा में नहीं हो रही। यह बाजार में बिक भी नहीं रही है। खाद का उपयोग निगम के गार्डन में ही हो रहा है।
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