अनाज मंडियों में किसानों की जगह अफसर राज

वर्ष 2016 के बाद से नहीं हुए चुनाव

अनाज मंडियों में किसानों की जगह अफसर राज

बोर्ड नहीं होने से सबसे ज्यादा खामियाजा लाखों किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

कोटा। प्रदेश की कृषि उपज मण्डियों में संचालन मण्डल के सदस्यों एवं अध्यक्षों की कुर्सियां पिछले आठ साल से खाली पड़ी हैं। इनमें कोटा की भामाशाहमंडी भी शामिल है। इस अवधि में ना तो भाजपा सरकार मंडी संचालन मण्डल के चुनाव करा पाई और ना ही कांग्रेस सरकार ने ध्यान दिया। वर्तमान में भामाशाहमंडी सहित प्रदेश में 173 कृषि उपज मंडियों में प्रशासकों का ही राज चल रहा है। मंडियों में जो संचालक मण्डल चुना जाता है, वह मंडी समिति में होने वाले वार्षिक बजट का ब्यौरा देखता है। इसमें से मंडी इलाके में योजनाओं पर कितना बजट पारित करना है व कितना खर्च करना है, यह भी तय करता है। प्रदेश में कृषि उपज मण्डियों में 2011 में संचालन मण्डल के चुनाव हुए थे, जिनका कार्यकाल 2016 में ही पूरा हो गया। उसके बाद संचालन मंडल के चुनाव नहीं हुए हैं।

फैक्ट फाइल
- 2011 में हुए थे कृषि उपज मण्डियों में संचालन मण्डल चुनाव
- 2016 में पूरा हो गया था संचालन मण्डल का कार्यकाल
- 173 कृषि उपज मण्डियों में प्रशासकों का राज
- 8 वर्ष से संचालन मण्डल सदस्यों व अध्यक्षों की कुर्सियां खाली

किसानों को भुगतना पड़ रहा नुकसान
किसान नेता दशरथ कुमार ने बताया कि अनाज मंडियों में लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने किसान, मजदूर, व्यापारी प्रतिनिधियों के बोर्ड के हाथ में व्यवस्था होती है। बोर्ड नहीं होने से सबसे ज्यादा खामियाजा लाखों किसानों को भुगतना पड़ रहा है। निर्वाचित किसान प्रतिनिधि (बोर्ड सदस्य) नहीं होने से उनकी आवाज कोई नहीं उठाता। इस व्यवस्था से व्यापारियों और मंडी श्रमिकों के अधिकारों पर भी कुठाराघात हो रहा है। इनके प्रतिनिधि भी बोर्ड में शामिल होते हैं।

विकास कार्य भी होतेहैं प्रभावित
कृषि उपज मण्डियों में सात वर्ष से चुनाव नहीं होने के कारण इनके संचालन मण्डल का चुनाव नहीं हो पाया है। इससे मण्डियों में विकास नहीं हो पाया है और किसानों को भी लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। मण्डियों के संचालन का काम प्रशासकों के हाथों में है। अधिकांश कृषि उपज मण्डियों में प्रशासक ही नियुक्त हैं। मण्डी समिति बोर्ड का गठन कृषक, व्यापारी, सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य व स्थानीय विधायक मिलकर करते हैं। 

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प्रकिया शुरू हुई, लेकिन चुनाव ने अटकाई
मण्डी संचालन मण्डल के चुनाव के लिए वर्ष 2016 में कार्यकाल खत्म होने के बाद वर्ष 2017 में चुनाव प्रक्रिया के लिए अध्यक्ष पदों पर लॉटरी भी निकाली गई थी। वार्डों का गठन भी हो गया था, लेकिन 2018 विधानसभा चुनावी वर्ष होने के कारण मण्डी चुनाव खटाई में पड़ गए, जिस पर अभी तक अमल नहीं हो सका।

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सभी वर्ग की होती है भागीदारी
संचालन मंडल में सभी वर्ग की भागीदारी होती है। यह मंडल ही मंडी प्रशासन के साथ मिलकर अनाज मंडी के विकास, वित्तीय और अन्य निर्णय करता है। मंडल में किसानों के आठ निर्वाचित सदस्य होते हैं। साथ ही स्थानीय विधायक, व्यापारियों के दो सदस्य, तुलाईदार या मंडी श्रमिकों का एक सदस्य, सहकारी विपणन सोसायटी का एक सदस्य होता है। राज्य सरकार दो सदस्यों को मनोनीत करती है। संबंधित स्थानीय निकाय का एक सदस्य भी बोर्ड में शामिल रहता है। अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।

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मण्डियों में संचालक मण्डल के चुनाव 2011 में हुए थे, जिनका कार्यकाल वर्ष 2016 में ही खत्म हो गया था। इसके बाद सरकार ने चुनाव नहीं कराए। चुनाव का निर्णय सरकार करती है। मण्डियों में इस समय संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशासक नियुक्त कर रखा है।
-जवाहरलाल नागर, सचिव, भामाशाह कृषि उपजमंडी 

निर्वाचित बोर्ड होगा तो किसानों के प्रतिनिधि होंगे। वह किसान की बात रखेगा। ठीक से प्रावधानों को लागू करवा पाएंगे। अभी प्रशासक का झुकाव व्यापारी की तरफ ज्यादा रहता है। व्यापारी हित में किसान का अहित हो जाता है। इसमें संतुलन के लिए निर्वाचित बोर्ड और अध्यक्ष होने जरूरी हैं।
-लक्ष्मीचंद नागर, किसान नेता

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