कोटा में बना पहला तैरता मगरमच्छ का पिंजरा, देशभर में सुर्खियां बटोर रहा कोटा का नवाचार, झालावाड़ से जयपुर तक ने मांगा कोटा का फ्लोटिंग ट्रैप

150 किलो वजनी होने के बावजूद नहीं डूबता है पानी में

कोटा में बना पहला तैरता मगरमच्छ का पिंजरा, देशभर में सुर्खियां बटोर रहा कोटा का नवाचार, झालावाड़ से जयपुर तक ने मांगा कोटा का फ्लोटिंग ट्रैप

अब तक आधा दर्जन मगरमच्छों का सफल रेस्क्यू किया जा चुका है।

कोटा। कोटा वन्यजीव विभाग द्वारा बनवाया गया  क्रोकोडाइल फ्लोटिंग कैज देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। पानी में तैरता भारी-भरकम पिंजरे का वजन 150 किलो है और इसमें 100 किलो वजनी मगरमच्छ फंसने के बाद भी यह पानी में नहीं डूबता। विज्ञान और तकनीक के अनूठे संगम से तैयार फ्लोटिंग ट्रैप से पानी में मगरमच्छ का रेस्क्यू संभव हो सका। इधर, वन्यजीव विभाग के डीएफओ अनुराग भटनागर का दावा है कि कोटा का क्रोकोडाइल फ्लोटिंग कैज देश का पहला पानी में तैरता पिंजरा है। नदी-तालाब, नहरों व नालों से अब तक आधा दर्जन मगरमच्छों का सफल रेस्क्यू किया जा चुका है। दरअसल, यह तकनीक आॅस्ट्रेलिया से मिली ट्रेनिंग और अनुभव के आधार पर विकसित की गई है, जिससे इंसान और मगरमच्छ—दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

150 किलो वजनी फ्लोटिंग ट्रेप, फिर भी नहीं डूबता
डीएफओ अनुराग भटनागर ने बताया कि क्रोकोडाइल फ्लोटिंग कैज के निर्माण में आॅस्टेलियन तकनीक का उपयोग किया गया है। 150 किलो वजनी होने के बावजूद पानी में नहीं डूबता है। इसका निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है। 

- कैज एल्युमिनियम धातु से बनाया गया है ताकि पानी में आसानी से तैर सके।
- इसकी लंबाई 10 फीट, ऊंचाई 2 फीट और चौड़ाई 3 फीट है।
- पिंजरे के दोनों तरफ 13-13 फीट के 250 एमएम डाया वाले पीवीसी पाइप लगाए गए हैं, जिस पर दो या तीन व्यक्ति भी खड़े होकर काम करें तो भी ट्रेप पानी में बैलेंस बनाए रखता है।  
- पहला ट्रैप कैज बनाने के बाद वन्यजीव विभाग ने कुछ 5 फीट के स्टेनलेस स्टील के अलग-अलग आकार के कैज तैयार करवाए हैं।  
- इस तकनीक से मगरमच्छ को न कोई चोट पहुंचती है और न ही रेस्क्यू टीम को खतरा रहता है।

नदी-तालाबों से हो चुके मगरमच्छों का सफल रेस्क्यू 
पहला रेस्क्यू: यह क्रोकोडाइल फ्लोटिंग कैज को पहली बार 13 अप्रैल 2025 को उपयोग में लाया गया। छत्र विलास उद्यान तालाब में कई महीनों से मगरमच्छ का रेस्क्यू संभव नहीं हो पा रहा था। जमीन पर पकड़ने की कोशिश असफल रही। तब आॅस्टेÑलियन तकनीक से बनाए गए कैज से 13 अप्रैल को तालाब से मगरमच्छ का सफल रेस्क्यू किया गया।

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दूसरा और तीसरे रेस्क्यू 
- कोटा ग्रामीण क्षेत्र के खातौली गांव  में तालाब से भी इसी कैज की मदद से मगरमच्छ रेस्क्यू किया गया।
- तीसरा प्रयास बालिता गांव के नाले में किया गया।
- जयपुर वन्यजीव विभाग के डीएफओ ओम प्रकाश शर्मा के आग्रह पर वर्तमान में यह पिंजरा जमुवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के रामगढ़ डेम के डाउनस्ट्रीम में लगाया गया है।

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आॅस्ट्रेलिया से मिली प्रेरणा
कोटा वन्यजीव विभाग के डीएफओ अनुराग भटनागर ने बताया कि सहायक वनपाल प्रेम कंवर को 2024 में आॅस्ट्रेलिया के डार्विन वाइल्ड लाइफ आॅपरेशन पार्क और आईयूसीएन क्रोकोडाइल स्पेशल ग्रुप प्रोग्राम में भेजा गया था। वहां उन्होंने करीब डेढ़ महीने तक मगरमच्छ रेस्क्यू तकनीक सीखी। आॅस्ट्रेलिया में देखा गया कि कैसे फ्लोटिंग ट्रेप कैज के जरिए मगरमच्छों को पानी में सुरक्षित रेस्क्यू किया जाता है। वहीं से प्रेरणा लेकर इस तकनीक को कोटा में अपनाया गया और भारतीय परिस्थितियों के अनुसार इसकी डिजाइन करवाई गई। फ्लोटिंग ट्रैप कैज से मगरमच्छ का रेस्क्यू कार्य सहायक वनपाल प्रेम कंवर, कमल, कमलेश, अशोक, राजेन्द्र सिंह, अब्दुल कर रहे हैं।  

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इंसान-मगरमच्छ संघर्ष पर रोक
उन्होंने बताया कि कोटा शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब और नालों में मगरमच्छ पहुंच जाते हैं। जिससे रहवासियों के लिए खतरा पैदा हो जाता है। पहले केवल जमीन पर रेस्क्यू संभव था, जिससे पानी में रह रहे मगरमच्छ को पकड़ना नामुमकिन रहता था। लेकिन, अब इस तकनीक से किसी भी जलीय क्षेत्र से मगरमच्छ को सुरक्षित रेस्क्यू किया जा सकता है। इससे न केवल इंसान और मगरमच्छ के बीच संघर्ष को टाला जा सकता है बल्कि जानवर और रेस्क्यू टीम की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। वहीं, वन्यजीव संरक्षण को नई दिशा मिली है। 

वन्यजीव संरक्षण में मील का पत्थर 
कोटा में बना भारत का पहला क्रोकोडाइल फ्लोटिंग ट्रेप कैज न सिर्फ तकनीकी नवाचार है बल्कि वन्यजीव संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर भी है। यह पहल साबित करती है कि आधुनिक तकनीक और ज्ञान को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ढालकर बड़े से बड़े संकट का समाधान निकाला जा सकता है। यह फ्लोटिंग कैज इसी का जीवंत उदारहण है। 
- अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग 

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