सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने माना, कोनोकार्पस स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक

इसकी जड़ें खींच लेती है भू-जल

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने माना, कोनोकार्पस स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक

कमेटी ने की देश के सभी राज्यों में कोनोकार्पस को बैन करने की सिफारिश

कोटा। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी-सीएसी ने कोनोकार्पस इरेक्ट्स पेड़-पौधे को मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता व पर्यावरण के लिए खतरनाक माना है।  कमेटी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सौंपी 40 पेजों की रिपोर्ट में इसके गंभीर दुष्प्रभावों का उल्लेख किया है। वहीं, देशभर में कोनोकार्पस  के आयात, नर्सरी में उत्पादन पर बैन लगाने की सिफारिश की है। साथ ही जहां यह पेड़ लगे हुए हैं, उनको हटाकर स्थानीय प्रजातियों के पौधों लगवाए जाने का सुझाव दिया है।  गौरतलब है कि दैनिक नवज्योति ने सोमवार के अंक में जिस पौधे को 4 राज्यों ने बैन किया उसे चंबल रिवर फ्रंट और आॅक्सीजोन में जमकर लगाया....शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर इसके दुष्प्रभावों पर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था।  पढ़िए, सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट के प्रमुख अंश...

बच्चों व बुजुर्गों सांस और हड्डियों से संबंधित बीमारियां मिली
वन्यजीव विभाग के डीएफओ अनुराग भटनागर ने कहा कि  सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कोनोकार्पस के परागकणों से बच्चों व बुजुर्गों  में कई तरह की श्वांस से जुड़ी बीमारियां हो जाती है। जिसमें अस्थमा, एलर्जी , दमा, सांस लेने में दिक्कत सहित हड्डियों से संबंधित बीमारियां पाई गई है। जब रिपोर्ट में सामने आया कि इस पेड़ के परागकणों से बहुत एलर्जी होती है तो वर्ष 2025 में तमिलनाडू  सरकार ने इस वृक्ष पर पूरी तरह से बैन लगा दिया। 

पत्तों में रसायन, मिट्टी की बदल जाती संरचना
कमेटी में रिपोर्ट में बताया कि कोनोकार्पस के एलोपैथिक इम्पैक्ट भी है। इसके पत्तों में रसायन होता है, जो टूटकर  जमीन पर गिरते हैं तो वह मिट्टी की संचरना को बदल देता है, जिससे हमारे स्थानीय पेड़-पौधों की वृद्धि रुक जाती है। जिससे पूरा ईको सिस्टम गड़बड़ा जाता है। 

जड़ें खतरनाक, इमारतों की नींव तक हिला डाली
कमेटी ने कहा कि इसकी जड़ें काफी खतरनाक होती है। वह जमीन के नीचे काफी गहराई तक जाती है। अहमदाबाद एवं हैदराबाद जैसे शहरों में इसकी जड़ों ने फुटपाथ, अंडरग्राउंड पाइप लाइन, आॅप्टीकल फायबर कैबलें और इमारतों की नींव पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। वहीं, भू-जल को खींच लेती है, जिससे स्थानीय प्रजाती के पेड़-पौधे पानी के अभाव में विलुप्त होने लगते हैं।

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कमेटी की रिपोर्ट के प्रमुख अंश 
- सीएसी कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया है कि कोनोकार्पस वृक्ष को देश के सभी राज्यों में इनवेसिव घोषित किया जाए। 
- सभी राज्यों में कोनोकार्पस के आयात व नर्सरियों में पौध तैयार करने पर बैन लगाए जाए ।
- मिशन मोड अप्रोच पर जहां कहीं भी कोनोकार्पस पेड़ लगे हैं उसे हटाकर स्थानीय पेड़-पौधे लगाए जाए। 
- गुजरात सरकार ने वर्ष 2023 में कोनाकार्पस को नर्सरी में तैयार करने पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया। 
- तमिलनाडू सरकार ने जनवरी 2025 में वन भूमि व गैर वन भूमि पर लगे कोनोकार्पस को हटाने के आदेश जारी किए हैं। 
- आंध्र प्रदेश गवर्नमेंट ने काकीनाड़ा में 35000 से ज्यादा कोनोकार्पस पेड़ों को कटवाया है। 
- तेलंगाना ने वर्ष 2022 में एक सरकुर्लर जारी यह पौधे नहीं लगाने और हैदराबाद में पहले से लगे इन वृक्षों को हटाने के निर्देश दिए हैं। 
-असम की गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार को कोनोकार्पस नहीं लगाने निर्देश दिए हैं। इसी तरह कर्नाटक में वर्ष 2024 में वन विभाग ने यह पौधे नहीं लगाए जाने के आदेश हुए। 
- वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की धारा 62-ए केंद्र को इनवेसिव (अतिक्रमी प्रजाति के वृक्षों) के लिए नियम बनाने की शक्ति देती है। 
-  नेशनल बायोडायवसिटी स्टेÑटजी एंड एक्शन प्लान (2024-23) भी इनवेसिव प्रजातियों के पौधें जैसे-कोनोकार्पस, लेंटाना, सूबबूल, विलायती बबूल को जैव विविधता की हानि के लिए मुख्य कारण माना है। लेकिन इस प्लान की आज भी क्रियांविती नहीं हो पा रही है। 
- वर्तमान में आज भी राष्टÑीय स्तर पर इनवेसिव प्रजातियों के लिए कोई मॉनिटरिंग या रेगुलेटरी गाइड लाइन नहीं है। 
- राजस्थान में कोनोकार्पस खूब मात्रा में लगाया जा रहा है। 

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कमेटी की प्रमुख सिफारिशें : भारत में प्रसार, आयात और नर्सियों में बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के जिला कोर्डिनेटर बॉटनिस्ट सोनू कुमार ने बताया कि कमेटी की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार है। 
- कोनोकार्पस के रोपण को तुरंत रोका जाए और इसे आक्रामक प्रजाति के रूप में अधिसूचित किया जाए।
- पूरे भारत में इसके प्रसार, आयात और पौधों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए।
-पहले से लगाए गए पौधों को हटाकर उनकी जगह देशज (स्थानीय) प्रजातियों का रोपण मिशन मोड कार्यक्रम के तहत किया जाए।
-आक्रामक विदेशी प्रजातियों से निपटने के लिए और अधिक मजबूत नियामक एवं कानूनी ढांचे तैयार किए जाएं।
- आक्रामक पौधों, जीव-जंतुओं और सूक्ष्मजीवों के साक्ष्य-आधारित प्रबंधन के लिए अनुसंधान प्रणाली स्थापित की जाए।
- वन, उद्यानिकी और शहरी हरियाली विभागों को सक्रिय कर देशज विकल्पों के साथ प्रतिस्थापन कार्य प्रारंभ करें।

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सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने कोनोकार्पस को स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक माना है। कमेटी ने कोर्ट में सौंपी 40 पेजों की रिपोर्ट में इसके गंभीर दुष्प्रभाव का उल्लेख किया है। हमारी ओर से जिला प्रशासन व संबंधित विभागों के अधिकारियों को पत्र लिख इसके प्रति जागरूक किया जाएगा। वहीं, शहर में इसके रोपण पर रोक लगाने व प्रभावी कदम उठाने का आग्रह करेंगे। वन विभाग इस तरह के पौधे नहीं लगाता है।
-अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग कोटा

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